कंप्यूटर डाटा निगरानी पर घेरे में सरकार, विपक्ष ने बताया निजता पर हमला

कंप्यूटर और अन्य संचार उपकरणों को 10 केंद्रीय एजेंसियों की निगरानी के दायरे में लाने संबंधी आदेश पर सरकार की सफाई के बाद भी विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। पूरे विवाद पर गृह मंत्रालय ने भी सफाई दी है।
गृह मंत्रालय ने कहा है कि ये प्रावधान पहले से ही आईटी ऐक्ट में मौजूद हैं और मंत्रालय की तरफ से 20 दिसंबर 2018 को जारी आदेश में सिक्यॉरिटी और लॉ एन्फोर्समेंट एजेंसियों को किसी भी तरह का नया अधिकार नहीं दिया गया है।
वहीं दूसरी ओर विपक्ष ने इसे निजता पर हमला करार देते हुए इसे तानाशाही करार दिया है। शुक्रवार को यह मामला संसद में भी उठा, जिस पर सरकार ने बताया कि एजेंसियों को कंप्यूटरों और संचार उपकरणों की निगरानी का अधिकार 2009 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने दिया था। ताजा आदेश में कुछ भी नया नहीं है।
आपके कंप्यूटर पर होगी सरकार की नजर, ये 10 सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां करेगी निगरानी
खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे मोदी: राहुल
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मुद्दे को लेकर सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला है। उन्होंने ट्वीट कर प्रधानमंत्री मोदी पर भारत को एक पुलिस स्टेट में तब्दील करने का आरोप लगाया है।
पीएम मोदी को तानाशाह बताते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि इससे साबित होता है कि वह खुद को कितना असुरक्षित महसूस करते हैं। कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
2009 के नियम में कुछ भी बदलाव नहीं: जेटली
इसके जवाब में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि इस आदेश में कुछ भी नया नहीं है और कांग्रेस इसे राई के बिना ही पहाड़ बना रही है। जेटली ने कहा कि यह नियम 2009 में बनाया गया था।
समय-समय पर ऐसा आदेश जारी किया जाता रहा है, जिसमें ऐसी जांच के लिए एजेंसियों को अधिकृत किया जाता रहा है। इसमें आम लोगों पर निगरानी जैसी कोई बात ही नहीं है। उन्होंने कांग्रेस पर देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने का भी आरोप लगाया।
निजता पर वार: कांग्रेस के सवाल पर जेटली ने कहा- 'ये आदेश 2009 से लागू है'
विपक्षियों ने की आलोचना
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने इस आदेश को खतरनाक करार देते हुए जनता से राय मांगी है। कांग्रेस के सीनियर लीडर अहमद पटेल ने कहा कि इसका एजेंसियों की ओर से मिसयूज हो सकता है।
उन्होंने कहा कि बिना चेक ऐंड बैलेंस के एजेंसियों को इस तरह की ताकत देना चिंता की बात है। आप नेता अरविंद केजरीवाल ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट किया कि मई 2014 से ही भारत अघोषित आपातकाल के दौर से गुजर रहा है।
गृह मंत्रालय ने भी दी सफाई
पूरे विवाद पर गृह मंत्रालय ने भी सफाई दी है। गृह मंत्रालय ने कहा है कि ये प्रावधान पहले से ही आईटी ऐक्ट में मौजूद हैं और मंत्रालय की तरफ से 20 दिसंबर 2018 को जारी आदेश में सिक्यॉरिटी और लॉ एन्फोर्समेंट एजेंसियों को किसी भी तरह का नया अधिकार नहीं दिया गया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर: रविशंकर
केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एजेंसियों को कंप्यूटरों और संचार उपकरणों की निगरानी की इजाजत देने संबंधी गृह मंत्रालय के आदेश पर कहा कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के मद्देनजर किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि इंटरसेप्शन के लिए केंद्रीय गृह सचिव की मंजूरी जरूरी है।
'लोगों की निजता के साथ नहीं हुआ कोई खिलवाड़'
वित्त मंत्री ने कहा कि इन एजेंसियों के बारे में वही आदेश बार बार जारी किया जाता है जो 2009 में बना था। उन्होंने कहा कि 20 दिसंबर को भी वही आदेश जारी किया गया। उन्होंने कहा कि इसमें लोगों की निजता के साथ कोई खिलवाड़ नहीं किया गया है।
अरुण जेटली ने कहा कि श्रीमान् आनंद शर्मा, आप वहां पहाड़ बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जहां राई भी नहीं है।' उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है।
क्या है आदेश
गौरतलब है कि 20 दिसंबर, 2018 को गृह मंत्रालय की ओर से एक आदेश जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि खुफिया ब्यूरो, मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), सीबीआई, एनआईए, कैबिनेट सचिवालय (रॉ), ‘डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस’ और दिल्ली के पुलिस आयुक्त के पास देश में चलने वाले सभी कंप्यूटर की निगरानी करने का अधिकार होगा। ये एजेंसियां इंटरसेप्शन, मॉनिटरिंग और डिक्रिप्शन के मकसद से किसी भी कंप्यूटर के डेटा को खंगाल सकती हैं।
'राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला हो तभी निगरानी'
जेटली ने कहा, 'आईटी कानून के तहत यह अधिकार एजेंसियों को ठीक वैसे ही दिया गया है जैसे टेलिग्राफ कानून में है। उसके नियम जब आनंद शर्मा जी सरकार में थे तब बनाए गए कि किन एजेंसियों को इसके लिए अधिकृत किया जाए। 2009 में इसके नियम बने। एजेंसियां वही हैं..आईबी, रॉ, डीआरआई आदि।'
उन्होंने स्पष्ट किया कि निगरानी का काम कोई भी व्यक्ति नहीं कर सकता। किसी भी व्यक्ति या कंप्यूटर की निगरानी नहीं की जा सकती है। यदि आतंकवादी गतिविधि, कानून व्यवस्था, देश की अखंडता से जब जुड़ा मामला हो तो अधिसूचित एजेंसियां संबंधित व्यक्ति के उपकरणों की निगरानी कर सकती हैं।
मुद्दा उठाने से पहले पूरी जानकारी तो कर लेता विपक्ष: जेटली
उच्च सदन में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद एवं कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा द्वारा यह मुद्दा उठाये जाने पर अरूण जेटली ने कहा कि बेहतर होता कि विपक्ष इस मुद्दे को उठाने से पहले पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता।
उन्होंने कहा कि विपक्ष के नेता जो भी विषय उठाते हैं, उसका एक मूल्य होता है, वह काफी मूल्यवान होता है। उन्होंने कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा की इस बात को सिरे से गलत बताया कि इस आदेश के तहत हर कंप्यूटर एवं टेलिफोन की निगरानी की जाएगी।
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