स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: 'सफलता की यात्रा संघर्षों के गलियारे से होकर ही निकलती है'

स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन
swami avadheshanand giri Jeevan Darshan: 'प्रत्येक मानव एक दिव्य चेतना का अंश है। उसके भीतर असाधारण बनने की शक्ति निहित है- मात्र उसे पहचानने और विकसित करने की आवश्यकता है।' जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से 'जीवन दर्शन' में आज जानिए 'कर्म' के बारे में ।
मानव जीवन केवल एक सांसों की श्रृंखला नहीं, अपितु जीवन सिद्धि निमित्त एक गहन साधना का अवसर है। यह ऐसा अमूल्य उपहार है, जिसमें अपार संभावनाएं, अनन्त क्षमताएं और दिव्यता का बीज छिपा है। किन्तु इन गुणों का विकास तभी संभव है, जब व्यक्ति अपने भीतर झांके, स्वरूप बोध की तत्परता जगाएं, ईश्वर में आस्था रखे, यथार्थ को समझे और अपने कर्मों को परमार्थ की दिशा में प्रवाहित करे।
प्रत्येक मानव एक दिव्य चेतना का अंश है। उसके भीतर असाधारण बनने की शक्ति निहित है- मात्र उसे पहचानने और विकसित करने की आवश्यकता है। यह अनुभूति जीवन की दिशा बदल सकती है। जब कोई स्वयं को केवल सीमित क्षमताओं वाला नहीं, बल्कि एक साधक, एक निर्माणकर्ता के रूप में देखता है, तो वह अपने भीतर के आलस्य, भय और हीनता को त्यागकर नवचेतना से भर जाता है।
कर्म की दिशा तब पावन हो जाती है, जब उसमें स्वार्थ नहीं, बल्कि परमार्थ की भावना जुड़ जाती है। यदि हमारी इच्छाशक्ति केवल निजी सफलता तक सीमित न रहकर लोक-कल्याण से जुड़ जाए, तो वह कर्म न केवल फलदायी होता है, बल्कि समाज को भी दिशा देता है। यह दृष्टिकोण हमें 'सफलता' की परिभाषा को पुनः परिभाषित करने की प्रेरणा देता है- जहां सफलता केवल उपलब्धियां नहीं, बल्कि उसका व्यापक प्रभाव भी जीवन के नए अर्थ उजागर करता है।
सफलता की यात्रा संघर्षों के गलियारे से होकर ही निकलती है। सद्बिचार हमें यह विवेक देते हैं कि संतोष कैसे पाया जाए और असफलता को कैसे स्वीकार कर उसे आत्म-विकास का साधन बनाया जाए। यह मानसिकता व्यक्ति को जीवन की हर परिस्थिति में स्थिर और संतुलित बनाती है। असफलता का स्वागत करना आत्मबल की पहचान है और यह दृष्टिकोण आत्म-साक्षात्कार की ओर पहला प्रयास होता है।
संकल्प यदि केवल आत्म-केन्द्रित हो, तो वह सीमित परिणाम देता है। लेकिन जब वही संकल्प समाज, देश और मानवता के हित में होता है, तब वह संकल्प ‘व्रत’ बन जाता है- ऐसा व्रत जो युगों को प्रभावित कर सकता है। यही व्यापक उद्देश्य संकल्प को पवित्रता और स्थायित्व प्रदान करता है। संकल्प बल हमें जीवन को गहराई से समझने, अपने भीतर की शक्तियों को पहचानने और कर्म को साधना में रूपांतरित करने की प्रेरणा देता है।
