पुलवामा आतंकी हमला: निंदा नहीं चाहिए - एक भी आतंकी जिंदा नहीं चाहिए

पुलवामा आतंकी हमला: निंदा नहीं चाहिए - एक भी आतंकी जिंदा नहीं चाहिए
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जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर वीरवार को हुआ आत्मघाती हमला यह बताता है कि तमाम अहतियातों और कड़ी कार्रवाई के बावजूद पाक परस्त संगठन वहां न केवल सक्रिय हैं, बल्कि अपनी पनाहागाहों से निकलकर वह कभी भी देश की सुरक्षा में लगे जवानों पर इस तरह के हमले कर सकते हैं।

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर वीरवार को हुआ आत्मघाती हमला यह बताता है कि तमाम अहतियातों और कड़ी कार्रवाई के बावजूद पाक परस्त संगठन वहां न केवल सक्रिय हैं, बल्कि अपनी पनाहागाहों से निकलकर वह कभी भी देश की सुरक्षा में लगे जवानों पर इस तरह के हमले कर सकते हैं।

सीआरपीएफ के काफिले में एक-दो नहीं, सैंकड़ों बसें थीं और उनमें छुट्ठी से लौटकर ड्यूटी संभालने के लिए जा रहे करीब ढाई हजार जवान सवार थे। सबसे चौंकाने वाला तथ्य यही है कि इतनी बड़ी संख्या में जहां जवान मौजूद हों, वहां भी अगर आतंकवादी आत्मघाती हमले करते हैं तो यह उनका दुस्साहस नहीं तो क्या है।

44 जवानों की शहादत ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। उड़ी के बाद प्रदेश में होने वाली यह सबसे बड़ी आतंकी घटना है। उस कायराना हमले में हमने 18 सैनिकों को खोया था। इसमें टिप्पणी लिखे जाने तक 44 जवान शहीद हो चुके हैं। जाहिर है, जैसा गुस्सा तब देश में था, वैसा ही इस वक्त भी देखा जा रहा है।

यह कोई छोटी-मोटी घटना नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री अरुण जेटली, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर अलग-अलग दलों के नेताओं ने इस हमले की न केवल कड़ी भर्त्सना की है, बल्कि जवानों का हौंसला बनाए रखने के लिए हमलावर संगठनों और उनके आकाओं को कड़ा जवाब देने की चेतावनी भी दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने सही ही कहा है कि इन जवानों की शहादत को भारत व्यर्थ नहीं जाने देगा। आपको स्मरण होगा,

उड़ी की वारदात के बाद भी उनकी तरफ से इसी तरह के संकेत आए थे और घटना के दसवें दिन न केवल सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए सीमा पार स्थित आतंकियों के लांचिंग पैड ध्वस्त कर दिए गए थे, बल्कि तीन दर्जन से ज्यादा आतंकवादियों को भी सेना ने ढेर कर दिया था। उसके बाद काफी समय तक सीमा पार से कोई बड़ी वारदात करने की हिम्मत उनके आका नहीं जुटा पाए थे,

लेकिन सबको पता है कि जब जब भी इनके सफाए के लिए बड़े अभियान छेड़े जाते हैं, तब-तब इस तरह की वारदातों को अंजाम देकर यह लोग सुरक्षाबलों का मनोबल तोड़ने की साजिशें रचते हैं। भारत की सेना, अर्द्धसैनिक और पुलिस ने हमेशा इस प्रकार की कायराना चुनौतियों का न केवल मुकाबला किया है, वरन कड़ा जवाब भी दिया है।

यह घटना ऐसा समय हुई है, जब देश आम चुनाव में जाने की तैयारी कर रहा है। सोलहवीं लोकसभा की अंतिम बैठक एक दिन पहले ही हुई है। मई के अंत तक नई सरकार का गठन होना है। ऐसे में चुनाव आयोग से लेकर तमाम राजनीतिक दल और पुलिस-प्रशासन के अफसर चुनावी तैयारियों में जुटे हुए हैं। मार्च के पहले सप्ताह में तारीखों की घोषणा होने की संभावना है।

ऐसे माहौल में यदि अचानक इस प्रकार के हमले हमारे जवानों पर होते हैं तो इसके पीछे के मकसद को समझना इतना मुश्किल नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी सैनिकों और सुरक्षाबलों पर होने वाले किसी भी तरह के हमलों को लेकर बेहद संवेदनशील रहे हैं। उड़ी के बाद भी उनकी बेचैनी और नाराजगी देखी गई थी। इस हमले में तो उड़ी से कहीं ज्यादा नुकसान हुआ है।

अगले कुछ दिन देशवासियों के लिए भारी रहने वाले हैं। जैसे-जैसे इन शहीदों के पार्थिव शरीर उनके घरों को पहुंचेंगे, वैसे वैसे लोगों की नाराजगी बढ़ेगी। अभी तो राजनीतिक दल संयमित भाषा का प्रयोग कर रहे हैं परंतु चुनावी बेला में वह संयमित बने रहेंगे, इसकी संभावना बहुत कम है। इस वारदात को वह सरकार पर हमले के अवसर के तौर पर ले सकते हैं,

जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा। यह ऐसा समय है, जब सबको एकजुटता दिखानी चाहिए। यह तय ही मानिए कि जिस तरह की कार्रवाई उड़ी के बाद हुई थी, वैसी या उससे कहीं अधिक प्रभावशाली कार्रवाई बहुत जल्दी भारतीय सेना और सुरक्षाबलों की ओर से होगी। इसी की देश उम्मीद कर रहा है।

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