फेसबुक पोस्ट विवाद: सुप्रीम कोर्ट से कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय को अंतरिम राहत

फेसबुक पोस्ट विवाद: सुप्रीम कोर्ट से कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय को अंतरिम राहत
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फेसबुक पोस्ट विवाद: सुप्रीम कोर्ट से कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय को अंतरिम राहत

कार्टून विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने हेमंत मालवीय को दी अंतरिम राहत, FIR को लेकर अगली सुनवाई 15 अगस्त के बाद होगी।

Hemant Malaviya FB Post Controversy:सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 15 जुलाई को चर्चित कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय को अंतरिम राहत दी है। उन पर एक पुराने कार्टून को फेसबुक पर साझा करने को लेकर आपराधिक मामला दर्ज है। इस कार्टून में कथित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े आपत्तिजनक संकेत शामिल थे। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई स्वतंत्रता दिवस के बाद तय की है।

मालवीय की ओर से माफीनामा प्रस्तुत किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हिंदी में शपथपत्र के रूप में माफीनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही पक्षकारों को अगली तारीख तक अपनी दलीलें पूरी करने के निर्देश दिए गए।

सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर FIR, हाईकोर्ट से राहत नहीं

हेमंत मालवीय ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था। उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी का संबंध एक 2021 में बनाए गए कार्टून से है, जिसे मई 2025 में एक फेसबुक यूज़र ने जाति जनगणना से जुड़ी विवादास्पद टिप्पणी के साथ फिर से साझा किया। मालवीय ने उस पोस्ट को समर्थन के साथ शेयर किया था, जिसके आधार पर उनके खिलाफ IPC और IT एक्ट की धाराओं में FIR दर्ज हुई।

सुप्रीम कोर्ट में पेशी के दौरान क्या हुआ?

  • सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कार्टूनिस्ट के व्यवहार पर चिंता जताई। मालवीय की वकील वृंदा ग्रोवर ने सूचित किया कि याचिकाकर्ता न केवल पोस्ट हटा चुके हैं, बल्कि अपनी गलती के लिए माफी भी मांग रहे हैं। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि माफीनामा हिंदी में देने की अनुमति दी जाए क्योंकि याचिकाकर्ता हिंदी भाषी हैं।
  • सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) केएम नटराज ने कोर्ट के समक्ष सोशल मीडिया पोस्ट के स्क्रीनशॉट पेश किए, जिस पर वकील वृंदा ग्रोवर ने आपत्ति जताते हुए कहा कि वे पोस्ट संबंधित FIR से नहीं जुड़ी हैं।

न्यायालय की टिप्पणी और अगला कदम

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने टिप्पणी की कि कुछ पोस्ट बेहद आपत्तिजनक थीं और सोशल मीडिया पर बढ़ती गैर-जिम्मेदार भाषा चिंता का विषय है। कोर्ट ने प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे रिकॉर्ड पर पोस्टों का उल्लेख करते हुए हलफनामा दाखिल करें। साथ ही मालवीय को भी जवाब देने को कहा गया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पोस्ट हटाने का आदेश पारित नहीं किया गया है, लेकिन याचिकाकर्ता द्वारा हटाने की मंशा को दर्ज कर लिया गया है।

विवाद की पृष्ठभूमि और मालवीय की दलीलें

  • मालवीय की याचिका में कहा गया है कि उनके खिलाफ दर्ज FIR में कोई आपराधिक आधार नहीं है। 2021 में बनाए गए कार्टून को उन्होंने व्यंग्य के रूप में साझा किया था, जिसमें कोविड वैक्सीन की सुरक्षा पर सवाल उठाए गए थे।
  • मई 2025 में इस कार्टून को एक अज्ञात व्यक्ति ने विवादित टिप्पणी के साथ पोस्ट किया, जिसे मालवीय ने यह दिखाने के लिए फिर से साझा किया कि वह सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है।
  • 21 मई, 2025 को उनके खिलाफ BNSS की धाराएं 196, 299, 302, 352, 353(2) और IT Act की धारा 67A के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। शिकायत में आरोप लगाया गया कि पोस्ट ने धार्मिक भावनाएं आहत कीं और सामाजिक शांति को नुकसान पहुंचाया।

हाईकोर्ट का रुख और सुप्रीम कोर्ट की चुनौती

मालवीय की अग्रिम ज़मानत याचिका 24 मई को इंदौर सत्र न्यायालय और 3 जुलाई को हाईकोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई थी। उच्च न्यायालय ने माना कि उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं का उल्लंघन किया है और पूछताछ के लिए हिरासत आवश्यक है। कोर्ट ने कार्टून की तुलना में धार्मिक प्रतीकों और प्रधानमंत्री से जुड़े आपत्तिजनक चित्रण पर भी गंभीर आपत्ति जताई।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का प्रयास

मालवीय ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का एक प्रयास है और इसका उद्देश्य असहमति को दंडित करना है। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में कोई ऐसा अपराध नहीं बनता, जिसके लिए सात साल से अधिक की सजा हो।
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