Gupt Navratri 2025: गुप्त नवरात्रि के दिनों में करें यह पाठ, सभी कष्टों से मिलेगी मुक्ति

X
26 जून 2025 से गुप्त नवरात्रि का शुभारंभ हो चुका है। जानें इस नवरात्रि का महत्व, पूजा विधि और दुर्गा चालीसा के पाठ से मिलने वाले लाभ।
Gupt Navratri 2025: आज से आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि शुरू हो गई है। यह नौ दिवसीय साधना पर्व विशेष रूप से तांत्रिक साधकों, उपासकों और श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। गुप्त नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की गुप्त रूप से आराधना की जाती है, जिससे साधक को आत्मबल, सिद्धि और समस्त बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होती है। इस दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ करना काफी शुभ माना जाता है। यहां पढ़ें दुर्गा चालीसा का पाठ।
श्री दुर्गा चालीसा
(मां दुर्गा की महिमा और कृपा का पावन स्तोत्र)
॥ चोपाई ॥
- नमो नमो दुर्गे सुख करणी,
- नमो नमो दुर्गे दुःख हरणी॥
- निराकार है ज्योति तुम्हारी,
- तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
- शशि ललाट मुख महाविशाला,
- नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
- रूप मातु को अधिक सुहावे,
- दरश करत जन अति सुख पावे॥
- तुम संसार शक्ति लय कीना,
- पालन हेतु अन्न धन दीना॥
- अन्नपूर्णा हुई जग पाला,
- तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
- प्रलयकाल सब नाशन हारी,
- तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
- शिव योगी तुम्हरे गुण गावें,
- ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
- रूप सरस्वती का तुम धारा,
- दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
- धरयो रूप नरसिंह को अम्बा,
- परगट भई फाड़कर खम्बा॥
- रक्षा करी प्रह्लाद बचायो,
- हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
- लक्ष्मी रूप धर जग माहीं,
- श्री नारायण अंग समाहीं॥
- क्षीर सागर में करत विलासा,
- दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
- हिंगलाज में तुम्हीं भवानी,
- महिमा अमित न जात बखानी॥
- मातंगी अरु धूमावति माता,
- भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
- श्री भैरवी तारा जग तारिणी,
- छिन्नमस्ता भव दुःख निवारिणी॥
- केहरि वाहन सोह भवानी,
- लांगुर वीर चलत अगवानी॥
- कर में खप्पर खड्ग विराजै,
- जाको देख काल डर भाजै॥
- सोहै अस्त्र और त्रिशूला,
- जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
- नगरकोट में तुम्हीं विराजत,
- तिहूँ लोक में डंका बाजत॥
- शुम्भ-निशुम्भ दानव तुम मारे,
- रक्तबीज शंखन संहारे॥
- महिषासुर नृप अति अभिमानी,
- जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
- रूप कराल कालिका धारा,
- सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
- परी गाढ़ संतन पर जब जब,
- भई सहाय मातु तुम तब तब॥
- अमरपुरी अरु बासव लोका,
- तब महिमा सब रहें अशोका॥
- ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी,
- तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
- प्रेम भक्ति से जो यश गावे,
- दुःख-दरिद्र निकट नहीं आवे॥
- ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई,
- जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
- जोगी सुर मुनि कहत पुकारा,
- योग न हो बिन शक्ति तुम्हारा॥
- शंकर आचार्य तप कीनो,
- काम क्रोध जीति सब लीनो॥
- निशिदिन ध्यान धरो शंकर को,
- काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
- शक्ति रूप का मरम न पायो,
- शक्ति गई तब मन पछितायो॥
- शरणागत हुई कीर्ति बखानी,
- जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
- भई प्रसन्न आदि जगदम्बा,
- दी शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
- मोको मातु कष्ट अति घेरो,
- तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
- आशा तृष्णा निपट सतावे,
- मोह मदादिक सब विनशावे॥
- शत्रु नाश कीजै महारानी,
- सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
- करो कृपा हे मातु दयाला,
- ऋद्धि-सिद्धि दे, करहु निहाला॥
- जब लगि जियूं दया फल पाऊं,
- तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
- श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावे,
- सब सुख भोग परमपद पावे॥
- देवीदास शरण निज जानी,
- कहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥ दोहा ॥
- शरणागत रक्षा करे,
- भक्त रहे निःशंक।
- मैं आया तेरी शरण में,
- मातु लीजिए अंक॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा समाप्त ॥
