स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: 'प्राण ही वह आधार है, जो सृष्टि को एक सूत्र में पिरोता है...'

Swami Avadheshanand Giri- jeevan darshan 23 may 2025
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स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन

jeevan darshan: जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज के 'जीवन दर्शन' स्तम्भ में आज पढ़िए मंत्र- ''यदिदं किं च विश्वं सर्वं प्राण एव यत् प्राणति संनादति। महद्भयं वज्रं उद्यतं य इदं वेदन्ति संनादति हि ।।'' का महत्व।

jeevan darshan: 'विश्व में जो कुछ भी है- दृश्य और अदृश्य, सजीव और निर्जीव- सब कुछ प्राण 'जीवन शक्ति' द्वारा संचालित और जीवन्त है। प्राण केवल श्वांस नहीं, बल्कि वह दिव्य संनादति शक्ति है, जो समस्त सृष्टि को एक लय में बांधती है।' जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज के 'जीवन दर्शन' स्तम्भ में आज पढ़िए मंत्र- ''यदिदं किं च विश्वं सर्वं प्राण एव यत् प्राणति संनादति। महद्भयं वज्रं उद्यतं य इदं वेदन्ति संनादति हि ।।'' का महत्व।

यह मंत्र सृष्टि के आधार, जीवन की गतिशीलता और आत्मिक मुक्ति के मार्ग को स्पष्ट करता है। यह उन साधकों के लिए एक दीप-स्तम्भ है, जो अस्तित्व के गूढ़ रहस्यों को समझने और आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। मंत्र घोषणा करता है कि विश्व में जो कुछ भी है - दृश्य और अदृश्य, सजीव और निर्जीव- सब कुछ प्राण 'जीवन शक्ति' द्वारा संचालित और जीवन्त है। प्राण केवल श्वांस नहीं, बल्कि वह दिव्य संनादति शक्ति है, जो समस्त सृष्टि को एक लय में बांधती है। यह ब्रह्म का स्वरूप है, जो विश्व को गति और जीवन प्रदान करता है। यह गहन सत्य दर्शाता है कि प्राण ही वह आधार है, जो सृष्टि को एक सूत्र में पिरोता है।

मंत्र में उल्लिखित 'महद्भयं वज्रं उद्यतं' उस सर्वोच्च नियम या ब्रह्मशक्ति की ओर संकेत करता है, जिसे वज्र 'अलौकिक अस्त्र' के रूप में दर्शाया गया है। यह वज्र सृष्टि के संचालन का अटल नियम है, जो अज्ञान के आवरण को चूर-चूर करता है। यह भयावह और मुक्तिदायक दोनों है- जो इसे नहीं समझते, उनके लिए यह भयप्रद है, किन्तु जो इसे आत्मसात् करते हैं, उनके लिए यह मुक्ति का द्वार खोलता है। यह वज्र सत्य की शक्ति का प्रतीक है, जो मिथ्या को नष्ट कर देता है।

मंत्र यह स्पष्ट करता है कि जो इस सत्य को समझ लेता है- 'य इदं वेदन्ति'- वह ब्रह्म की दिव्य लय के साथ एकाकार हो जाता है। यह समझ केवल बौद्धिक नहीं, बल्कि आत्म-ज्ञान से उत्पन्न होने वाली परिवर्तनकारी अनुभूति है। प्राण को ब्रह्म का स्वरूप और सृष्टि को इसके नियमों से संचालित जानकर, साधक भय से मुक्त हो जाता है और अनन्त के साथ एक हो जाता है। यही मोक्ष है- जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति।

सृष्टि का प्रत्येक कण प्राण से संचालित है और प्राण स्वयं ब्रह्म का रूप है। आत्म-ज्ञान के माध्यम से इस सत्य को जानने वाला व्यक्ति न केवल सृष्टि के नियमों को समझता है, बल्कि उसका जीवन ब्रह्म की लय में समाहित हो जाता है। जीवन (प्राण), नियम (वज्र), और ज्ञान (ज्ञान) का यह त्रिवेणी संगम वेदान्त का चरम लक्ष्य है- ब्रह्म के साथ एकत्व और अनन्त शान्ति की प्राप्ति।

मुण्डकोपनिषद् के इस मंत्र में प्राण की सर्वव्यापक, ब्रह्मशक्ति के अटल नियम और आत्म-ज्ञान की परिवर्तनकारी शक्ति को उजागर करता है। यह मंत्र सिखाता है कि समस्त सृष्टि प्राण की दिव्य लय में संनादति है और ब्रह्म के नियमों से संचालित होती है। जो इस सत्य को हृदय में धारण करता है, वह अज्ञान के बन्धनों से मुक्त होकर मोक्ष के पथ पर अग्रसर होता है। यह मंत्र जीवन को एक पवित्र यात्रा के रूप में प्रस्तुत करता है, जो ब्रह्म के साथ एकत्व और अनन्त शान्ति की ओर ले जाती है।

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