SC का केंद्र को आदेश- धारा 377 को खत्म करने की याचिका पर एक सप्ताह के भीतर दें जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को रद्द करने की याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्र को एक हफ्ते का समय दिया है। बता दें कि आईपीसी की धारा 377 समलैंगिकता को अपराध बताती है।
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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए याचिका दायर की गई थी। जिसको जनवरी 2018 में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा था कि भारतीय दंड संहित की धारा 377 से उठे इस मुद्दे पर वृहद पीठ द्वारा विचार करने की आवश्यकता है।
क्या है आईपीसी की धारा-377
- धारा-377 इस देश में अंग्रेजों ने 1862 में लागू किया था। इस कानून के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराया गया है।
- अगर कोई स्त्री-पुरुष आपसी सहमति से भी अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते हैं तो इस धारा के तहत 10 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है।
- किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान है।
- सहमति से अगर दो पुरुषों या महिलाओं के बीच सेक्स भी इस कानून के दायरे में आता है।
- इस धारा के अंतर्गत अपराध को संज्ञेय बनाया गया है. इसमें गिरफ्तारी के लिए किसी प्रकार के वारंट की जरूरत नहीं होती है।
- शक के आधार पर या गुप्त सूचना का हवाला देकर पुलिस इस मामले में किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है।
- धारा-377 एक गैरजमानती अपराध है।
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