वरलक्ष्मी व्रत 2025: शुभ योगों में व्रत और हयग्रीव जन्मोत्सव का महत्व

वरलक्ष्मी व्रत 2025: शुभ योगों में व्रत और हयग्रीव जन्मोत्सव का महत्व
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वरलक्ष्मी व्रत 2025: शुभ योगों में व्रत और हयग्रीव जन्मोत्सव का महत्व

8 अगस्त 2025 को सावन मास की चतुर्दशी पर वरलक्ष्मी व्रत और भगवान हयग्रीव जयंती का संयोग सर्वार्थ सिद्धि योग में पड़ रहा है। जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व।

Varalakshmi Vrat 2025: सावन मास की चतुर्दशी तिथि पर वरलक्ष्मी व्रत और भगवान हयग्रीव जन्मोत्सव का विशेष संयोग शुभ योगों के साथ मनाया जाता है। दृक पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी शाम 2:12 बजे तक रहेगी, इसके बाद पूर्णिमा शुरू होगी।

शुक्रवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र दोपहर 2:28 बजे तक और फिर श्रवण नक्षत्र रहेगा, जबकि चंद्रमा मकर राशि में संचार करेगा। सूर्योदय सुबह 5:46 बजे और सूर्यास्त शाम 7:07 बजे होगा। दोपहर 2:28 बजे से 9 अगस्त सुबह 5:47 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा, जो इस दिन को और पवित्र बनाता है।

वरलक्ष्मी व्रत क्यों किया जाता है?

वरलक्ष्मी व्रत, जो धन-समृद्धि की देवी वरलक्ष्मी को समर्पित है, सावन शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को किया जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु की पत्नी वरलक्ष्मी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। यह व्रत संतान, जीवनसाथी और सांसारिक सुखों के लिए खासकर महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में।

उपाकर्म दिवस के रूप में मनाते हैं हयग्रीव जन्मोत्सव

पूजा में पवित्र धागा बांधना, मिष्ठान्न अर्पित करना और माता की कथा सुनना शामिल है। इसी दिन भगवान हयग्रीव, विष्णु के अवतार का जन्मोत्सव भी है, जिन्होंने हयग्रीवासुर से वेदों को मुक्त कराया। ब्राह्मण समुदाय इसे उपाकर्म दिवस के रूप में मनाता है। यह दिन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व का है।

शुक्रवार के शुभ योग, पंचांग और नक्षत्र

  • उत्तराषाढ़ा – दोपहर 2:28 बजे तक
  • श्रवण – इसके बाद
  • चंद्रमा की स्थिति: मकर राशि में
  • सूर्योदय: सुबह 5:46 बजे
  • सूर्यास्त: शाम 7:07 बजे
  • राहुकाल: सुबह 10:47 से दोपहर 12:27 बजे तक
  • सर्वार्थ सिद्धि योग: दोपहर 2:28 बजे से 9 अगस्त सुबह 5:47 बजे तक

वरलक्ष्मी व्रत का महत्व

सावन शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को मनाया जाने वाला यह व्रत देवी महालक्ष्मी के वरलक्ष्मी स्वरूप को समर्पित होता है। धन, समृद्धि, संतान, जीवनसाथी और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए यह व्रत किया जाता है।

कहां मनाया जाता है विशेष रूप से?

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र में विवाहित महिलाएं इस व्रत को बड़ी श्रद्धा से करती हैं।

वरलक्ष्मी व्रत पूजा विधि (सरल भाषा में)

स्नान के बाद पूजा स्थान पर कलश या श्री वरलक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। मंत्र पढ़ते हुए देवी का ध्यान करें। फिर पंचामृत स्नान कराएं और फिर जल अर्पित करें। इत्र, रोली, सिंदूर लगाएं, वस्त्र और माला अर्पित करें। इसके बाद नैवेद्य और मिष्ठान्न चढ़ाएं और दीप-धूप जलाएं, कथा सुनें व आरती कर हाथ में दोरक (पवित्र धागा) बांधें। मंत्र इस प्रकार है...।

क्षीरसागर संभूतां, क्षीरवर्ण समप्रभाम्।

क्षीरवर्णसमं वस्त्रं दधानां हरिवल्लभाम्॥"

भगवान हयग्रीव जयंती का महत्व

भगवान हयग्रीव: भगवान विष्णु का अश्वमुखी अवतार हैं। मान्यता है कि हयग्रीवासुर द्वारा चुराए गए वेदों को भगवान हयग्रीव ने पुनः प्राप्त किया है। ब्राह्मण समाज इस दिन को 'उपाकर्म दिवस' के रूप में भी मनाता है।

  • पूजा विधि: विष्णु जी के हयग्रीव अवतार की पूजा करें, वेदों की रक्षा के लिए आभार प्रकट करें।
  • खास बात: 8 अगस्त 2025 को वरलक्ष्मी व्रत और हयग्रीव जयंती का संयोग सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ पड़ा है, जो इसे बेहद शुभ और फलदायक बनाता है। श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा करके आप मां लक्ष्मी की कृपा और भगवान विष्णु के आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
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