पारंपरिक राजनीति की राह पर ‘आप’, आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी

पारंपरिक राजनीति की राह पर ‘आप’, आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी
X
नेताओं की निजी महत्वाकांक्षाएं और गुटबाजी ने पार्टी के अंदर गहरा विभाजन पैदा कर दिया है।
करीब दो साल पूर्व भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कोख से जन्मी आम आदमी पार्टी (आप) से उम्मीद की जा रही थी कि वह सैद्धांतिक रूप से पारंपरिक राजनीति से अलग होगी, लेकिन पार्टी नेताओं के बीच जिस तरह से आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है उससे साफ है कि उनके निजी हित उन सिद्धांतों पर भारी पड़ रहा है, जिसके दम पर आप दूसरों से अलग पार्टी होने का दावा करती है। नेताओं की निजी महत्वाकांक्षाएं और गुटबाजी ने पार्टी के अंदर गहरा विभाजन पैदा कर दिया है।
आप के संस्थापक सदस्यों प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और अरविंद केजरीवाल के बीच पार्टी के कामकाज के तौर-तरीकों और विस्तार के मुद्दे पर गहरे मतभेद हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि मौजूदा समय में अरविंद केजरीवाल ही आप का सबसे बड़ा चेहरा हैं। पार्टी ने उन्हीं को आगे रखकर दिल्ली में चुनाव लड़ा था। लोगों ने उन पर भरोसा भी किया, लेकिन आप को दिशा देने में प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव जैसे नेताओं की भूमिका भी काफी अहम है। प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और आप के लोकपाल एडमिरल रामदास के लीक हुए पत्रों के मुताबिक उनकी नजर में आज सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि पार्टी में अंदरूनी लोकतंत्र का अभाव है और पार्टी में हाईकमान कल्चर पैदा होने का खतरा पैदा हो गया है। उनका मानना है कि अब यह पार्टीभी दूसरे दलों की तरह वन मैन शो का शिकार हो गई है। यह सही हैकि राजनीतिक दल जीत के लिए एक नेता पर निर्भर रहते हैं।
फिर तो इससे यही जाहिर होता है कि देश में एक नई और साफ सुथरी राजनीति के वादे के गाजेबाजे के साथ वजूद में आई आप उन्हीं बुराइयां में जकड़ रही है, जिसका वह विरोध करती रही है। इस लिहाज से देखें तो आप दूसरे दलों से अलग नहीं है, लेकिन वह जिस नई राजनीति की बात करती है, उसमें उससे आतंरिक लोकतंत्र और स्वराज की ज्यादा उम्मीद की जाती है। अब सवाल हैकि केजरीवाल को एक ही साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री व आप के राष्ट्रीय संयोजक के पद पर रहना चाहिए की नहीं? आप के प्रवक्ता संजय सिंह सहित उसके अधिकांश नेताओं की मानें तो केजरीवाल को पार्टी का हाईकामन मान लेने में कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि मतदाताओं को आकर्षित करने की उनमें क्षमता है। आम भारतीय संस्कृति भी यही कहती है।
ज्यादातर दलों में व्यक्तिवाद भी इसी वजह से पैदा हुआ कि लोग वोट लोकप्रिय नेता के नाम पर देते हैं। सत्ता वोट से ही मिलती है न कि आतंरिक लोकतंत्र, स्वच्छ व पारदर्शी व्यवहार या एक व्यक्ति-एक पद जैसे सिद्धांतों से। ऐसे में यदि केजरीवाल पार्टी का वन मैन चेहरा बन गये हैं तो यह भारतीय राजनीति की स्वाभाविक घटना ही है। मौजूदा घटनाक्रम से साफ है कि जो लोग इस सच्चाई से समझौता करेंगे उनकी ही आप में जगह है। बुधवार को यह साफ हो जाएगा कि प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव के साथ क्या सलूक होता है। जिन लोगों ने आप को नईराजनीति का वाहक मान लिया था उनके लिए मौजूदा विवाद निराशाजनक है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कुछ लोग अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति कर रहे हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि दूसरी आम राजनीतिक पार्टियों की सूची में एक और दल का नाम जुड़ गया है।
खबरों की अपडेट पाने के लिए लाइक करें हमारे इस फेसबुक पेज को फेसबुक हरिभूमि, हमें फॉलो करें ट्विटर और पिंटरेस्‍ट पर-

और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

Next Story