स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: जब सब सुखी होंगे, तो आप भी कैसे दुखी हो सकते हो? 

Swami Avdheshanand Giri ji maharaj Jeevan Darshan, Life Philosophy
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स्वामी अवधेशानंद जी गिरि- जीवन दर्शन: क्या बाह्य व्यथाओं के कारण हमारे भीतर का सुख, शांति और आनंद नष्ट हो जाता है?
Jeevan Darshan: जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से आज 'जीवन दर्शन' में जानिए सच्चा सुख और आनंद के बारे में। 

swami avadheshanand giri Jeevan Darshan: 'सर्वे भवंतु सुखिनः ...' ऋषियों द्वारा की गई महत्वपूर्ण प्रार्थना के मंत्र का एक अंश है। ऋषियों ने सुखी होने के लिए एक अचूक सूत्र दिया है - सुखी होना चाहते हो, तो सभी के सुख की कामना करो। जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से आज 'जीवन दर्शन' में जानिए सच्चा सुख और आनंद के बारे में।

भारत का ज्ञान व्यक्ति को शिष्य नहीं गुरु बनाता है, जबकि पाश्चात्य शिक्षण प्रणाली व्यक्ति को वस्तु बना रही है। मनुष्य को वे सभी आसक्तियां छोड़नी चाहिए, जो जीवन को संकीर्णता की ओर ले जाती हैं। यही त्याग वृत्ति अंत:करण को पवित्र कर भीतर के तेज को देदीप्यमान करती है।

हमारे यहां त्याग की परंपरा पुरातनकाल से चली आ रही है। आसक्ति से विरक्त हो जाने वालों की यहां पूजा की जाती है। क्षणभंगुर पदार्थों में नित्य प्रसन्नता और आनंद का अभाव है। इसलिए उस सुख की खोज करें जो चिरस्थायी है। आत्म ज्ञान ही सच्ची और स्थायी प्रसन्नता का स्रोत है। अतः अपने स्वरूप की ओर लौटें, क्योंकि वहीं सच्चा सुख और आनंद छिपा है। संसार से सुख लेने की इच्छा ही दु:ख का मूल है।

देखा जाए तो इस संसार में कोई भी सुखी नहीं है। जिस सुख का हमें आभास हो रहा है वह वास्तविक नहीं है। अज्ञानी लोग इसे सुख मानकर इसी में डूबे हुए हैं। जन्म के साथ मरण, यौवन के साथ बुढ़ापा और विकास के साथ ह्रास जुड़ा हुआ है। इस जीवन में कब क्या घटित होगा इसका किसी को नहीं पता। आधुनिकता के इस दौर में दुनिया को स्थायी समाधान केवल अध्यात्म ही दे सकता है। यह विश्व का सर्वोपरि विज्ञान है। अतः अध्यात्म हमें दु:ख से मुक्ति और चिरस्थायी प्रसन्नता का मार्ग प्रशस्त करता है ...।

“सर्वे भवंतु सुखिनः ..." ऋषियों द्वारा की गई महत्वपूर्ण प्रार्थना के मंत्र का एक अंश है। ऋषियों ने सुखी होने के लिए एक अचूक सूत्र दिया है - सुखी होना चाहते हो, तो सभी के सुख की कामना करो। जब सब सुखी होंगे, तो आप भी कैसे दुखी हो सकते हो? बाहर से आने वाली सुख की बयार आपको सुख से भर देगी और आपके भीतर दूसरों को सुखी करने की सक्रिय भावना आपके पास दु:ख को फटकने तक नहीं देगी। जीवन में सच्ची प्रसन्नता का सूत्र है यह।

श्रद्धेय 'प्रभुश्री जी' ने सुखी होने और परदु:ख हरने के सूत्र अपने व्याख्यानों में समय-समय पर तथा अनेक रूपों में दिए हैं। उनके उपदेशों को आत्मसात करने से सद्ज्ञान की प्राप्ति होगी। अतः नित्य स्वाध्याय-मनन करने से आपके जीवन से दु:खों की आत्यंतिक निवृत्ति होगी और आप अपने-परायों के बीच सुख को निरपेक्ष भाव से बांट सकेंगे ...!

नवीन जीवन पद्धति अपनाएं हर क्षण का सदुपयोग करें।अवसर का दुरुपयोग करने पर व्यक्ति अपना सर्वस्व गंवा बैठता है। फिर उसे पछताना पड़ता है। ऋषि-मुनियों तथा साधु-संतों ने मानव जाति के लिए सम तथा विषम परिस्थितियों में भी अपने धर्म व मूल्यों की मर्यादा बनाए रखने का संदेश दिया है।

संसार में अधिक राग और मोह ईश्वर प्राप्ति में बाधक है। इसलिए त्याग ही उस परमसत्य को पाने का सहज और सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। त्याग से ही महापुरुषों ने संसार को प्रकाशमान किया है। जिसने भी जीवन में त्याग की भावना को अंगीकार किया उसने ही उच्च से उच्चतम मानदंड स्थापित किए हैं। सच्चा सुख व शांति त्यागने में है न कि किसी प्रकार कुछ हासिल कर लेने में। इसलिए गीता में भी कहा गया है कि त्याग से तत्काल शांति की प्राप्ति होती है और जहां शांति है, वहीं सच्चा सुख है...।

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