जजों की नियुक्ति: केंद्र और SC में टकराव

देशभर में करीब दो दर्जन उच्च न्यायालयों में जजों के करीब 41 पद रिक्त पड़े हुए हैं, जिसका कारण जजों की नियुक्ति प्रणाली को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच टकराव है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने देश में दस उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए 51 जजों के नामों की सूची भेजी है।
भारत के प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अगुआई वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने संवैधानिक न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए सरकार की तैयार की गई नई ज्ञापन प्रक्रिया (एमओपी) को अंतिम रूप देने के बाद देश के 10 उच्च न्यायालयों के लिए 51 जजों के नामों की सिफारिश की है। जबकि केंद्र सरकार ने कॉलेजियम को 90 जजों के नाम भेजे थे।
सूत्रों के अनुसार कॉलेजियम की इन 51 नामों की सूची में 20 जजों के अलावा 31 अधिवक्ता भी शामिल हैं, जिन्हें जज बनाने की सिफारिश की गई है। कॉलेजियम ने केंद्र सरकार से 51 नामों की सूची में से बॉम्बे, पंजाब और हरियाणा, पटना, हैदराबाद, दिल्ली और छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति करने के लिए जजों के नामों की अनुशंसा की है।
यदि केंद्र सरकार कॉलेजियम की अनुसंशाओं का मानती है तो जम्मू-कश्मीर, झारखंड, गोहाटी और सिक्किम हाई कोर्ट में भी जजों की नियुक्तियां संभव हो सकती हैं। दरअसल भारत के प्रधान न्यायाधीश जे. एस. खेहर की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मेमोरेन्डम ऑफ़ प्रोसीजर यानि एमओपी को अंतिम रूप देने के बाद इन 51 नामों को मंजूरी दी है।
छग को भी मिलेंगे जज
केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा भेजे गये 51 नामों में से सर्वाधिक 14 नामों की बॉम्बे हाई कोर्ट के लिए अनुशंसा की गई है, जहां स्वीकृत 94 जजों में से केवल 61 जज ही कार्यरत हैं। इसके बाद पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में नौ जजों की नियुक्ति की सिफारिश हुई है, स्वीकृत 85 पदों में फिलहाल 39 पद खाली हैं।
यदि इन नौ जजों की नियुक्ति की जाती है तो भी पंजाब एवं हरियाणा में 30 जजों का टोटा बना रहेगा। इसी प्रकार पटना हाई कोर्ट और तेलंगाना और आंध्र प्रदेश को हाई कोर्ट के लिए 6 जजों के नामों का प्रस्ताव भेजा गया है। जबकि दिल्ली हाई कोर्ट और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के लिए 4 जजों का नामों को अंतिम रूप दिया गया है।
इसलिए लंबित हैं मामले
देश में इन 24 उच्च न्यायालयों में 1079 जजों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन अभी तक इनके विपरीत 632 जज नियुक्त हैं। मसलन इन उच्च न्यायालयों में स्वीकृत पदों में 447 यानि 41.43 प्रतिशत जजों के पद खाली हैं। यदि इन 51 जजों की नियुक्ति होती है तो भी इन उच्च न्यायालयों में 396 जजों का टोटा बना रहेगा।
गौरतलब है कि वर्ष 2015 से ही देश के अलग-अलग उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों के अलावा सुप्रीम कोर्ट में जजों की भारी कमी चल रही है। सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच डेढ़ साल से बना टकराव अभी खत्म नहीं हुआ है, क्योंकि एमओपी पर गतिरोध के बावजूद सरकार ने पिछले साल अप्रैल में ही उच्च न्यायालयों के लिए 127 जजों के नामों को मंजूरी दी थी।
इनके लिए कॉलेजियम को अंतिम सिफारिश देनी थी, लेकिन केंद्र सरकार को भेजी गई 51 नामों की सूची में बाकी नामों को सूची से काट दिया गया है।
जजों की नियुक्तियों में देरी
सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार ने जजो की नियुक्तियों को तेजी से करने की दिशा में देश में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन किया था, जिसे गत अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए पहले से चली आ रही कॉलेजियम प्रणाली को बहाल कर दिया था।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को इसके लिए एक नई ज्ञापन प्रक्रिया यानि एमओपी तैयार करने का काम सौंपा था। यहीं से जजों की नियुक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार में टकराव की स्थिति बनी हुई है और देश के न्यायालयों में जजों की नियुक्तियों की प्रक्रिया में देरी के कारण करोड़ो मामले अदालतों में लंबित पड़े हुए हैं।
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