Logo
क्या आप जानते हैं श्राद्ध कर्म कितने प्रकार के और कौन-कौन होते हैं। साथ ही इनके महत्वों के बारे में। अगर नहीं तो आइए विस्तार से जानते हैं।

Pitru Paksha 2024: सनातन धर्म में प्रत्येक साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष की शुरुआत हो जाती है और इसकी समाप्ति आश्विन माह की अमावस्या तिथि को होती है। पितृपक्ष के दौरान पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए यह समय सबसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

इन दिनों पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है। साथ ही ब्रह्मणों को भोजन भी कराया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है श्राद्ध कितने प्रकार के होते हैं। साथ ही किस श्राद्ध को करने की विधि और महत्व क्या होता है। आइए विस्तार से जानते हैं।

दरअसल, भविष्य पुराण के अनुसार, शास्त्रों में 12 प्रकार के श्राद्ध कर्म के बारे में बताया गया है। यदि आप इन 12 प्रकार के श्राद्ध कर्मों को करते हैं तो इससे पितरों की आत्मा तृप्त होती है साथ ही उनकी कृपा भी प्राप्त होती है।

जानें कौन-कौनसे हैं 12 प्रकार के श्राद्ध कर्म

नित्य श्राद्ध- इस श्राद्ध को प्रतिदिन नियमित रूप से किया जाता है। जो लोग भोजन के पहले गौ ग्रास निकालते हैं वो श्राद्ध कर्म कहलाता है। मान्यता है कि इस श्राद्ध को करने से पितृ देव की आत्मा तृप्त होती है। साथ ही घर में सुख-शांति बनी रहती है।

काम्य श्राद्ध- यह श्राद्ध किसी की लंबी उम्र, पुत्र प्राप्ति और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। साथ ही मनोकामना पूर्ति के लिए बहुत ही सर्वश्रेष्ठ है।

नैमित्तिक श्राद्ध- भविष्य पुराण के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान किए जाने वाला श्राद्ध को नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं।

वृद्धि श्राद्ध- शास्त्र के अनुसार, विवाह, उपनयन, मुंडन आदि में किए जाने वाले श्राद्ध को वृद्धि श्राद्ध कहते हैं। साथ ही इसे नान्दीमुख श्राद्ध भी कहा जाता है।

सपिंडीकरण श्राद्ध- भविष्य पुराण के अनुसार, मृत्यु के 12वें दिन या कुछ स्थान पर 13 वें दिन सपिंडीकरण श्राद्ध किया जाता है। इस श्राद्ध से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति मिलती है।

पार्वण श्राद्ध- यह श्राद्ध पूर्णिमा, अमावस्या या संक्रांति जैसे दिनों में किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस श्राद्ध को पारिवारिक श्राद्ध कहा जाता है।

गोष्ठी श्राद्ध- पुराण के अनुसार, यह श्राद्ध गौशाला में वंशवृद्धि के लिए किया जाता है।

शुद्धि श्राद्ध- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह श्राद्ध पवित्रता और शुद्धिकरण के लिए किया जाता है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण श्राद्ध होता है।

कर्मांग श्राद्ध- कर्मांग श्राद्ध गर्भाधान, सीमंत, पुंसवन संस्कार के समय किया जाता है।

दैविक श्राद्ध- पंचांग के अनुसार, दैविक श्राद्ध सप्तमी तिथियों में हविष्यान्न से देवताओं के लिए किया जाता है।

यात्रार्थ श्राद्ध- यात्रार्थ श्राद्ध किसी तीर्थ यात्रा पर जाने से पहले और वहां जाने पर किया जाता है।

पुष्टयर्थ श्राद्ध- इस श्राद्ध को करने से वंश और कारोबार में वृद्धि होती है।

यह भी पढ़ें- पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए करें पितृ स्त्रोत का पाठ, जीवन हो जाएगा धन-धान्य

डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। Hari Bhoomi इसकी पुष्टि नहीं करता है।

CH Govt hbm ad
5379487