रोहिंग्या मामले पर सख्त हुआ सुप्रीम कोर्ट, चार हफ्ते में केंद्र सरकार से मांगी पूरी रिपोर्ट

रोहिंग्या मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को रोहिंग्या शिविरों में दी जा रही सुविधाओं के बारे में पूरी जानकारी देने को कहा है। न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ (उपप्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़) ने केंद्र सरकार को दिल्ली और हरियाणा में रह रहे रोहिंग्या शिविरों के बारे में चार हफ्तों के अंदर रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार बताए कि कितने रोहिंग्या शरणार्थी हरियाणा के मेवात और फरीदाबाद कैंपों में बसे हुए हैं और उन्हें किस तरह की मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। अब इस मामले की सुनवाई 9 मई को होगी।
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दरअसल, भारत में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों का कहना है कि उनके शिविरों मे शौचालय, पीने के पानी आदि सुविधाओं का अभाव है। उन्हें किसी भी प्रकार की मदद नही की जा रही है जिसके कारण शिविरों में रहने वाले बच्चों और बुजुर्गों को आंतों की बीमारी हो रही है।
आपको बता दें रोहिंग्या समुदाय की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण इनकी पैरवी कर रहे है। प्रशांत ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि रोहिंग्याओं के साथ भेदभाव किया जा रहा है। हालांकि इस मामले में एएसजी तुषार मेहता का कहना है कि केंद्र किसी भी तरह का भेदभाव रोहिंग्याओं के साथ नहीं कर रहा है।
Rohingya refugees case: Lawyer Prashant Bhushan submitted to SC that 'Rohingya are being allegedly subjected to discrimination.' ASG Tushar Mehta, appearing for Centre said,'this is wrong. No such kind of discrimination is being done to them. Everyone is getting equal benefits.'
— ANI (@ANI) April 9, 2018
सुप्रीम कोर्ट ने 19 मार्च को रोहिंग्या शिविरों के लिए किसी भी तरह की अंतिरम राहत देने से इंकार कर केन्द्र के पहले कथन से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि यह मुद्दा मीडिया की सुर्खियां बनेगा। दरअसल, 'केंद्र ने कोर्ट को कहा कि भारतीयों और विदेशियों को स्वास्थ्य तथा शैक्षिक सुविधाएं मुहैया कराने में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है'।
साथ ही इसका म्यामार और बांग्लादेश के साथ भारत के रिश्तों पर पड़ेगा। न्यायालय रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलीमुल्ला और मोहम्मद शाकिर की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। इनमें श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की तरह ही उन्हें भी शिक्षा ओर स्वास्थ्य सुविधायें मुहैया कराने का अनुरोध किया गया है।
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