फाइलें सार्वजनिक होने से सच सामने आएगा

नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 64 फाइलों को पश्चिम बंगाल की सरकार ने सार्वजनिक कर साहसिक काम किया है। अब जैसे-जैसे इनका अध्ययन होने लगेगा वैसे-वैसे नेताजी की मौत या उन्हें आखिरी बार कहीं देखे जाने से जुड़े कई रहस्यों से पर्दा उठता जाएगा। वैसे भी देश को सच जानने का हक है। सार्वजनिक की गई फाइलों से मुख्य तौर पर चार तरह की जानकारियां मिलने की उम्मीद है। पहली, नेताजी की मौत का असली सच क्या है? 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में जिस विमान हादसे में नेताजी की मौत हो जाने की बात कही जाती है उस दिन कोईविमान हादसा हुआ था या नहीं। दूसरी, नेताजी के जो करीबी या रिश्तेदार थे उनकी जासूसी करवाई गई थी या नहीं। तीसरी, ये कि जासूसी की जानकारियों को ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियों समेत किस-किस से साझा किया गया था। चौथी, शॉलमारी साधू या गुमनामी बाबा जिनके बारे में यह दावा किया जाता रहा है कि वही नेताजी थे, उनसे जुड़ी फाइलें हो सकती हैं।
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देश में लंबे समय से मांग होती रही है कि सरकारें नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करें जिससे उनके जीवन के अंतिम दिनों के बारे में पता चल सके, लेकिन सभी सरकारें देश में कानून व्यवस्था खराब होने और मित्र देशों से रिश्ते बिगड़ने की बात कह उन पर विराम लगाती रहीं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम देश में लोगों के मन में एक साथ कई भाव पैदा करता है। देश के लोगों ने उन्हें केवल 48 साल की उम्र तक देखा। देश में उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि 1938 में जब वे कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़े तो महात्मा गांधी के विरोध के बाद भी जीत गए। हालांकि बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू से मतभेदों के चलते उन्होंने कांग्रेस छोड़ ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक बना लिया। उनकी बढ़ती स्वीकार्यता से घबड़ाकर अंग्रेजों ने उन्हें नजरबंद कर दिया तो भेष बदलकर अफगानिस्तान चले गए। वहां से सोवियत संघ होते हुए र्जमनी पहुंचे और हिटलर से मिलकर भारत की आजादी के लिए सर्मथन मांगा। वहां से सिंगापुर पहुंचकर आजाद हिंद फौज बनाई। वहां से जापानी सेना के साथ भारत की ओर बढ़े और अंडमान निकोबार में भारत की अंतरिम सरकार बनाई।
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द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान हार गया और सर्मपण कर दिया। उसके बाद नेताजी बैंकॉक से टोक्यो जाने वाले हवाई जहाज पर सवार हुए। 18 अगस्त, 1945 को उसके ताइवान में दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर आई। उसके बाद का उनका जीवन आज तक रहस्य बना हुआ है। उनकी मौत की जांच के लिए तीन आयोग बन चुके हैं। कहते हैं कि विमान दुर्घटना में मारे जाने की खबर नेताजी ने जानबूझकर फैलाई थी। अमेरिका व ब्रिटिश की जांच एजेंसियों ने भी अपनी जांच में दावा किया हैकि नेताजी कम से कम 1964 तक जिंदा थे और भारत आए थे। जाहिर है, राज्य सरकार द्वारा गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने के बाद केंद्र सरकार पर भी दबाव बढ़ सकता हैकि वह भी अपने पास मौजूद नेताजी से संबंधित गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करे क्योंकि माना जा रहा हैकि उनसे जुड़े सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज केंद्र सरकार के पास ही हैं।
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