छठ पूजा के नियम: छठी मैया की कृपा पाने के लिए भूलकर भी न करें ये गलतियां, वरना पछताएंगे

Chhath Puja Niyam: कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से शुरू हुआ छठ महापर्व सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना का पर्व है। चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत में पवित्रता, संयम और श्रद्धा का विशेष महत्व होता है। व्रती महिलाएं पूरे नियम, अनुशासन और आत्मसंयम के साथ यह व्रत करती हैं। मान्यता है कि अगर व्रत के दौरान कोई गलती हो जाए, तो पूजा का फल अधूरा रह जाता है। आइए जानते हैं छठ पूजा के महत्वपूर्ण नियम और वे गलतियां जो भूलकर भी नहीं करनी चाहिए।
अर्घ्य देने से पहले कुछ भी ग्रहण न करें
छठ व्रती को सूर्यदेव को अर्घ्य देने से पहले कुछ भी खाना या पीना नहीं चाहिए। यह नियम व्रत की पवित्रता का मूल है। व्रती को दिनभर निर्जला रहना चाहिए और भूमि पर ही विश्राम करना चाहिए, ताकि शरीर और मन दोनों शुद्ध बने रहें।
धातु के बर्तन का प्रयोग न करें
छठ पूजा में मिट्टी के बर्तन, दीपक और चूल्हे का विशेष महत्व होता है। पारंपरिक मान्यता है कि पूजा के दौरान स्टील, चांदी, तांबा या प्लास्टिक जैसे बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिए। मिट्टी का चूल्हा और बर्तन पवित्रता और प्राकृतिक ऊर्जा का प्रतीक माने गए हैं।
प्रसाद को झूठा या अपवित्र न करें
छठ पूजा का प्रसाद अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसे बनाते समय कुछ भी खाना या चखना वर्जित है। प्रसाद बनने से पहले या दौरान किसी भी खाद्य पदार्थ का सेवन करने से वह अशुद्ध हो जाता है और व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता। छठ मैया को चढ़ाया गया प्रसाद हमेशा निर्मल, सात्विक और शुद्ध भाव से तैयार किया जाना चाहिए।
स्वच्छता का रखें पूरा ध्यान
छठ पूजा का सबसे बड़ा नियम है, शुद्धता और सफाई। व्रती को स्वयं को शुद्ध रखना चाहिए और पूजा स्थल को प्रतिदिन साफ करना चाहिए। किसी भी पूजा सामग्री को छूने से पहले हाथ धोना अनिवार्य है। यह व्रत केवल शरीर की नहीं, बल्कि मन की पवित्रता का भी प्रतीक है।
तामसिक भोजन से करें परहेज
पूरे छठ व्रत के दौरान सात्विक भोजन का पालन करना आवश्यक है। व्रती को लहसुन, प्याज, मांसाहार, अंडा और शराब जैसी तामसिक चीजों से पूरी तरह दूर रहना चाहिए। इस व्रत का उद्देश्य शुद्ध आहार और शुद्ध विचार बनाए रखना है।
प्रसाद बनाने की जगह रखें शुद्ध और अलग
छठ पूजा के लिए प्रसाद (जैसे ठेकुआ, चावल, दूध, फल) जिस स्थान पर तैयार किया जा रहा हो, वह स्थान रसोई या भोजन की जगह से अलग और पूरी तरह साफ-सुथरा होना चाहिए। उस स्थान पर किसी अन्य भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। श्रद्धा, अनुशासन और पवित्रता ही व्रत की सफलता का आधार हैं।
अर्घ्य का समय कभी न करें नजरअंदाज
छठ पूजा में सूर्य अर्घ्य सबसे महत्वपूर्ण क्षण होता है। अर्घ्य देते समय सूर्योदय और सूर्यास्त के सटीक समय का पालन करना चाहिए। देर करना या समय चूकना व्रत की पूर्णता को प्रभावित कर सकता है। अर्घ्य देते समय मन में केवल श्रद्धा और कृतज्ञता के भाव होने चाहिए।
व्रत के दौरान क्रोध या अपशब्द से बचें
छठ पूजा में केवल शारीरिक शुद्धता नहीं, बल्कि मानसिक स्थिरता भी आवश्यक है। व्रती को किसी के प्रति क्रोध, कटु वचन या अपशब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए। पूरे व्रत के दौरान शांत चित्त रहना और सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखना छठ मैया की कृपा प्राप्त करने का मूल मार्ग है।
छठ पूजा में नियमों का महत्व
- छठ व्रत आत्मसंयम, आस्था और मातृत्व का पर्व है।
- हर नियम व्रती को शुद्धता, अनुशासन और श्रद्धा की दिशा में ले जाता है।
- पवित्रता से किए गए इस व्रत से सूर्यदेव और छठ मैया दोनों प्रसन्न होते हैं,
- और व्रती को जीवन में स्वास्थ्य, संतान सुख और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
छठ पूजा केवल एक व्रत नहीं, बल्कि जीवन को अनुशासन, संयम और श्रद्धा से जोड़ने की परंपरा है। इन नियमों का पालन करके व्रती न केवल छठ मैया का आशीर्वाद पाते हैं, बल्कि परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का संचार भी करते हैं। याद रखें छठ पूजा में हर नियम का पालन आस्था नहीं, आत्मशुद्धि का प्रतीक है।
डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। HariBhoomi.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।
