Pitru Paksha 2025: किन चीजों की खरीदारी से बचें और क्या लेना होता है शुभ? जानिए क्या कहता है शास्त्र

Pitru Paksha 2025
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पितृ पक्ष 2025 में क्या खरीदना शुभ है और किन चीजों से परहेज करें? जानिए तर्पण व श्राद्ध के नियम और पितरों को प्रसन्न करने के उपाय।

Pitru Paksha 2025: भाद्रपद पूर्णिमा के बाद से आरंभ हुए पितृ पक्ष का समय सनातन संस्कृति में विशेष श्रद्धा और संयम का प्रतीक माना जाता है। यह 16 दिवसीय अवधि वह अवसर है जब हम अपने पूर्वजों का स्मरण करते हैं और उनके लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

हालांकि, यह समय केवल पूजा-पाठ का ही नहीं, बल्कि संयमित जीवनशैली और शुभ-अशुभ कर्मों के विवेकपूर्ण पालन का भी होता है। धर्मशास्त्रों में पितृ पक्ष के दौरान कुछ चीजों की खरीदारी को अशुभ और वर्जित बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इन चीजों को खरीदने से पितरों की कृपा की बजाय उनका रोष प्राप्त हो सकता है।

पितृपक्ष में इन चीजों की खरीदारी करने से बचें

लोहा या लोहे से बनी वस्तुएं

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान लोहे की खरीदारी करने से नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और यह पितृदोष को बढ़ा सकती है।

नए वस्त्र और फैशन आइटम्स

यह समय उत्सव नहीं, अपितु स्मरण और शांति का होता है। इसलिए नए कपड़ों, फैशन आइटम्स या भड़कीली चीज़ों की खरीदारी वर्जित मानी गई है।

सोने-चांदी के आभूषण

आभूषण खरीदना आमतौर पर शुभ माना जाता है, लेकिन पितृ पक्ष में इसे वर्जित माना गया है। इससे मांगलिक कार्य बाधित हो सकते हैं।

नया वाहन या इलेक्ट्रॉनिक्स खरीदना

वाहन खरीदना मंगल कार्य माना जाता है। पितृपक्ष में शुभ कार्य नहीं होते, इसलिए वाहन या कोई भी कीमती वस्तु लेने से बचना चाहिए।

भूमि, मकान या संपत्ति की खरीद

यह काल पूजन और निवेश का नहीं, पितृ चिंतन और तर्पण का होता है। संपत्ति संबंधित कार्यों को इस अवधि में टाल देना उचित माना जाता है।

जूते-चप्पल और झाड़ू

ये चीज़ें अशुद्धि से जुड़ी मानी जाती हैं। झाड़ू विशेष रूप से मां लक्ष्मी का प्रतीक मानी जाती है और पितृपक्ष में इसकी खरीद अशुभ मानी गई है।

शादी या मांगलिक सामग्री की खरीद

विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसी मांगलिक योजनाओं की खरीदारी इस समय नहीं करनी चाहिए। इससे कार्यों में बाधा और अशांति आ सकती है।

पितृपक्ष में इन चीज़ों को खरीदना होता है शुभ

जौ और काले तिल- तर्पण और पिंडदान में इनका प्रयोग किया जाता है। ये पितृशांति के मुख्य साधन हैं।

कुशा (दर्भा घास)- श्राद्ध कर्म में आवश्यक मानी जाती है। कुशा के बिना किसी भी तर्पण क्रिया को पूर्ण नहीं माना जाता।

चमेली का तेल और धूप-दीप- यह वातावरण को पवित्र करते हैं और पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करते हैं।

चावल, घी, मिश्री और फल- पिंडदान व नैवेद्य के लिए इनका उपयोग अनिवार्य होता है। इन चीजों की खरीद और दान दोनों पुण्यफलदायी होते हैं।

धार्मिक ग्रंथ और पुस्तकें- वेद, गीता, गरुड़ पुराण जैसे ग्रंथ पढ़ना और खरीदना इस समय शुभ माना गया है। इससे आत्मिक शुद्धि होती है।

पितृ पक्ष सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का श्रेष्ठ अवसर है। माना जाता है कि जो लोग इस समय श्रद्धा से तर्पण और नियमों का पालन करते हैं, उनके जीवन में सुख, शांति और संतति का आगमन होता है। यदि कोई व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित है, तो यह समय उसके निवारण का विशेष अवसर होता है। श्राद्ध, तर्पण, ब्राह्मण भोजन और पितरों के नाम पर दान करने से दोष शांत होता है।

डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। HariBhoomi.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।

अनिल कुमार


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