Opinion: 'कौन जात हो', राहुल गांधी से पूछे जाने पर हंगामा

Opinion: दशकों से ये सवाल भारत की एक बड़ी आबादी से पूछा जाता रहा है। 'भेदभाव' ही इस प्रश्न का एकमात्र उद्देश्य और परिणाम है। अगड़ी जाति के लोगों ने इसका उपयोग पिछड़ी जाति के लोगों की पहचान करने, उन्हें 'उनकी' तरह का काम प्रदान करने और उनके साथ अलग व्यवहार करने के लिए किया है।
युग की वापसी की ओर इशारा
हालकि जाति व्यवस्था हमेशा कर्म आधारित रही है, लेकिन हम किसी तरह इसे जन्म के आधार पर वर्गीकृत करने में कामयाब रहे है, और हाल की घटनाएं इस युग की वापसी की ओर इशारा कर राही हैं। हाल ही में लोकसभा में बहस के दौरान अनुराग ठाकुर द्वारा राहुल गांधी की जाति पूछे जाने पर हंगामा मच गया। अखिलेश यादव ने आपत्ति जताते हुए कहा कि कोई किसी की जाति कैसे पूछ सकता है? इन सभी घटनाओं के बाद भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी द्वारा पत्रकार का नाम और उसके मालिक का नाम पूछने और अखिलेश यादव द्वारा पत्रकार की जाति पूछने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
जाति जनगणना की मांग करने वाले राहुल गाँधी ने चुनावों के दौरान 'जितनी आबादी-उतना हक्क' का नारा बुलंद किया है। इसके पहले पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह जी ने यह कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है। इतिहास में देखा जाए तो कांग्रेस पार्टी के पूर्वजों ने कभी भी जाति और आरक्षण का समर्थन नहीं किया। पंडित नेहरू, उनकी सुपुत्री इंदिरा गाँधी और इनके पुत्र राजीव गाँधी ने जातिवाद की राजनीति और आरक्षण का हमेशा विरोध किया है। कांग्रेस पार्टी का बदला हुआ चाल चारित्र और चेहरा एक चिंतनीय विषय है। हाल में अमेरिका में कमला हैरिस ने भी कहा कि अगर ट्रम्प चुनकर आए तो वो देश का संविधान बदल देंगे।
जाति जनगणना की नई मांग
अब अगर इन बयानों को जोड़ें तो एक श्रृंखला नजर आती है। जब वर्षों से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जाति-आधारित आरक्षण के खिलाफ खड़ा है, तब जाति जनगणना की नई मांग अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को अगले स्तर पर ले जाने के लिए मुस्लिम कोटा के लिए रास्ता बनाने की दिशा में शायद एक नया कदम है? 27 जून 1961 को जवाहरलाल नेहरू ने एक पत्र में व्यति-आधारित आरक्षण पर अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने घोषणा की कि 'मुझे किसी भी रूप में आरक्षण पसंद नहीं है। खासकर नौकरियों में आरक्षण। मैं ऐसे किसी भी कदम के खिलाफ हूं जो अक्षमता को बढ़ावा देता है और हमें सामान्यता की ओर ले जाता है।' नेहरू ने भारत में सामाजिक न्याय के सबसे महान उपायों में से एक, जो डॉ. भीमराव आंबेडकर का सबसे बड़ा सपना था, को 'अक्षमता' और 'औसत दर्ज' को बढ़ावा देने के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया था।
नेहरू की पुत्री, इंदिरा गांधी ने 1977 में सत्ता में आई जनता पाटों सरकार द्वारा आदेशित मंडल आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। वास्तव में, उन्होंने जाति आधारित पार्टियों का मुकाबला करने के लिए एक नारा गढ़ा था 'ना जात पर ना पात पर, मोहर लगेगी हाथ पर'। इंदिरा गाँधी के पुत्र, राजीव गांधी ने भी मंडल रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया था। जब पीएम रहते हुए बोपों सिंह ने ओबीसी आरक्षण लागू किया तो राजीव ने इसे देश को जातिगत आधार पर बांटने की कोशिश बताया। वास्तव में, 3 मार्च, 1985 को एक अखबार को दिए एक साक्षात्कार में, राजीव गांधी ने बयान दिया कि आरक्षण के नाम पर 'बुद्धओं को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। सितंबर 1990 में विपक्ष के नेता के तौर पर राजीव ने वीपी सिंह की तुलना उन अंग्रेजों से की थी जिन्होंने देश को जाति और धर्म के आधार पर बांटा था।
राहूल आसानी से भूल जाते हैं
राजीव गाँधी के पुत्र राहुल गांधी ने 2022 में जाति जनगणना का आह्वान किया। कांग्रेस के नेतृत्व चाली यूपीए सरकार ने 2011 में जाति जनगणना की और रिपोर्ट के निष्कर्षों को सार्वजनिक किए बिना उसे ठन्डे बस्ते में डाल दिया। राहूल आसानी से भूल जाते हैं कि कांग्रेस ने यह सुनिश्चित किया कि संविधान द्वारा अनिवार्य एससी एसटी आरक्षण को मुसलमानों के पक्ष में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (1981) और जामिया मिलिया इस्लामिया (2011) से हटा दिया गया, भले ही दोनों सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं। यह नेहरू-गांधी राजवंश द्वारा दिखाए गए पाखंड के कई कृत्यों में से एक है।
2011 में, यह राजद जैसे कांग्रेस के सहयोगों ही थे जिन्होंने जाति जनगणना कराने के लिए यूपीए पर दबाव डाला, जिससे कांग्रेस की दशकों से ऐसा न करने की घोषित नीति की स्थिति पलट गई। 2011 में भो, पी चिदंबरम, आनंद शर्मा और पवन कुमार बंसल जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने जाति जनगणना पर आपत्ति जताई थी और मंत्रियों का एक समूह इस पर कभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाया। 4,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत बाले सर्वेक्षण को पूरा करने में पांच साल लग गए लेकिन इसमें तकनीकी खामियां थीं और यह कभी सार्वजनिक नहीं हुआ। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस नेताओं ने जाति जनगणना के खिलाफ राजवंश के रुख का भी हवाला दिया।
राहुल ने सबक नहीं सीखा
राहुल गांधी ने लोकसभा के लिए अपने चुनाव अभियान को एक स्वर में इस अवहान पर केंद्रित किया कि भाजपा आरक्षण को खत्म कर देगी और भारत के संविधान को बदल देगी। जनता ने इंडों गठबंधन से ज्यादा सोटे भाजपा को दीं। राहुल ने सबक नहीं सीखा। दरअसल, जाति जनगणना और अंतर्निहित जातिवाद के विरोध के बावजूद कांग्रेस ने पिछले कुछ वर्षों में मुस्लिम कोटा बनाने की नीति में में महारत हासिल कर ली है। अतीत में कांग्रेस ने मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए दो मॉडल अपनाए थे। पहला कर्नाटक में था जहां पूर्व सीएम वीरप्पा मोइली ने 1994 में ओचीसी के भीतर ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले मुसलमानों, बौद्धों और अनुसूचित जातियों के लिए 6 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी।
दूसरा मॉडल आंध्र प्रदेश में लागू किया गया था, जहां पूर्व कांग्रेस सीएम वाईएस राजशेखर रेड्डी ने मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की। कांग्रेस के 2009 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में विशेष रूप से उल्लेख किया गया था कि 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में अल्पसंख्यकों के लिए उनके सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर सरकारी रोजगार और शिक्षा में आरक्षण का बीड़ा उठाया है। हम इस नीति को राष्ट्रीय स्तर पर अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है।' दूपीए सरकार के तहत 2004 में न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा की अध्यक्षता में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग की नियुक्ति एक उदाहरण है।
अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति
रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों को ध्यान से पढ़ने पर पता चलता है कि कांग्रेस पार्टी के एक वर्ग ने एससी-एसटी आरक्षण को समाप्त करने की योजना बनाई थी। चाहे वह अनुसूचित जातियों का डी- शेड्यूलिंग हो, या एससी-एसटी आरक्षण को समाप्त करने की समय सीमा तय करने की सिफारिश हो। यह चिंताजनक है कि छह दशक से अधिक के कांग्रेस शासन को राहुल गांधी भूल गए हैं। यह प्रासंगिक नहीं लगता कि राहुल के सलाहकारों ने उनसे पार्टी की नीति को त्यागने के लिए कहा हो। अधिक संभावना यह प्रतीत होती है कि राहुल से कहा गया है कि वे केवल मुस्लिम आरक्षण के लिए रास्ता चनाने और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति को अगले स्तर पर ले जाने के लिए जाति जनगणना पर जोर दें।
उज्ज्वल वीरेंद्र दीपक: (लेखक कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से एमपीए हैं. ये उनके अपने विचार हैं।)
