विन्ध्याचल का रहस्यमयी कालीखोह मंदिर: आस्था, अध्यात्म और तांत्रिक साधना का अनोखा संगम

Kalikhoh Temple
X
विन्ध्याचल धाम का कालीखोह मंदिर एक रहस्यमयी गुफा है जहां नवरात्र में लाखों भक्त मां काली के दर्शन के लिए आते हैं। यह एक शक्तिपीठ और साधना स्थल है।

Kalikhoh Mandir: विन्ध्याचल धाम स्थित कालीखोह मंदिर नवरात्रि के दौरान लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन जाता है। यह मंदिर एक प्राकृतिक गुफा के भीतर स्थित है और इसे मां काली के प्राचीनतम एवं तांत्रिक शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य डॉक्टर मनीष गौतम जी महाराज से इस रहस्यमयी मंदिर के बारे में।

कालीखोह- नाम का रहस्य और आध्यात्मिक महत्व

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि 'काली' का अर्थ है अंधकार को नष्ट करने वाली देवी, जबकि 'खोह' का मतलब है गुफा। इस प्रकार, कालीखोह वास्तव में वह पवित्र गुफा है जहां मां काली की मूर्ति विराजमान है। गुफा में प्रवेश करते ही भक्त एक अलौकिक और शांत वातावरण का अनुभव करते हैं, जो इस स्थान को विशेष बनाता है। यह मंदिर न केवल पूजा-पाठ के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह तांत्रिक साधना के लिए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है।

पौराणिक मान्यता और शक्तिपीठ का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवी सती ने यज्ञ में आत्मदाह किया, तो भगवान शिव उनके शव को लेकर ब्रह्मांड में विचरण करने लगे। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया, और जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। कहा जाता है कि कालीखोह वही स्थान है जहां सती का कंचुक (वस्त्र) गिरा था, जिससे यह क्षेत्र एक प्रमुख शक्ति पीठ बन गया।

तांत्रिक साधना का केंद्र

कालीखोह को तांत्रिकों की साधना स्थली के रूप में भी जाना जाता है। यहां मान्यता है कि गुफा में एक अदृश्य सुरंग है जो सीधे गंगा नदी तक जाती है, जिसका उपयोग प्राचीन काल में साधक तांत्रिक साधनाओं के लिए करते थे। नवरात्रि की रातों में यहां तंत्र-मंत्र की गुप्त साधनाएं की जाती हैं, जिनमें कई साधकों को विशेष अनुभव प्राप्त होते हैं। यह स्थान ऊर्जा, तपस्या और साधना का अद्भुत केंद्र है।

तीन देवी स्थलों की पावन यात्रा

विन्ध्याचल धाम में दर्शन की परंपरा के अनुसार सबसे पहले विन्ध्यवासिनी देवी के दर्शन किए जाते हैं, फिर अष्टभुजा देवी के और अंत में भक्त कालीखोह की गुफा में प्रवेश करते हैं। इस क्रम को 'त्रिकोण यात्रा' कहा जाता है, जो आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायी मानी जाती है।

नवरात्रि में विशेष आयोजन

शारदीय (सितंबर-अक्टूबर) और चैत्र (मार्च-अप्रैल) नवरात्रि में यहां विशाल मेला लगता है। इन अवसरों पर दुर्गा सप्तशती पाठ, शतचंडी महायज्ञ और विशेष तांत्रिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं। काशी से आए वैदिक ब्राह्मण इन पूजन कार्यों का संचालन करते हैं।

भक्ति, पर्यटन और संस्कृति का संगम

आज कालीखोह मंदिर सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं रहा, बल्कि यह धार्मिक पर्यटन, स्थानीय अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक विरासत का भी महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे धार्मिक पर्यटन सर्किट में शामिल किया है, जिससे इसकी पहुंच और महत्ता और भी बढ़ गई है।

कैसे पहुंचें कालीखोह मंदिर?

  • रेल मार्ग: विन्ध्याचल रेलवे स्टेशन से लगभग 3-4 किमी
  • सड़क मार्ग: मिर्जापुर शहर से 8-10 किमी
  • हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा-वाराणसी (लगभग 75 किमी)

हर मंगलवार और शनिवार को विशेष भीड़

हर हफ्ते मंगलवार और शनिवार को यहां विशेष भीड़ देखने को मिलती है। भक्त नारियल, चुनरी, फूल, अगरबत्ती आदि अर्पित करते हैं और माता से मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करते हैं।

मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु इस पवित्र गुफा में मां काली के दर्शन करता है, उसे एक नई ऊर्जा, आत्मबल और मानसिक शांति की अनुभूति होती है। यही कारण है कि स्थानीय लोग मानते हैं "जो भी कालीखोह का दर्शन करता है, उसके जीवन के अंधकार मिट जाते हैं।"


WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

Next Story