निर्भया मामले में दोषियों को फांसी दिलाने के लिए जनहित याचिका दायर

निर्भया मामले में दोषियों को फांसी दिलाने के लिए जनहित याचिका दायर
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उच्चतम न्यायालय में बृहस्पतिवार को एक जनहित याचिका दायर की गयी जिसमें चर्चित निर्भया सामूहिक दुष्कर्म एवं हत्या मामले में मौत की सजा पाये चारों दोषियों को फांसी पर चढ़ाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

उच्चतम न्यायालय में बृहस्पतिवार को एक जनहित याचिका दायर की गयी जिसमें चर्चित निर्भया सामूहिक दुष्कर्म एवं हत्या मामले में मौत की सजा पाये चारों दोषियों को फांसी पर चढ़ाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

दक्षिणी दिल्ली में 16-17 दिसंबर 2012 के बीच की रात में 23 साल की पैरामेडिकल की छात्रा के साथ छह लोगों ने बेहद क्रूरता से दुष्कर्म किया और उसे चलती बस से बाहर फेंक दिया। उसकी सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में 29 दिसंबर को मौत हो गयी।
शीर्ष न्यायालय ने नौ जुलाई को तीनों आरोपी मुकेश (31), पवन गुप्ता (24) एवं विनय शर्मा (25) की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय से उसके निर्णय की समीक्षा का अनुरोध किया गया।
उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय एवं निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया था। मृत्यु दंड पाये चौथे दोषी अक्षय कुमार सिंह (33)ने अभी तक उच्चतम न्यायालय में पुनरीक्षा याचिका दायर नहीं की है।
ताजा जनहित याचिका वकील आलोक श्रीवास्तव ने दायर की है। इसमें कहा गया है कि तीन दोषियों की पुनरीक्षा याचिका खारिज किए जाने की तिथि से साढ़े चार महीने बीत जाने के बावजूद मृत्युदंड को अभी तक अमली जामा नहीं पहनाया गया है।
याचिका में कहा गया कि दुष्कर्म सह हत्या मामले में आरोपी के भाग्य का फैसला निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक आठ माह के भीतर तय हो जाना चाहिए। इसमें कहा कि मृत्युदंड को अमली जामा पहनाये जाने में इस प्रकार का विलंब एक बुरी परंपरा बनता है और नतीजतन प्रति दिन होने वाले बलात्कारों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।
याचिका में कहा गया कि मृत्युदंड पाये दोषियों के प्रारंभिक दोष सिद्धि के बाद पांच साल से अधिक का समय बीत जाने के तथ्य से ‘‘बलात्कारियों के मन में यह छवि बनती है कि यदि वे इस तरह के जघन्य अपराध करेंगे तो वे बिना किसी नुकसान के बच जाएंगे।'
याचिका में बलात्कार सह हत्या मामलों के दोषियों के मृत्युदंड को जल्द अमली जामा पहनाने के लिए कड़े समयावधि वाले दिशानिर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
इसमें कहा गया है कि उच्च न्यायालय में अपील, नये सिरे से अपील, पुनरीक्षा, शीर्ष न्यायालय में उपचारात्मक याचिका तथा राष्ट्रपति के सामने दया यचिका की प्रक्रिया को अधिकतम आठ माह में पूरा कर लिया जाए।

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