सोच समझकर सही उम्र में करें समागम की शुरूआत, वरना उलटा पड़ जाएगा दांव

सोच समझकर सही उम्र में करें समागम की शुरूआत, वरना उलटा पड़ जाएगा दांव
X
जब शारीरिक परिवर्तन का दौर शुरू होता है और विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है।

समागम की वास्तविक उम्र वह होती है जब कोई पुरुष या महिला मेडिकली बालिग हो जाते हैं। लेकिन आज के समय में इसकी उम्र तय कर पाना कठिन है। टीन एज या किशोरावस्था से ही लोगों में उत्सुकता बढ़ने लगती है। यही उम्र होती है जब शारीरिक परिवर्तन का दौर शुरू होता है और विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है। इसके साथ ही जिज्ञासा का दौर शुरू होता है। समागम एक आश्चर्यजनक अनुभव है। लेकिन दूसरी ओर यह एक बारूदी सुरंग भी है। इसलिये इसमें प्रवेश करने से पहले इस पर पूरा सोच विचार करना और पूरी जानकारी होना जरूरी है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार लड़कियों को तब तक समागम नहीं करना चाहिए जब तक वे इसके प्रति जागरुक न हों और शारीरिक रूप से सक्षम न हो। पूर्ण जागरुकता न होने से एक ओर जहां गर्भ धारण करने का खतरा है तो दूसरी ओर किशोरावस्था में समागम करने पर सरवाइकल कैंसर की भी संभावना रहती है।

समागम की उम्र आज के समय का महत्वपूर्ण मुद्दा है। आज मीडिया व आम चर्चा में यह सभी जगह गाहे बगाहे उठता रहता। आम निष्कर्ष और धारणा के आधार पर इसकी की औसत आयु 60 वर्ष तक आंकी जाती है। लेकिन आज मेडिकल साइंस और दिनचर्या के आधार पर ये बढ़ सकती है। महिला और पुरुष चक्र के आधार पर दोंनों का पैटर्न अलग-अलग होता है। आदमी में पौरुष कठोरता (उत्तेजना) तब शुरू मानी जाती है जब वह गर्भस्थान में स्थिर रह सकता है। लड़के 18 वर्ष की उम्र के लगभग समागम क्रिया के लिए उंचाई पा लेते है। जब यह प्वांइट ऑन हो जाता है तो उत्तेजना और चर्मोत्‍कर्ष की क्षमता का एक बूंद से पीछा किया जाता है और यह क्षमता 30 साल की आयु तक पूर्णता लिये होती है।

जहां वह मानसिक रूप से एक चर्मोत्‍कर्ष के बाद दूसरे के लि‍ए योग्य हो जाता है। 40 साल की उम्र तक लोग मानसिक रूप से उत्तेजकता और क्रिया कलापों को लेकर शिथिल होने लगते हैं। यह क्रमिक झुकाव 50 साल की उम्र तक चलता रहता है और यहां आकर व्यापक अस्थिरता उत्पन्न होती है। इस उम्र पर पुरुष की क्षमता उसकी अंतिम किशोरावस्था और शुरुआती यौवनावस्था की आधी रह जाती है। 40 के बाद समागम के प्रति लगाव और उत्साह घटने लगता है। उत्तेजना कम शक्तिशाली और कठिन हो जाती है और चर्मोत्‍कर्ष भी कमजोर पड़ जाता है।

उम्र के अनुरूप क्षमता और लगाव में कमी के कई कारण हैं। इनमें कई शारीरिक और इंद्रिय संबंधी हैं। इनमें हृदय और उसका परिभ्रमणतंत्र का कमजोर होते जाना, ग्रंथि और हार्मोनल सिस्टम तथा नाड़ी तंत्र की क्षमता आदि हैं।

लेकिन इनके विपरीत देखा गया है कि जिनकी पौरुष क्षमता कमजोर होती है उनमें 90 फीसदी लोग मानसिक रूप से कमजोर होते हैं न कि शारीरिक या इंद्रिय रूप से। इनमें से भी 60 फीसदी लोग तो उत्तेजना और स्खलन संबंधी परेशानियों के लिये सिर्फ मानसिक रूप से ही पीड़ित होते हैं न कि शारीरिक रूप से।

महिलाओं में क्षमता (संतानोत्पत्ति क्षमता) पुरुषों से जल्दी आ जाती है। अक्सर यह समय 2 वर्ष पहले होता है। यौवन का आरंभ लड़कियों में बदलाव लाता है जो 14 या 15 साल की उम्र के पहले प्रारंभ नहीं होता है। महिलाओं की उम्र के अनुसार क्षमता का गिराव पुरुषों से भिन्न होता है। महिलाओं में उम्र के हिसाब से जैसे-जैसे हार्मोन का बनना न्युन होता जाता है नि‍जी अंग की दीवार का भीतरी आवरण पतला और कठोर होता जाता है साथ ही नि‍जी अंग स्निग्धता में भी कमी आ जाती है। जो समागम के दौरान अनकम्फर्ट (असंतोषजनक) होता है। किन्तु इस अवस्था में भी महिला अपनी किसी उम्र दराज महिला के बराबर ही सुख का आनंद उठा सकती है। हालांकि इस सुख तक पहुंचने में लगने वाला समय ज्यादा होता जाता है। यह परिवर्तन मेनोपाज (रजोनिवृत्ति) तक धीरे-धीरे होते हैं। जो लगभग 45 से 55 साल की अवस्था में होता है। इसके बाद काफी नाटकीय परिवर्तन होता है। इसके पश्चात महिलाओं में समागम की रुचि खत्म होने लगती है या यह कहा जा सकता है कि महिला समागम का आनंद नहीं ले सकती है।

और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

Next Story