स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: 'रात्रि की गहराई जितनी भी भयावह हो, वह प्रभात की सूचना है'

स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन
swami avadheshanand giri Jeevan Darshan: 'प्रकृति का नियम है- परिवर्तन। रात्रि की गहराई जितनी भी भयावह हो, वह प्रभात की सूचना है। साधक को यह स्मरण रखना चाहिए कि 'यह भी बीत जायेगा।' जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से 'जीवन दर्शन' में आज जानिए जीवन प्रबन्धन के सूत्र बारे में।
आध्यात्मिक पथ पर चलने वाला साधक जब जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझता है, तो प्रायः उसे यह भ्रम हो जाता है कि मार्ग कठिन हो गया है या कदाचित् वह अनुचित दिशा में बढ़ रहा है। किन्तु वास्तव में, ये कठिनाइयां शरीर, मन और बुद्धि के शोधन हेतु ही आती हैं। जैसे तप की अग्नि में सोना तपकर अधिक शुद्ध होता है, वैसे ही साधक की आंतरिक शक्ति, विश्वास और चेतना का विस्तार इन्हीं कठिन घड़ियों में होता है। अतः भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है; इन परिस्थितियों को आत्म-विकास का माध्यम समझकर धैर्यपूर्वक स्वीकार करना ही श्रेयस्कर है।
जीवन स्वयं अनन्त सम्भावनाओं और अवसरों का स्रोत है। जब हम आत्म-विश्वास और आशावादिता के साथ जीवन को देखते हैं, तो वह एक साधन बन जाता है, बोझ नहीं। सच्चा साधक विपरीत परिस्थितियों में भी अवसर खोज लेता है और अपनी आंतरिक प्रतिभा को नए रूप में अभिव्यक्त करता है। यही आत्मबल उसे साधना की अगली सीढ़ी पर आरूढ़ करता है। साधक के जीवन में गुण ग्राह्यता अर्थात् श्रेष्ठ गुणों को आत्मसात् करने की वृत्ति, एक सुरक्षा कवच की भांति कार्य करती है। कठिन समय में सद्ग्रन्थ, सद्विचार, सद्गुरु और आत्मीयजनों का संग अत्यन्त सहायक होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि 'शास्त्र विचारों का आश्रय लेकर साधक कठिन परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना सकता है।'
जीवन में सच्चे सम्बन्ध सबसे बड़ी संपत्ति हैं। जब कठिन समय आता है, तब वही आत्मीय सम्बन्धी; चाहे वे माता-पिता हों, गुरुजन हों या जीवन के मार्गदर्शक मित्र-एक संबल बनकर खड़े रहते हैं। किंतु इन सम्बन्धों का मूल्यांकन केवल धन-संपदा या सामाजिक प्रतिष्ठा से नहीं किया जाना चाहिए, अपितु उन्हें विवेक और भावनात्मक आत्मीयता के आधार पर सहेजकर रखा जाना चाहिए। धन जा सकता है, स्वास्थ्य भी डगमगा सकता है, किन्तु सच्चे सम्बन्ध एक गहरा आधार देते हैं।
जीवन प्रबन्धन का एक सूक्ष्म सूत्र यह भी है कि हमारे आसपास केवल वैभवशाली लोग ही नहीं, शील, ज्ञान और विवेक से सम्पन्न महापुरुष भी रहें। वीतराग, विचारशील और धर्मनिष्ठ व्यक्तियों का संग कठिन समय में न केवल आश्रय देता है, अपितु हमारे भीतर छिपी सम्भावनाओं को भी प्रकट करता है।
प्रकृति का नियम है- परिवर्तन। रात्रि की गहराई जितनी भी भयावह हो, वह प्रभात की सूचना है। साधक को यह स्मरण रखना चाहिए कि 'यह भी बीत जायेगा।' जीवन की सबसे बड़ी शक्ति यह है कि वह निरन्तर गति में है और हर अंधकार के बाद प्रकाश अवश्य आता है। धैर्य, श्रद्धा और विवेक के साथ जब हम संकट को सहन करते हैं, तो वह हमारी अंतरात्मा की शक्ति को प्रकट करता है।
सच्चा साधक वह नहीं जो संकट से भागे, अपितु वह है जो संकट में साधना का बीज रोपित कर सके। जो विपत्तियों में भी अपनी भाव-शक्ति को संयमित रखते हुए गुरु, शास्त्र और विवेक से प्रेरणा प्राप्त करता है- वही जीवन की अग्निपरीक्षा में खरा उतरता है।
इसलिए जब भी जीवन चुनौतीपूर्ण हो, अपने भीतर झांकिए, सद्विचारों का आश्रय लीजिए और ईश्वर की योजना पर विश्वास बनाए रखिए; क्योंकि जो कुछ घट रहा है, वह केवल आपको परखने के लिए नहीं, आपके भीतर छिपे दिव्य स्वरूप को प्रकाशित करने के लिए हो रहा है।
