BSF कैंप पर हमले के बाद सेना सतर्क, आतंकियों के लिए बनाया ये प्लान

श्रीनगर में बीएसएफ की 182वीं बटालियन के कैंप पर हुए जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों के हमले के तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर में तैनात सेना ने अपने सैन्य ठिकानों की सुरक्षा में इजाफा कर दिया है। इसके पीछे जैश के 12 आतंकियों द्वारा सैन्य ठिकानों को निशाना बनाए जाने का हालिया खुफिया अलर्ट बड़ी वजह बनकर उभरा है।
रक्षा मंत्रालय के विश्वसनीय सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि सुरक्षा बढ़ाने के लिए सेना ने अपने सैन्य ठिकानों के आस-पास की जाने वाली दिन-रात की सुरक्षा गश्त का दायरा बढ़ा दिया है, जिससे संवेदनशील इलाके के आसपास भी पैनी नजर रखी जा सके।
इसके अलावा सूबे में अलग-अलग जगहों पर तैनात सेना के अधिकारियों, जवानों को ड्यूटी के दौरान हमेशा अलर्ट रहने और ओवर ग्राउंड वर्कस (ओजीडब्ल्यू) द्वारा आतंकियों की गतिविधियों के बारे में दी जा रही खुफिया इनपुट का सटीक विश्लेषण कर तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया गया है।
जम्मू-कश्मीर में सेना की उत्तरी-कमांड मौजूद है, जिसके तहत 14, 15 व 16वीं कोर तैनात है। इसमें कुल करीब ढाई से तीन लाख फौज दुश्मन से मोर्चा लिए हुए है। सेना के कमांड, कोर, डिवीजन मुख्यालयों से लेकर कई अन्य छोटे-बड़े ठिकानों का सूबे में जमावड़ा है।
जैश के आतंकियों ने बनाई रणनीति
सेना के एक अधिकारी ने कहा कि अभी कश्मीर में जैश के कुल करीब 12 आतंकी सक्रिय हैं। इनकी योजना आने वाले दिनों में सैन्य ठिकानों पर फिदायीन हमला करने की है। इस बाबत सरकार के खुफिया ब्यूरो के द्वारा भी हाल ही में अलर्ट जारी किया गया है।
इन 12 आतंकियों द्वारा बनाई गई रणनीति के हिसाब से इन्होंने 6-6 आतंकियों के दो समूह बनाकर सुरक्षित लोकेशन के साथ पोजिशन ले ली है। इसमें 6 आतंकी शोपियां, पुलवामा में और 6 अनंतनाग, कुलगाम में छिपे हुए हैं।
उम्र के लिहाज से यह सभी 12 आतंकी 20 से 22 साल के हैं। लेकिन पीओके में आतंकी वारदातों को अंजाम देने के लिए इन्हें इनके आकाओं ने पूरी तरह से प्रशिक्षित किया है।
इन 12 आतंकियों का मुखिया जैश का कमांडर खालिद है और 2 स्थानीय आतंकी हैं। जिनकी हाल ही में जैश ने भर्ती की है। घाटी में पहले से मौजूद और घुसपैठ के जरिए दाखिल हुए आतंकी का आंकड़ा 250 से 300 के बीच है।
अपनी धमक बरकरार रखने की कवायद
सुरक्षाबलों द्वारा चलाए गए सटीक अभियानों की वजह से जैश की पकड़ साल 2015 से जम्मू-कश्मीर में काफी हद तक ढीली पड़ने लगी है। लेकिन बीएसएफ कैंप जैसी कार्रवाई करके वह एक बार फिर से इसे मजबूत करने की कोशिश में जुट गया है।
20 से 22 साल के युवाओं को ही जैश फिदायीन हमले करने के लिए खासतौर पर चुनता है। क्योंकि कम उम्र की वजह से इनका ब्रेन वॉश आसानी से हो जाता है और उसमें भारत के खिलाफ नफरत व इस्लामी जिहाद का खूनी रंग जल्दी चढ़ जाता है।
इसके बाद यह आतंकी अपनी जान की परवाह किए बिना अपने आकाओं के एक आदेश पर सूबे में कहीं भी जाकर हमला करने के तैयार हो जाते हैं। इसके अलावा जैश के आतंकियों की राज्य में भारत विरोधी सोच रखने वाले लोगों के बीच में ज्यादा मान्यता है।
क्योंकि उनका मानना है कि यह घाटी में प्रवेश करते ही अपने लक्ष्य को अंजाम देने के लिए अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान देते हैं। 2016 में पठानकोट वायुसैन्यअड्डे पर भी जैश के आतंकियों ने ही हमला किया था।
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