स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: "स यद् ह वै तत् परमं ब्रह्म...' वेदान्त दर्शन का सार प्रस्तुत करता मुण्डकोपनिषद् का यह मंत्र

Swami Avadheshanand Giri- jeevan darshan 23 may 2025
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स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन

jeevan darshan: जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज के 'जीवन दर्शन' स्तम्भ में आज जानिए मुण्डकोपनिषद् के मंत्र का महत्व, आत्मज्ञान-ब्रह्मज्ञान की महत्ता को रेखांकित करता है।

"स यद् ह वै तत् परमं ब्रह्म वेद ब्रह्मैव भवति नास्याब्रह्मवित् कुले भवति ।
तरति शोकं तरति पाप्मानं गुहाग्रन्थिभ्यो विमुक्तोऽमृतो भवति ।।"

- मुण्डकोपनिषद् 1.1.4

मुण्डकोपनिषद् का यह मंत्र वेदान्त दर्शन का सार प्रस्तुत करता है, जो आत्मज्ञान-ब्रह्मज्ञान की महत्ता को रेखांकित करता है। यह मंत्र ब्रह्मज्ञान के गहन आध्यात्मिक और प्रायोगिक निहितार्थों को स्पष्ट करता है।

प्रथम, यह बताता है कि परम ब्रह्म का ज्ञान व्यक्ति को उससे एकरूप कर देता है। यह वेदान्त का मूल सिद्धान्त “तत्त्वमसि” तू वही है, को प्रतिपादित करता है। ब्रह्मज्ञान द्वारा व्यक्ति अपनी सीमित अहंता को त्यागकर शुद्ध चैतन्य स्वरूप को पहचान लेता है।

दूसरा, मंत्र कहता है कि ब्रह्मज्ञानी के कुल में अज्ञान नहीं रहता। यह दर्शाता है कि व्यक्तिगत ज्ञान का प्रभाव परिवार और समाज के आध्यात्मिक उत्थान तक विस्तारित होता है।

तीसरा, यह मंत्र शोक (दु:ख) और पाप (कर्म-बन्धन) से मुक्ति का मार्ग दिखाता है। अज्ञान और आसक्ति से उत्पन्न होने वाले दु:ख और कर्मों के बन्धन ब्रह्मज्ञान द्वारा समाप्त हो जाते हैं।

चौथा, यह हृदय की ग्रंथियों—अज्ञान, इच्छा और अहंकार—से मुक्ति की बात करता है, जो व्यक्ति को अपनी शाश्वत प्रकृति से जोड़ती है। अंततः, यह अमृतत्व की प्राप्ति अर्थात् जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति (मोक्ष) का वर्णन करता है।

इस मंत्र का प्रायोगिक महत्व भी अत्यन्त गहरा है। यह साधक को श्रवण, मनन और निदिध्यासन के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। आत्मानुशासन, सत्संग और गुरु मार्गदर्शन द्वारा व्यक्ति ब्रह्मज्ञान की ओर अग्रसर हो सकता है। साथ ही, यह मंत्र यह भी सिखाता है कि व्यक्तिगत आध्यात्मिक प्रगति समाज और परिवार के कल्याण का आधार बन सकती है। इस प्रकार, मुण्डकोपनिषद् का यह मंत्र आत्मज्ञान के माध्यम से परम मुक्ति और सामाजिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त करता है, जो साधक को न केवल व्यक्तिगत शान्ति, बल्कि सामूहिक कल्याण की ओर भी ले जाता है।

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