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जानिए क्या है धारा 377, भारतीय संविधान में क्या है सजा का प्रावधान

आईपीसी की धारा 377 समलैंगिक यौन संबंध यानी पुरुष-पुरुष और महिला-महिला स्थापित करने को अपराध करार देती है।

जानिए क्या है धारा 377, भारतीय संविधान में क्या है सजा का प्रावधान
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आईपीसी की धारा 377 समलैंगिक यौन संबंध यानी पुरुष-पुरुष और महिला-महिला स्थापित करने को अपराध करार देती है। सेक्स वर्करों के लिए काम करने वाली संस्था नाज़ फाउंडेशन ने हाईकोर्ट में यह कहते हुए इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया था कि अगर दो व्यस्क अगर सहमति से संबंध बनाते है तो उसे धारा 377 के प्रावधान से बाहर किया जाना चाहिए।

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नाज फाउंडेशन मामले में दिए फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट ने गलत ठहराया था, इसके बाद इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। लेकिन कुछ साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए धारा 377 को फिर अपराध करार दे दिया था।

जानिए क्‍या है IPC की धारा 377

  • यह आईपीसी की धारा 377 के अप्राकृतिक (अननैचुरल) यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराता है।
  • इस धारा के तहत स्त्री या पुरुष के साथ अननैचुरल संबध बनाने पर दस साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है।
  • सहमति से 2 पुरुषों, स्त्रियों और समलैंगिकों के बीच सेक्‍स भी इसके दायरे में आता है।
  • धारा 377 के तहत अपराध गैर जमानती है।
  • यह अपराध संजेय अपराध की श्रेणी में आता है और गैरजमानती है।
  • इस अपराध में गिरफ्तारी के लिए वॉरंट की जरूरत नहीं होती
  • 1862 में यह कानून लागू हुआ था।

नाज फाउंडेशन ने दी धारा 377 को चुनौती

नाज फाउंडेशन यह एक सेक्स वर्करों के लिए काम करने वाली संस्‍था है। इस संस्था ने हाईकोर्ट में यह कहते हुए इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया था कि अगर दो व्यस्क अगर सहमति से संबंध बनाते है तो उसे धारा 377 के प्रावधान से बाहर किया जाना चाहिए।

धारा 377 के तहत 150 सालों में 200 दोषी

आईपीसी की धारा 377 को लेकर देशभर में बहस छिड़ी है। लेकिन अप्राकृतिक संबंध बनाने के मामले में पिछले करीब 150 सालों में सिर्फ 200 लोगों को ही दोषी करार दिया गया है।

धारा 377 पर एलजीबीटी समुदाय

समलैंगिक, उभयलिंगी और लिंग बदलवाने वाले लोगों को मिलाकर एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्‍सुअल, ट्रांसजेंडर) समुदाय बनता है।

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