स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: आदर पाने की इच्छा है, तो आदर देना सीखिए; प्रेम की चाह है, तो प्रेम दीजिए

Swami Avdheshanand Giri ji maharaj Jeevan Darshan, Life Philosophy
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स्वामी अवधेशानंद जी गिरि- जीवन दर्शन: क्या बाह्य व्यथाओं के कारण हमारे भीतर का सुख, शांति और आनंद नष्ट हो जाता है?
Jeevan Darshan: जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से आज 'जीवन दर्शन' में जानिए, बंधन और मोक्ष का कारण क्या है?

Swami Avadheshanand Giri Jeevan Darshan: संसार में प्रत्येक महान परिवर्तन की नींव एक शुभ संकल्प से ही आरंभ होती है। संकल्प केवल मानसिक विचार नहीं, बल्कि वह बीज है, जिसमें समस्त लौकिक एवं पारलौकिक उपलब्धियों का वृक्ष सन्निहित होता है। जब हृदय में शुभता के भाव जाग्रत होते हैं, तब जीवन की दिशा भी उसी अनुरूप परिवर्तित होने लगती है। हमारे विचार ही हमारे कर्मों का आधार बनते हैं और कर्म ही हमारे भाग्य का निर्माण करते हैं। अतः यदि हम जीवन में श्रेष्ठता, सफलता एवं संतोष की आकांक्षा रखते हैं, तो उसके मूल में शुभ संकल्पों का होना अनिवार्य है। जिस प्रकार बीज की प्रकृति ही वृक्ष की दिशा तय करती है, उसी प्रकार हमारे भीतर उपजे विचार ही हमारे जीवन की वास्तविकता बनते हैं।

यदि हम अपने आसपास की सृष्टि को सुंदर, सदाशय और सहृदय देखना चाहते हैं, तो हमें पहले अपने अंतःकरण को उसी शुभता से अभिमंत्रित करना होगा। यह जगत् वैसा ही प्रतीत होता है, जैसा हमारा दृष्टिकोण होता है। जो व्यक्ति सद्भाव, आदर और करुणा से भरे होते हैं, उन्हें हर ओर वही भाव झलकता है।

शास्त्रों में भी कहा गया है- 'मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।' अर्थात् मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है। अतः यदि हम श्रेष्ठ बनना चाहते हैं, तो पहले दूसरों को श्रेष्ठ मानने की दृष्टि विकसित करनी होगी। आदर पाने की इच्छा है, तो आदर देना सीखिए, प्रेम की चाह है, तो प्रेम दीजिए। इस प्रकार, शुभ संकल्पों से भावित जीवन ही वह पथ है, जो हमें आत्म-विकास, समाजहित और परम कल्याण की ओर ले जाता है। इसलिए, अपने मन को शुभ विचारों की भूमि बनाइए और देखिए! जीवन स्वयं एक दिव्य यात्रा में परिवर्तित हो जाएगा।

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