सुप्रीम कोर्ट का मीडिया को आदेशः पीड़ितों को तस्वीरें प्रचारित-प्रसारित ना करें

उच्चतम न्यायालय ने देश में हर तरफ महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर आज गहरी चिंता व्यक्त करते हुये प्रिंट, इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया से मंगलवार को कहा कि देश में यौन उत्पीड़न की घटना की पीड़ितों की तस्वीरें किसी भी रूप में प्रकाशित या प्रदर्शित नहीं की जाये।
शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि हर दिन इस तरह की चार घटनाएं देश में रिपोर्ट हो रही हैं। अदालत ने इस तरह के अपराधों को रोकने के लिये कार्रवाई पर जोर दिया।
शीर्ष अदालत ने यौन उत्पीड़न से पीड़ित नाबालिगों का इंटरव्यू नहीं करने की चेतावनी देते हुये कहा कि इसका दिमाग पर गंभीर असर पड़ता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि बाल यौन उत्पीड़न से पीड़ित बच्चों से सिर्फ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोगों के सदस्य ही काउन्सिलर की मौजूदगी में इंटरव्यू कर सकते हैं।
हालांकि, पीठ ने साफ कर दिया कि उसका आदेश जांच एजेंसियों को इस मामले की जांच करने से नहीं रोकेगा और कहा कि वे दो अगस्त के शीर्ष अदालत के निर्देश से बंधे रहेंगे।
न्यायालय ने बिहार के मुजफ्फरपुर में एक एनजीओ द्वारा संचालित बालिका आश्रय गृह में लड़कियों के कथित यौन शोषण की घटना को ‘डरावना' बताया और इस आश्रय गृह का संचालन करने वाले गैर सरकारी संगठन को वित्तीय सहायता देने के लिये बिहार सरकार को आड़े हाथ लिया।
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इस आश्रय गृह की लड़कियों से कथित रूप से बलात्कार और उनके यौन शोषण की घटनायें हुयी हैं। न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से देशभर में आश्रय गृहों में नाबालिगों के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिये प्रस्तावित कदमों के बारे में उसे जानकारी देने को कहा। पीठ ने कहा, ‘‘क्या किया जाना है। लड़कियों और महिलाओं से हर तरफ बलात्कार किया जा रहा है।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2016 में भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार की 38,947 बलात्कार घटनाएं हुईं। इसका मतलब है कि हर दिन चार महिलाओं से बलात्कार हुआ। ये रिपोर्ट किये गए आंकड़े हैं।' पीठ ने कहा कि भारत में बलात्कार के रिपोर्ट होने वाले मामलों की संख्या ‘परेशान' करने वाली है।
पीठ ने पटना के एक व्यक्ति के पत्र लिखने के बाद बिहार की घटना का संज्ञान लिया है। आज की सुनवाई के दौरान पीठ ने उत्तर प्रदेश के देवरिया में एक आश्रय गृह में लड़कियों के कथित यौन शोषण, मध्य प्रदेश में लड़कियों को खुला बेचे जाने की खबरों का उल्लेख करते हुए कहा कि एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश बलात्कार के मामले में दो शीर्ष राज्य हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘यह गंभीर चिंता का विषय है। किसी को इस तरह के अपराधों को रोकने के लिये कदम उठाना है। किसी को इसे करना है। भारत में हर छह घंटे में एक महिला से बलात्कार होता है।'
शीर्ष अदालत ने मुजफ्फरपुर में आश्रय गृह चलाने वाले एनजीओ का वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये बिहार सरकार को आड़े हाथ लेते हुए पूछा कि संगठन की पृष्ठभूमि की जांच क्यों नहीं की गई।
पीठ ने कहा, ‘‘इन सबका मतलब है कि लोग कर का भुगतान कर रहे हैं और जनता के धन का इस तरह की गतिविधियों में इस्तेमाल हो रहा है। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं। क्यों राज्य ने ऐसा होने दिया। ऐसा लगता है कि राज्य ने इस तरह की गतिविधियों का वित्तपोषण करने के लिये धन दिया।'
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बिहार सरकार की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि राज्य ने घटना के प्रकाश में आने के बाद जरूरी कदम उठाए हैं। टीआईएसएस का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा कि मुजफ्फरपुर की घटना बिहार में अकेली नहीं है क्योंकि राज्य में एनजीओ द्वारा संचालित इस तरह के 110 संस्थानों में से 15 संस्थानों के बारे में ‘गंभीर चिंता' जताई गई है, जो सरकार द्वारा वित्तपोषित हैं।
कुमार ने कहा कि इन 15 संस्थानों में से मुजफ्फरपुर आश्रय गृह मामले समेत नौ मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई है और इन मामलों के सिलसिले में गिरफ्तारियां की गई हैं।
पीठ ने सुझाव दिया कि एनजीओ द्वारा संचालित आश्रय गृह की दैनिक आधार पर ‘उचित निगरानी' की जानी चाहिये और इस तरह के संस्थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिये ताकि मुजफ्फरपुर जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके। पीठ ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 अगस्त को निर्धारित कर दी।
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