'हम स्कूल प्रिंसिपल जैसा नहीं..': हाईकोर्ट जजों पर SC की सख्त टिप्पणी; कहा-कामकाज का मूल्यांकन जरूरी

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नीतीश कटारा हत्याकांड के दोषी की जमानत अर्जी खारिज। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ हाईकोर्ट जज अपने काम को ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। उनके प्रदर्शन का मूल्यांकन जरूरी है। साथ ही मानहानि और संपत्ति नीलामी पर भी अहम टिप्पणियां की गईं।

Supreme Court on High Court Judge: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (22 सितंबर 2025) को न्यायपालिका के कामकाज को लेकर सख्त टिप्पणी की है। शीर्ष कोर्ट ने कहा, कुछ हाईकोर्ट जजों का काम संतोषजनक नहीं है और उनके प्रदर्शन का मूल्यांकन जरूरी है।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने स्पष्ट किया कि, हम हाईकोर्ट के जजों के साथ स्कूल प्रिंसिपल जैसा व्यवहार नहीं करना चाहते, लेकिन हर जज को अपने काम का मैनेजमेंट खुद करना चाहिए। ताकि, फाइलों का ढेर न लगे।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कई जज मेहनत और लगन से काम कर रहे हैं, लेकिन कुछ जज किसी वजह से केसों के निपटारे में पीछे हैं। कोर्ट ने इस स्थिति को चिंताजनक बताया है।

फैसले के ऑपरेटिव पार्ट पर सख्ती

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर की बेंच ने एक पुराने निर्णय का हवाला देते हुए कहा, कोई कोर्ट यदि केवल फैसले का ऑपरेटिव पार्ट सुनाता है तो उसे पांच दिन के भीतर कारण (reasons) भी स्पष्ट करने होंगे। सुप्रीम कोर्ट जब तक यह सीमा नहीं बदलता, हाईकोर्ट इसका पालन करें।

22 अगस्त के दो अन्य चर्चित फैसले

1. अपराध की श्रेणी से बाहर हो मानहानि केस

जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने मानहानि (Defamation) मामले को आपराधिक अपराध (Criminal Offense) की श्रेणी से हटाए जाने की वकालत की है। कोर्ट ने यह टिप्पणी JNU के पूर्व प्रोफेसर अमिता सिंह द्वारा 2016 में दायर मानहानि मामले की सुनवाई करते हुए किया है। प्रोफेसर ने एक मीडिया संस्थान पर बिना तथ्यों की पुष्टि किए आपत्तिजनक रिपोर्ट प्रकाशित करने का आरोप लगाया है। कोर्ट ने प्रोफेसर अमिता सिंह को नोटिस जारी किया है।

2. नीलामी नोटिस के बाद संपत्ति पर दावा नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति विवाद को लेकर भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने यह फैसला SARFAESI Act की धारा 13(8) के तहत सुनाया। कहा, नीलामी प्रमाण-पत्र या नोटिस जारी होने के बाद उधारकर्ता (Borrower) उस पर अपना अधिकार नहीं जता सकता। यह निर्णय उन मामलों पर भी लागू होगा, जिनमें कर्ज पहले लिया गया था, लेकिन 1 सितंबर 2016 के बाद डिफॉल्ट हुआ।

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