'कानून के दायरे में रहें': ED पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी; कन्विक्शन रेट पर उठाए सवाल

ED पर सवाल: सुप्रीम कोर्ट बोला-कानून के दायरे में रहकर करें कार्रवाई
Supreme Court on ED Action: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (7 अगस्त 2025) को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्यप्रणाली और धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत कम दोषसिद्धि दर पर कड़ी टिप्पणी की। अदालत की दो अलग-अलग पीठों ने ईडी को चेतावनी दी है। कहा, आप बदमाश की तरह काम नहीं कर सकते। कानून के दायरे में रहकर ही कार्रवाई करनी होगी।
मुख्य न्यायाधीश की पीठ का सवाल
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड (BPSL) मामले में सुनवाई करते हुए पूछा-पीएमएलए के तहत इतनी व्यापक शक्तियां होने के बावजूद आपकी दोषसिद्धि दर इतनी कम क्यों है? सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसके लिए आपराधिक न्याय प्रणाली में देरी और प्रक्रियात्मक खामियों को जिम्मेदार ठहराया। कहा, ईडी ने अब तक ₹23,000 करोड़ की बरामदगी कर पीड़ितों को लौटाया है।
न्यायमूर्ति गवई ने पीएमएलए के तहत लंबी जांच, हिरासत और कठोर ज़मानत शर्तों का जिक्र करते हुए कहा, जिन्हें दोषी नहीं ठहराया जाता, उन्हें भी तो आप वर्षों तक बिना सुनवाई के सज़ा सुनाने में सफल रहते हैं। बिना निर्णय के ही सज़ा हो जाती है।"
इस पर मेहता ने बताया कि ईडी ने वित्तीय अपराधों के पीड़ितों को लगभग ₹23,000 करोड़ की वसूली और वापसी की है। उन्होंने कहा, बरामद की गई राशि राज्य के पास नहीं रहती, बल्कि धोखाधड़ी के शिकार लोगों को वापस कर दी जाती है।
उन्होंने कहा, कुछ राजनेताओं के यहां इनती नकदी मिली कि मशीनें कम पड़ गईं। उन्होंने यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गढ़े गए हानिकारक आख्यानों की भी आलोचना की। खासकर, जब एजेंसी हाई-प्रोफाइल लोगों को निशाना बनाती है।
सीजेआई ने कहा, हम आख्यानों के आधार पर मामलों का फैसला नहीं करते। मैं समाचार चैनल नहीं देखता। मैं सुबह 10 से 15 मिनट के लिए अखबारों की सुर्खियाँ ही पढ़ता हूँ। मेहता ने कहा, ईडी की बरामदगी और कार्रवाई मज़बूत कानूनी आधार पर की जाती है।
5,000 मामलों में 10 से भी कम दोषसिद्धि
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 2022 के विजय मदनलाल चौधरी मामले में दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा, कानून लागू करने वाले और कानून तोड़ने वाले में फर्क होता है। 5,000 मामलों में 10 से भी कम दोषसिद्धि गंभीर चिंता का विषय है।
जेल में रहने के बाद भी बरी हुए तो कौन जिम्मेदार?
अदालत ने ईडी की कारवाई पर सवाल उठाते हुए यह भी कहा कि लंबे समय तक जेल में रहने के बाद कोई आरोपी यदि बरी हो जाता है तो तो उसकी भरपाई कौन करेगा? इस पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने कहा, कम दोषसिद्धि दर का कारण अक्सर अमीर और प्रभावशाली आरोपियों द्वारा मुकदमे में देरी करना है। पुनर्विचार याचिका को उन्होंने 'छद्म अपील' बताया।
