आरक्षण व्यवस्था पर नए सिरे से हो विमर्श

आरक्षण की मांग को लेकर राजस्थान के गुर्जर नेता एक बार फिर आंदोलन के रास्ते पर हैं। उन्होंने यातायात व्यवस्था को बाधित कर रखा है। दिल्ली-मुबंई रेल मार्ग पर उनका कब्जा हो गया है जिससे रेलवे प्रशासन को 150 रेलगाड़ियों को रद्द करना पड़ रहा है। और कई अन्य का मार्ग बदलना पड़ रहा है। इससे इस भीषण गर्मी में हजारों लोगों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इससे यात्रियों के समय के साथ धन की भी हानि हो रही है। अकेले रेलवे को ही करीब पंद्रह करोड़ रुपये का हर रोज घाटा हो रहा है। गुर्जर नेताओं का ऐसा आचरण नया नहीं है, उन्होंने आरक्षण की मांग मनवाने के लिए पिछली बार भी ऐसा ही रास्ता अपनाया था। वे रेल के पटरियों को उखाड़ने में भी संकोच नहीं करते हैं।
दिल्ली:दिल्ली सरकार ने नौकरशाही में किया फेरबदल, 9 'IAS' अधिकारियों का तबादला
आंदोलनरत गुर्जर जिस तरह से अपनी मांग पर अड़े हैं उससे प्रतीत हो रहा है कि लोगों की परेशानियों से उनका कोई लेना-देना नहीं। लगता है कि उनकी मंशा ज्यादा समस्या खड़ी करने की है ताकि राज्य सरकार समझौता करने के लिए विवश हो जाए। यह तो जबरदस्ती अपनी मांग मनवाने वाला रवैया प्रतीत होता है। इस तरह से समाज को बंधक बनाकर आंदोलन खड़ा करने की प्रवृत्ति का समर्थन नहीं किया जा सकता। दरअसल, गुर्जर समुदाय की मांग पर राजस्थान सरकार ने उन्हें विशेष पिछड़ा वर्ग के तहत पांच फीसदी आरक्षण प्रदान कर दिया था। बाद में इसे राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। जाहिर है, अदालत में यह मामला विचाराधीन है और ऐसे में जब तक इस पर वहां से कोई फैसला नहीं हो जाता तब तक राज्य सरकार चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती। ऐसा नहीं है कि आंदोलनकारी इससे अवगत नहीं हैं, वे पूरी वस्तुस्थिति समझ रहे हैं, फिर भी मांग पर अड़े हैं कि उन्हें तुरंत आरक्षण का लाभ दिया जाए। यही नहीं इस गतिरोध को दूर करने के लिए राज्य सरकार के बातचीत के आमंत्रण को भी उन्होंने ठुकरा दिया है। ये तो जानबूझकर टकराव लेना हुआ। बेहतर होता कि गुर्जर नेता आरक्षण के मामले को जल्द निपटाने के लिए अदालत से अनुरोध करते।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने तोड़ी चुप्पी, बोफोर्स को बताया मीडिया "ट्रॉयल"
हालांकि देश में किसी समुदाय के आरक्षण की मांग को लेकर राजनीति गरमाने का यह कोई नया मामला नहीं है। इससे पहले पूर्व की यूपीए सरकार द्वारा आनन-फानन में दिए गए जाट आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने गत महीने निरस्त कर दिया था। वहीं महाराष्ट्र में पूर्वकी कांग्रेस और राकांपा की गठबंधन की सरकार द्वारा मराठियों और मुसलमानों को दिया गया आरक्षण भी विवादों में आ गया है। संविधान में मूलत: वंचित और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों को मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण देने की व्यवस्था की गईहै, लेकिन इसकी एक सीमा भी निर्धारित की गई है। किसी भी सूरत में आरक्षण की पचास फीसदी की सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। हालांकि राजनीतिक लाभ लेने के लिए इस व्यवस्था का दुरुपयोग भी खूब हुआ है। यही वजह है कि आजादी के छह दशक बाद भी आरक्षण मांगने वाले जातिगत समूहों की संख्या कम होने की बजाय बढ़ती जा रही है। इसीलिए नीति निर्माताओं और आरक्षण चाहने वाले समुदायों को इसकी मौजूदा व्यवस्था पर नए सिरे से विचार-विमर्श करना चाहिए।
दीदी के मंत्री ने कटवा दी नाक, सरेआम बंधवाए पुलिस वाले से जूते की फीते
खबरों की अपडेट पाने के लिए लाइक करें हमारे इस फेसबुक पेज को फेसबुक हरिभूमि, हमें फॉलो करें ट्विटर और पिंटरेस्ट पर-
और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS