mahalaxmi vrat 2025: समृद्धि और सौभाग्य के लिए करें महालक्ष्मी व्रत; जानें पूजा विधि और परंपरा

महालक्ष्मी व्रत से पहले बाजार में रौनक, जानें पूजा विधि और धार्मिक महत्व
Mahalaxmi Vrat 2025: मध्य प्रदेश में महालक्ष्मी व्रत से एक दिन पहले शुक्रवार (12 सितंबर 2025) को बाजारों में खासा उत्साह देखने को मिला। सुहागवती महिलाओं ने परंपरा अनुसार, मिट्टी के हाथी, पूजा सामग्री, दीपक, दुर्वा, और पीले वस्त्र की खरीदारी की। आइए जानते हैं महालक्ष्मी व्रत कथा का महत्व और विधि।
अश्विन कृष्ण अष्टमी के अवसर पर रविवार, 14 सितंबर को महालक्ष्मी जीवत्पुत्रिका व्रत मनाया जाएगा। यह व्रत सुख, समृद्धि और संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता है। महिलाएं इसमें विशेष पूजा-अनुष्ठान करती हैं।
महालक्ष्मी व्रत की परंपरा क्या है?
मां चामुंडा दरबार के पुजारी पं. रामजीवन दुबे ने बताया कि व्रत करने वाली महिलाएं प्रातःकाल 16 बार पानी से स्नान कर व्रत धारण करती हैं। शाम को 16 प्रकार के पकवान बनाकर मिट्टी के हाथी पर विराजमान महालक्ष्मी देवी की पूजा करती हैं।
इस दौरान 16 दीपक जलाए जाते हैं। साथ ही हवन, आरती और कथा के बाद महिलाएं चन्द्र देव और देवी लक्ष्मी को अर्घ्य देती हैं।
महिलाएं पीले वस्त्र से ‘चीर’ निकालकर पल्लू में बांधती हैं। कच्चे सूत में 16 गांठें लगाकर दुर्बा के साथ बांधा जाता है। यह चीर बांधना परिवार में समृद्धि और सौभाग्य के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
महालक्ष्मी व्रत: भोपाल में सामूहिक पूजन
भोपाल के शीतलदास की बागिया और खटलापुरा घाट जैसे प्रमुख स्थलों पर महिलाएं महालक्ष्मी व्रत की सामूहिक पूजन करती हैं। माता लक्ष्मी की मूर्ति और श्रीयंत्र की स्थापना कर कमल के फूल, मिठाई, सोने-चांदी के सिक्के अर्पित करती हैं। इस दौरान मां लक्ष्मी के आठ रूपों की पूजा मंत्रों के साथ की जाती है।
महालक्ष्मी व्रत का महत्व
महालक्ष्मी व्रत न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि सामाजिक एकता और महिला सहभागिता का भी उदाहरण है। इस दिन शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक सामूहिक पूजा-अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है।
