विजयादशमी विशेष: रावण के वो अधूरे सपने, सच हो जाते तो दुनिया ऐसी नहीं दिखती

dashahara ravana vijayadashami adhoore sapne scientific
X

रावण संहिता में वर्णित हैं रावण के अधूरे सपने। (तस्वीर- AI)

रावण केवल राक्षस नहीं था, बल्कि महान विद्वान और वैज्ञानिक सोच वाला चरित्र भी था। जानें रावण संहिता में वर्णित उसके अधूरे सपने और यदि वो सच हो जाते तो दुनिया पर उनका क्या असर होता!

हर साल दशहरे पर हम रावण की बुराइयों और उसके अहंकार की चर्चा करते हैं। लेकिन शायद ही हम यह सोचते हैं कि रावण केवल राक्षस नहीं था, बल्कि एक प्रकांड विद्वान, महाबली और वैज्ञानिक दृष्टि वाला चरित्र भी था। डॉ. सूर्यकांत मिश्र के इस विशेष लेख में जानिए रावण के वे अधूरे सपने, जो पूरे हो जाते तो आज की दुनिया कुछ और ही होती।

रावण: विद्वान लेकिन अभिमानी

हम प्रतिवर्ष दशहरा पर्व पर रावण की बुराइयों का खाता खोले नजर आते हैं। कारण यह कि राक्षस राज ने अपनी विद्वता का अन्यथा उपयोग कर समाज में एक गलत धारणा को प्रतिष्ठित किया! वैसे पूरी दुनिया इस बात से वाकिफ है कि दशानन रावण जैसा प्रकांड विद्वान और महाबली पूरी दुनिया में और कोई नहीं था। वास्तव में देखा जाए तो रावण एक विराट चरित्र है, पर अफसोस :

अति रूपेण वै सीता, अति गर्वेण रावण, अति दानाद बलिर्बद्धो, अति सर्वत्र वर्जेत।

अर्थात सीता अति सुंदर है, रावण अति अभिमानी है, बलि वरदानों से बंधा है, सर्वत्र उसका कल्याण हो। पाप या अधर्म अथवा अनैतिक कार्य, मद, अहंकार, घमंड ये तमाम अवगुण अपयश ही देते हैं। अतः निरंतर पूजा-पाठ, दान-पुण्य, परोपकार, दया-करुणा, प्रेम-सौहाद्र, इत्यादि मानवीय सदृणों का आह्वान कर मनुष्य उन्नति को प्राप्त कर सकता है।

रावण का पश्चाताप

रावण राक्षस जरूर था, किंतु प्राण त्यागने से पूर्व उसने भगवान श्रीराम के आग्रह पर उपदेश भी सुनाया। रावण ने अपने उपदेश में कहा-शुभ कार्य शीघ्र कर डालना चाहिए। अशुभ कार्यों को टाल देना चाहिए। मैं भी कुछ शुभ कार्य करना चाहता था, किंतु टाल-मटोल के कारण नहीं कर पाया। रावण का पश्चाताप भी मौत के आलिंगन से पूर्व सामने आया। रावण ने कहा कि एक अशुभ काम मेरे मन में आ बैठा। यह जानते हुए भी कि पर नारी पर बुरी नजर डालना ठीक नहीं, किंतु मैं खुद को रोक नहीं पाया! सीता का हरण कर बैठा! नतीजा यह हुआ कि कुल सहित मेरा नाश हो गया।


रावण बहु विधाओं का जानकार था। उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह की जादूकला में निपूर्ण था। यही कुछ कारण थे कि लोग उससे भयभीत रहा करते थे। उसने कुछ ऐसे सपने संजो रखे थे जो पूरे हो जाते तो यह दुनिया जिस रूप में दिखाई पड़ रही है, वैसी न होती!

रावण कुदरत के नियमों के खिलाफ खड़ा नजर आता था। रावण संहिता में उल्लेखित उसके अधूरे सपने वास्तव में उसकी वैज्ञानिक सोच का आईना कहे जा सकते हैं।

रावण संहिता के अनुसार रावण चाहता था कि मानव प्रजाति में जितने भी लोगों का रंग काला है, वह गोरा हो जाए, ताकि कोई भी महिला उसका अपमान न कर सके ! रावण बाली को पराजित करने का सपना भी देखा करता था। बाली उसे अपनी बगल में दबाकर समुद्रों की परिक्रमा किया करता था! रावण का बाली पर विजय का सपना अधूरा ही रह गया।

रावण चाहता था कि दुनिया भर के स्वर्ण भंडार पर उसका अधिकार हो। साथ ही स्वर्ण की पहचान के लिए वह उसमें विशेष प्रकार की सुगंध डालना चाहता था।

रावण किसी वैज्ञानिक की तरह सोचा करता था, इस संदर्भ में रावण संहिता बताती है कि रावण चाहता था कि खून का रंग लाल के बदले सफेद हो जाए ताकि वह पानी के साथ मिलकर उसके अत्याचारों को जग-जाहिर न होने दे! रावण पूरी प्रकृति पर अपना कब्जा चाहता था।

रावण की सबसे इच्छा

रावण की एक बड़ी इच्छा यह थी कि वह स्वर्ग तक सीढ़ियां बना सके। इस सोच में उसके खतरनाक इरादे छिपे हुए थे। वह चाहता था कि लोग अपनी कुशल क्षेम के लिए भगवान की नहीं, उसकी पूजा करें! वह यह भी चाहता था कि उसकी पूजा करने वालों को वह सीधे स्वर्ग का मार्ग सीढ़ी के माध्यम से दे सके !

रावण खुद मदिरा प्रेमी था। वह चाहता था कि मंदिरा की दुर्गंध समाप्त कर दे, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उसे पीने लगें! उसकी वैज्ञानिक सोच के चलते वह ऐसा कर लेता तो पूरी दुनिया नशे की गुलाम हो जाती।

रावण यह भी चाहता था कि समुद्र का खारा पानी, मीठा हो जाए ! ऐसा हो जाने से लोग उसकी पूजा करने लगते और भगवान की आराधना बंद हो जाती।

इन्हीं सारी विकृत इच्छाओं के कारण ही रावण का अंत प्रभु श्रीराम के हाथों हुआ।

रावण का साहित्य और आविष्कार

ऐसे भी उल्लेख मिलते हैं कि रावण ने ही अरुण संहिता, अंक प्रकाश, इंद्रजाल, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर रावणियम जैसी पुस्तकों की रचना की। अपने कुल और राक्षस समाज की रक्षा के लिए दशानन ने ही 'रक्ष' संस्कृति की स्थापना की। रावण द्वार रचित शिव तांडव खोत आज भी भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए गया जाता है। आज ज्योतिषियों के लिए कुंडली सहित अनेक बाधाओं के हल के रूप में रावण संहिता अद्वितीय ग्रन्थ माना जाता है। इसी तरह 'रावण हत्था' वाद्य यंत्र का आविष्कार भी रावण द्वारा किया गया। कहते हैं आज भी उक्त वाद्य यंत्र राजस्थान और गुजरात में बजाया जाता है।

रावण की सीख

रावण खुद कहा करता था कि जो व्यक्ति खुद की स्तुति करता है या अपनी प्रशंसा सुनने का आदी हो जाता है, उसे कभी सफलता नहीं मिलती।

(लेखक: डॉ. सूर्यकांत मिश्र, स्वतंत्र पत्रकार। यह उनके निजी विचार हैं।)

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo
Next Story