प्रो. रामदरश मिश्र के 101वें जन्मोत्सव पर हुआ भव्य ‘शताब्दी सुजन सम्मान समारोह’, जानिए खास बातें

Ramdarash Mishra 101 Janmotsav
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Ramdarash Mishra 101 Janmotsav

दिल्ली के मुक्तांगन में सजा साहित्यिक महोत्सव, मनाया गया रामदरश मिश्र का 101वां जन्मोत्सव

हिंदी साहित्य के वरिष्ठ लेखक और कवि प्रोफेसर रामदरश मिश्र के 101वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित ‘रामदरश मिश्र शताब्दी सुजन सम्मान समारोह’ ने साहित्य प्रेमियों के बीच एक ऐतिहासिक माहौल बना दिया। यह आयोजन द्वारका सेक्टर-25 स्थित मुक्तांगन में बड़ी गरिमा और उत्साह के साथ सम्पन्न हुआ।

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन और डॉ. वेद मित्र शुक्ल की बाँसुरी वादन प्रस्तुति के साथ हुआ। वहीं सुप्रसिद्ध लोक गायिका चंदन तिवारी और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. रामनारायण पटेल ने मिश्र जी की कविताओं और ग़ज़लों को स्वर देकर कार्यक्रम को विशेष बना दिया।

पुस्तकों का लोकार्पण

इस अवसर पर मिश्र जी से जुड़ी चार पुस्तकों और एक आलोचना-पत्रिका का सामूहिक लोकार्पण हुआ। इनमें ‘रामदरश मिश्र रचना संचयन’ (संपादक डॉ. प्रकाश मनु), ‘रामदरश मिश्र: समय समालोचन’ (संपादक ओम निश्चल), ‘बनाया है मैंने यह घर धीरे-धीरे’, ‘रामदरश मिश्र के उपन्यास’ (लेखक दिनेश प्रसाद सिंह) और ‘शब्दायतन’ (संपादक हरिशंकर राढ़ी) शामिल रहीं।

सुजन सम्मान प्रदान

निर्णायक मंडल ने युवा रचनाकारों में कविता वर्ग में राहुल शिवाय की कृति “दिल्ली कितनी दूर” और कथा वर्ग में आकाश माथुर की कृति “मुझे सूरज चाहिए” को सम्मानित किया। दोनों को शॉल, ट्रॉफी, प्रमाणपत्र और सम्मान राशि दी गई।

प्रमुख साहित्यकारों का सम्मान

मुख्य अतिथि श्रीमती ममता कालिया के साथ डॉ. सुरेश ऋतुपर्ण, प्रताप सहगल, कवि पत्रकार राधेश्याम तिवारी और डॉ. ओम निश्चल को पुष्पगुच्छ, शॉल और प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

समारोह का महत्व

समारोह का संचालन प्रख्यात कवि-आलोचक डॉ. ओम निश्चल ने किया। अंत में आभार ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए डॉ. वेद मित्र शुक्ल ने कहा कि यह सम्मान समारोह रामदरश मिश्र जी के साहित्यिक संस्कारों की जीवंत पुनःस्थापना है और नई पीढ़ी के लेखकों को एक ऊर्जावान मंच प्रदान करेगा। इस कार्यक्रम में देशभर से आए वरिष्ठ साहित्यकार, शोध छात्र और पाठक देर शाम तक साहित्यिक वातावरण में डूबे रहे। यह आयोजन न केवल रामदरश मिश्र जी की स्मृति का उत्सव था, बल्कि हिंदी साहित्य की नई पीढ़ी को प्रेरणा देने वाला क्षण भी बना।

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