उपलब्धियों की सूची लंबी करने की कवायद

नई दिल्ली. देश चुनावी मूड में है। पार्टियां अपने-अपने स्तर पर मतदाताओं को आकर्षित करने में लगी हैं। केंद्र की सत्ताधारी दल भी इसमें पीछे नहीं है। अब जब देश में आम चुनावों की तिथियों की घोषणा कभी भी हो सकती है ऐसे में मतदाताओं को लुभाने के लिए वह अपनी सरकार के मार्फत आनन-फानन में फैसले लेती दिख रही है। हालांकि उसके फैसले कितने प्रभावी होंगे यह अभी तय नहीं है, परंतु वह चुनावी लाभ जरूर लेने की कोशिश करेगी। हालांकि पूर्व में भी अलग-अलग समय पर अलग-अलग सरकारों की ओर से ऐसी कोशिशें होती रही हैं।
कई पार्टियां चुनावों में लंबे-चौड़े वादे कर सत्ता पाती हैं। इसमें से कितने वादे तो अव्यावहारिक होते हैं। सत्ता मिलते ही अधिकांश सरकारें जनता से किए वादे भूल जाती हैं या आधे-अधूरे पूरे कर जिम्मेदारियों से इतिश्री कर लेती हैं। केंद्रीय कैबिनेट ने बृहस्पतिवार को अल्पसंख्यकों के लिए बहुप्रतीक्षित समान अवसर आयोग के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए यूपीए-दो सरकार का यह बड़ा चुनावी दांव माना जा सकता है। सच्चर आयोग ने इसकी सिफारिश की थी। उनकी सिफारिशों के अनुरूप आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की बात कही गई है।
माना जा रहा है कि यह आयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले भेदभाव संबंधी शिकायतों की न केवल सुनवाई करेगा, बल्कि कानूनी कार्रवाई भी करेगा। कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए-एक के दौरान ही इसे गठित करने का वादा किया गया था पर दस वर्षों के बाद अब चुनाव से पहले मंजूरी देना उसकी मंशा पर सवाल खडेÞ करता है। कांग्रेस नीत यूपीए सरकार हर मोर्चे पर नाकाम साबित हुई है। हाल में आए तमाम सर्वे बता रहे हैं कि कांग्रेस अपनी ऐतिहासिक हार की ओर बढ़ रही है। ऐसे में उसकी यह कवायद अपनी हार को छोटा करने की एक कोशिश मानी जा सकती है।
अभी कुछ ही दिन पहले केंद्रीय कैबिनेट ने जाटों को पिछड़े वर्ग में शामिल कर आरक्षण देने का फैसला किया था, हालांकि उस फैसले को भी आधा-अधूरा माना जा रहा है। वहीं जैन समुदाय को भी आरक्षण देने की बात हुई है। अब मुसलमानों को साधने की कोशिश हो रही है। अब चला चली की बेला में कांग्रेस को वंचितों की याद आ रही है। हाल ही में रियायती सिलेंडरों की संख्या को नौ से बढ़ाकर बारह करने का फैसला किया गया। 7200 किलोमीटर लंबाई की सड़कों को राजमार्ग बनाने व नया वन क्षेत्र तैयार करने के उसके फैसले भी इसी श्रेणी में रखे जा सकते हैं।
ये सभी मात्र दिखावटी ही हैं। क्योंकि वह अंतिम समय में इन्हें लागू कर पाने की स्थिति में नहीं है। और न ही सरकार इनके अमल की प्रक्रिया शुरू कर पाएगी। दरअसल, सरकार की नीयत इन्हें अपनी उपलब्धियों में शामिल करने की है न कि लोगों को सहुलियत देने और देश में छाई नीतिगत अपंगता को दूर कर बदहाल अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने की। क्योंकि पांच वर्षों के कार्यकाल में सिवाय भ्रष्टाचार, घोटाले, महंगाई और गिरती विकास दर के उसकी झोली में कुछ नहीं है। पर उसके ये फैसले चुनावों में कितने मददगार होंगे यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
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