स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: 'वसुधैव कुटुम्बकम्'- यह केवल सूत्रवाक्य नहीं...भारतीय संस्कृति की आत्मा है

स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन
swami avadheshanand giri Jeevan Darshan: जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज का आज 'वसुधैव कुटुम्बकम्' पर 'जीवन दर्शन'। यह एक ऐसा सूत्रवाक्य है, जो आज के खंडित और स्वार्थग्रस्त विश्व में शान्ति, सहिष्णुता और करुणा का अमूल्य संदेश देती है।
भारतवर्ष अनादि काल से ही लोकमंगल की भावनाओं, सार्वभौमिक कल्याण के सिद्धांतों और सह-अस्तित्व के उदात्त विचारों का संवाहक रहा है। यहां की सांस्कृतिक चेतना ने कभी भी भौतिक संसाधनों के संग्रह, उपनिवेशवादी विस्तार या शक्ति-प्रदर्शन को सर्वोपरि नहीं माना। इसके विपरीत, भारतीय ऋषि-मनीषियों ने जीवन की परम पूर्णता, आत्मान्वेषण और सार्वजनीन आनन्द के ऐसे सूत्र संसार को दिए हैं, जिनमें आत्म-कल्याण के साथ-साथ वसुधा के लिए वृहत्तर उत्तरदायित्व की भावना निहित है।
योग, ध्यान, और आयुर्वेद जैसे जीवनदायिनी मार्ग इसी विमर्श के अविच्छिन्न अंग हैं। योग, जहां चित्त की वृत्तियों के निरोध द्वारा आंतरिक शान्ति का मार्ग प्रशस्त करता है, वहीं आयुर्वेद 'स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनम्' के सिद्धान्त पर आधारित एक सम्पूर्ण जीवन-दृष्टि है, जो जीवन में संतुलन, सात्विकता और स्वास्थ्य की रक्षा करता है। भारतीय आध्यात्मिक जीवनशैली भौतिक लालसाओं से परे उठकर मानव मात्र को सह-अस्तित्व, करुणा और विश्वबन्धुत्व के पथ पर अग्रसर करती है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्'- यह केवल एक सूत्रवाक्य नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है, जो सम्पूर्ण जगत को एक कुटुम्ब मानती है। यह दृष्टि आज के खंडित और स्वार्थग्रस्त विश्व में शान्ति, सहिष्णुता और करुणा का अमूल्य संदेश देती है।
आज जब मानवता भोगवाद, उपभोक्तावाद और संकीर्ण स्वार्थों की ओर तेजी से अग्रसर हो रही है, भारत की यह विचारधारा और जीवनशैली सम्पूर्ण विश्व के लिए एक प्रकाश-स्तम्भ बन सकती है। सशक्त राष्ट्र, आदर्श समाज और सार्थक जीवन का निर्माण तभी संभव है, जब व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़कर, आत्मोन्नति के साथ-साथ सामाजिक उत्थान की भावना को अपनाए।
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, जब कुछ राष्ट्र अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते मानवता के मूल मूल्यों को रौंदते हुए आतंकवाद को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बढ़ावा दे रहे हैं, तब यह चिंतन और भी प्रासंगिक हो जाता है। आतंकवाद केवल एक राजनीतिक समस्या नहीं, यह मानवीय सभ्यता पर सीधा आघात है- एक ऐसा आघात जिसे किसी भी युग, किसी भी तर्क या किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता। स्वार्थपूर्ति की क्षुद्र आकांक्षाओं में डूबे कुछ विकृत मानस जब हिंसा, घृणा और उन्माद को वैचारिक या धार्मिक जामा पहनाकर मानव जीवन की शान्ति भंग करते हैं, तो यह न केवल अमानवीय कृत्य होता है, बल्कि राष्ट्र की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक विरासत के लिए भी गहन चुनौती बन जाता है। भय, भ्रम और विघटन फैलाना कोई विचारधारा नहीं- यह अराजकता की कोख से जन्मा एक विध्वंसक अभियान है।
समाज को ऐसी प्रवृत्तियों से सतत् सजग रहना होगा। भावनात्मक उन्माद और कट्टरता के विरुद्ध विवेक और एकता की मशाल जलानी होगी। राष्ट्रीय हितों की रक्षा और सभ्यता की निरन्तरता हेतु हम सबकी साझी जिम्मेदारी है कि हम आतंकवाद जैसी विभीषिका का डटकर प्रतिकार करें।
'राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस' के अवसर पर यह संकल्प लेना होगा कि हम न केवल चेतना के स्तर पर आतंक के विरुद्ध खड़े होंगे, बल्कि अपने आचरण, संवाद और प्रयासों से राष्ट्र की सुरक्षा में सक्रिय योगदान देंगे। जनभागीदारी से ही एक व्यापक आतंकवाद-विरोधी अभियान प्रभावशाली बन सकता है।
आइए! हम सब मिलकर भारत की उस मूल चेतना को पुनर्जीवित करें जो शान्ति, करुणा, आत्म-संयम और सार्वभौमिक भाईचारे की आधारशिला पर टिकी है। भारत की 'सॉफ्ट पावर'- उसकी संस्कृति, अध्यात्म और मूल्यों की शक्ति- आज न केवल उसकी वैश्विक पहचान को मजबूत करती है, बल्कि समस्त मानवता को एक नई दिशा देने का सामर्थ्य रखती है।