Jagannath Rath Yatra: जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी 5 बातें, आपको जरूर जाननी चाहिए

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पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा एक भव्य पर्व है। जानें भगवान जगन्नाथ, रथ निर्माण, गुंडिचा यात्रा और रथ खींचने की खास 5 बातें इस लेख में।

Jagannath Rath Yatra: भारत के ओडिशा राज्य के पुरी शहर में हर साल आयोजित होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा एक भव्य और दिव्य पर्व है, जिसे विश्वभर में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह यात्रा मुख्यतः भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथों पर सवार होकर जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक जाने की यात्रा है।

इस यात्रा की शुरुआत हर वर्ष आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को होती है और यह यात्रा लगभग 9 दिनों तक चलती है। यह परंपरा हजारों वर्षों पुरानी मानी जाती है और इसे वैदिक काल से जोड़कर देखा जाता है। इस उत्सव को देखने के लिए लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं, जबकि लाखों लोग इसे टीवी और डिजिटल माध्यमों से भी देखते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी 5 बातें जो आपको जरूर जाननी चाहिए।

1. भगवान जगन्नाथ का रहस्यमय स्वरूप

भगवान जगन्नाथ का स्वरूप हिन्दू देवताओं से थोड़ा अलग है। उनकी बड़ी-बड़ी आंखें और बिना हाथ-पैर की आकृति उन्हें रहस्यमयी बनाती है। कहा जाता है कि यह स्वरूप उस समय को दर्शाता है जब भगवान श्रीकृष्ण मृत्यु के बाद लकड़ी के स्वरूप में अवतरित हुए। पुरी के जगन्नाथ मंदिर में स्थापित इन मूर्तियों को हर 12 से 19 वर्षों में बदल दिया जाता है, इस प्रक्रिया को नवकलेवर कहा जाता है।

2. हर साल बनते हैं नए रथ

जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए हर साल नए रथ बनाए जाते हैं। इन रथों को बनाने में सैकड़ों कारीगर महीनों तक मेहनत करते हैं। रथ निर्माण के लिए केवल विशेष किस्म की फली, सागौन या नीम की लकड़ी का ही उपयोग होता है, और इसके लिए खास वन विभाग की अनुमति ली जाती है।

3. रथ खींचने का पुण्य

मान्यता है कि जो भी भक्त भगवान के रथ की रस्सी को खींचता है, उसे विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और उसके जीवन के पाप नष्ट हो जाते हैं। रथ खींचने के लिए लाखों श्रद्धालु पुरी में एकत्रित होते हैं। यह आयोजन भक्ति, श्रद्धा और समर्पण का अद्भुत संगम होता है।

4. गुंडिचा मंदिर की यात्रा

तीनों देवता रथों पर सवार होकर 3 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं। इसे भगवान की मौसी का घर माना जाता है। यहाँ देवता सात दिनों तक विश्राम करते हैं और फिर 'बहुड़ा यात्रा' के माध्यम से वापस श्रीमंदिर लौटते हैं।

5. रथ यात्रा में सभी समान

पुरी की रथ यात्रा भारत की सामाजिक समानता और समरसता की मिसाल है। राजा से लेकर आमजन तक, हर कोई रथ खींचने में समान रूप से भाग लेता है। किसी जाति, धर्म या वर्ग का भेद नहीं होता। यही कारण है कि इसे जन-जन की यात्रा कहा जाता है।

डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। HariBhoomi.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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