पुरुष दर्ज नहीं करा सकते रेप का केस, कानून बनाना संसद का काम: सुप्रीम कोर्ट

रेप को जेंडर-न्यूट्रल यानि पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अपराध बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि बलात्कार, सेक्शुअल असॉल्ट और स्टॉकिंग यानि जबरदस्ती पीछा या परेशान करना जैसी घटनाएं पुरुषों के साथ भी होती हैं।
इसलिए इस कानून को जेंडर न्यूट्रल यानी सभी जेंडर्स (पुरुष/महिला/ट्रांसजेंडर्स) पर समान रूप से लागू करना चाहिए।
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इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद सिर्फ महिलाओं को दुराचार पीड़िता मानती है, इसलिए कानून भी सिर्फ वहीं बदला जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रेप कानून पर विचार के लिए दायर पिटीशन को खारिज कर दिया।
कानून पीड़िता की रक्षा के लिए
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने पिटीशन पर सुनवाई करते हुए कहा कि आईपीसी में ये कानून रेप पीड़िता की रक्षा के लिए बनाए गए हैं, लेकिन संसद सिर्फ महिलाओं को ही रेप पीड़िता मानती है। हम उनसे (संसद) कानून में बदलाव के लिए नहीं कह सकते।
संसद ने बनाया है कानून
बेंच के दूसरे जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “संसद ने महिलाओं को नुकसान से बचाने की जरूरत को देखते हुए ये कानून बनाया। यौन प्रताड़ना के केस में भी संसद महिला को ही पीड़ित मानती है।
वकील ने रक्षा ये पक्ष
याचिका दायर करने वाली एडवोकेट रिषी मल्होत्रा ने कोर्ट से रेप कानून के उन सेक्शन्स की वैधता जांचने के लिए कहा था, जिनमें सिर्फ महिलाओं को ही रेप पीड़िता माना गया है।
मल्होत्रा ने दलील दी कि एक पुरुष के साथ भी छेड़छाड़ और परेशान करने जैसी घटनाएं हो सकती हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि ये सिर्फ एक कल्पना है। साथ ही अगर ऐसा कुछ हो रहा है तो ऐसे केसों से निपटने की जिम्मेदारी संसद पर है।
पुरुष कहां करें शिकायत
उन्होंने कहा कि महिलाओं की सुनवाई के लिए देश में कई संस्थान हैं, लेकिन पुरुष ऐसे केस में कहां शिकायत करें। मल्होत्रा ने कहा कि कानून के कई सेक्शन्स में ये माना गया है कि रेप, सेक्सुअल हेरैसमेंट और स्टॉकिंग जैसी घटनाओं में सिर्फ पुरुष ही दोषी हैं साथ ही महिला हमेशा पीड़िता मानी जाएगी।
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