स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: माँ जानकी का प्राकट्य दिवस- वो अजा, आद्या और प्रथमा हैं

swami avadheshanand giri Jeevan Darshan: 'माँ के नेत्र नील कमल-दल के सदृश हैं और सर्व समर्थ होते हुए भी भगवान श्रीराम नित्य विद्यमान सत्ता और अकारण करुणा का स्मरण ही उनका अवलंबन है।' जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से आज 'जीवन दर्शन' में जानिए माँ जानकी के प्राकट्य दिवस पर विशेष।
जगत् जननी माँ जानकी उद्भव स्थिति और संहारकारिणी अर्थात् सम्पूर्ण सृष्टि की नियामक सत्ता हैं। सीतामाता मूल प्रकृति स्वरूपा हैं। सामान्य अर्थों में क्षेत्र को खेत कहा जाता है, बाल्मीकि रामायण के आख्यान के अनुसार माँ का प्राकट्य विदेहराज जनक द्वारा खेत में हल चलाने से हुआ था।
भूमि से उत्पन्न होने के कारण माँ का एक नाम भूमिजा भी है। मन्वंतर के भेद से माँ जानकी का प्राकट्य दिवस फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भी मनाया जाता है। तत्वत: वो अजा, आद्या और प्रथमा हैं, किन्तु भक्तों की भावनाओं के अनुरूप वो समय-समय पर अवतार रूप में प्रकट होती हैं।
श्रीमद्भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने शरीर को क्षेत्र अर्थात् खेत कहा है। 'इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते' इस भाव से आदिकवि महर्षि बाल्मिकी के कथन 'क्षेत्रं शोधयता लब्धा' का अर्थ- जप-तप, स्वाध्याय आदि के द्वारा शरीर, मन और बुद्धि के शोधन करने के अनन्तर प्रस्फुटित ब्रह्मऋता जो पूर्ण परात्पर ब्रह्म भगवान श्रीराम अर्थात् आत्मतत्व से हमारा साक्षात्कार करा दे परमात्मा की उस अह्लादिनी शक्ति का नाम 'सीता' है।
माँ के नेत्र नील कमल-दल के सदृश हैं और सर्व समर्थ होते हुए भी भगवान श्रीराम नित्य विद्यमान सत्ता और अकारण करुणा का स्मरण ही उनका अवलंबन है। परात्पर ब्रह्म भगवान श्रीराम की नित्य लीला सहचरी, त्याग, प्रेम, धैर्य, करुणा, संयम और अनुग्रह की प्रतिमूर्ति पराम्बा माँ जानकी जी के प्राकट्य दिवस 'सीता नवमी' की हार्दिक शुभकामनाएँ।
