RBI ने दी लोगों को राहत, 50 बेसिस प्वॉइंट की कटौती- EMI पर कम चुकाने होंगे पैसे

RBI ने दी लोगों को राहत, 50 बेसिस प्वॉइंट की कटौती- EMI पर कम चुकाने होंगे पैसे
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बीते 9 महीनों में आरबीआई ने रेपो रेट में चौथी बार कटौती की है।
नई दिल्ली. आरबीआई गवर्नर ने मंगलवार को राहत की खबर सुनाते हुए रेपो रेट 7.25 फीसदी से घटाकर 6.75 फीसदी कर दी है। इस बड़े फैसले के तहत रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट की कमी की गई है। इसी के साथ रेपो रेट घटने का असर भी शुरू हो गया है। इस कड़ी में सबसे पहले आंध्रा बैंक ने लोन की EMI में आधा फीसदी की कमी की है। वहीं आरबीआई द्वारा रेपो रेट कम किए जाने की घोषणा के बाद से ही माना जा रहा था कि कटौती से लोन पर लगाने वाले ब्याज दरों के सस्ते होने की संभावना है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बीते 9 महीनों में आरबीआई ने रेपो रेट में चौथी बार कटौती की है। थोक महंगाई दर 10 महीने के निचले स्तर पर पहुंचने की वजह से रिज़र्व बैंक द्वारा कटौती का यह फैसला लिया गया है। वहीं सीआरआर में कटौती का कोई फैसला नहीं लिया गया है।
फिलहाल, सीआरआर चार प्रतिशत पर यथावत रखी गई है। दूसरी ओर एसएलआर को एक साल में एक प्रतिशत घटाने की घोषणा की है। जिससे आने वाले दिनों में लोगों के घर, कार और अन्य सस्ता लोन लेने का सपना पूरा होने की उम्मीद है।
माना जा रहा है कि राजन ने यह फैसला बाजार में महंगाई पर ब्रेक लगाने के लिए लिया है। इससे इंडस्ट्रियल ग्रोथ बढ़ने के आसार हैं। साथ ही साथ वही जानकारों कटौती का असर सीधे तौर पर बैंको द्वारा मिलाने वाले होम लोन और ऑटो लोन सस्ते होने के आसार है। रेपो रेट वह दर है जिसपर अन्य बैंक रिज़र्व बैंक से कैश उधार लेते है।
सीआरआर को आप ऐसे समझ सकते हैं:-
सभी बैंकों के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें। इसे कैश रिजर्व रेश्यो कहते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि अगर कभी एक साथ बहुत से जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आ जाएं तो बैंक डिफॉल्ट न कर सके।
क्या है अहमियतः आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बिना बाजार से लिक्विडिटी कम करना चाहता है, तो वह सीआरआर बढ़ा देता है। इससे बैंकों के पास बाजार में कर्ज देने के लिए कम रकम बचती है। इसके उलट सीआरआर को घटाने से बाजार में मनी सप्लाई बढ़ जाती है।
एसएलआर को आप ऐसे समझ सकते हैं:-
कमर्शल बैंकों के लिए अपने हर दिन के कारोबार के अंत में नकद, सोना और सरकारी सिक्यॉरिटीज में निवेश के रूप में एक खास रकम रिजर्व बैंक के पास रखना जरूरी होता है, जो वह किसी भी आपात देनदारी को पूरा करने में इस्तेमाल कर सकें। जिस रेट पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते है, उसे एसएलआर कहते हैं।
क्या है अहमियत: इसका प्रयोग भी लिक्विडिटी कंट्रोल के लिए किया जाता है। इस पर रिजर्व बैंक नज़र रखता है ताकि बैंकों के उधार देने पर नियंत्रण रखा जा सकता है। एसएलआर बैंकों की कुल मांग और देनदारी द्वारा निर्धारित किया जाता है।
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