एंजेल चकमा केस: 'नस्लीय प्रताड़ना' के दावों के बीच SC की चौखट पर पहुंची इंसाफ की गुहार! धामी सरकार ने बढ़ाया मदद का हाथ

नस्लीय प्रताड़ना के दावों के बीच SC की चौखट पर पहुंची इंसाफ की गुहार! धामी सरकार ने बढ़ाया मदद का हाथ
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एंजेल चकमा देहरादून के सहसपुर स्थित 'तुलस इंस्टीट्यूट' का छात्र था।

उत्तराखंड सरकार ने परिवार को 4 लाख की मदद दी है, जबकि पुलिस हत्या और आत्महत्या के पहलुओं की गहन जांच कर रही है।

नई दिल्ली : देहरादून में त्रिपुरा के छात्र एंजेल चकमा की मौत ने अब एक राष्ट्रीय बहस का रूप ले लिया है। इस मामले में आत्महत्या और हत्या के दावों के बीच फंसी जांच अब केवल एक पुलिस केस नहीं, बल्कि पूर्वोत्तर के नागरिकों की सुरक्षा का प्रतीक बन गई है।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका ने केंद्र सरकार से यह जवाब मांगा है कि आखिर 'बेजबरुआ समिति' की सिफारिशें जमीनी स्तर पर लागू क्यों नहीं हुईं। इस बीच उत्तराखंड सरकार की सक्रियता ने न्याय की उम्मीद तो जगाई है, लेकिन कई अनसुलझे सवाल अब भी बरकरार हैं।

संदिग्ध मौत की कड़ियां और आत्महत्या की थ्योरी पर सवाल

एंजेल चकमा देहरादून के सहसपुर स्थित 'तुलस इंस्टीट्यूट' का छात्र था । 15 जून की रात उसका शव कमरे में पंखे से लटका मिला, जिसे पुलिस ने शुरुआती तौर पर आत्महत्या का मामला बताया।

हालांकि, परिजनों ने इस थ्योरी को पूरी तरह खारिज कर दिया है। उनका दावा है कि एंजेल के शरीर पर चोट के निशान और नाखूनों के निशान मिले थे, जो संकेत देते हैं कि फंदे पर लटकाने से पहले उसके साथ हाथापाई हुई थी।

इसके अलावा, कमरे से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं होना इस शक को और गहरा करता है कि यह मामला खुदकुशी का नहीं बल्कि कुछ और है।

सुप्रीम कोर्ट में 'नस्लीय हिंसा' और हेट क्राइम की दलील

सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्जी में वरिष्ठ वकीलों ने तर्क दिया है कि एंजेल को उसकी जातीय पहचान और पूर्वोत्तर से होने के कारण लंबे समय से 'नस्लीय फब्तियों' का सामना करना पड़ रहा था।

याचिका में मांग की गई है कि भारतीय दंड संहिता में संशोधन कर 'नस्लीय हिंसा' को विशेष रूप से परिभाषित किया जाए।

कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि पूर्वोत्तर के छात्रों के लिए कॉलेजों में एक विशेष 'नोडल अधिकारी' की नियुक्ति अनिवार्य की जाए, ताकि भेदभाव की शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई हो सके।

मुख्यमंत्री धामी का दखल और प्रशासन की जवाबदेही

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले में मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए न केवल आर्थिक मदद दी, बल्कि पुलिस महानिदेशक को कड़ी जांच के आदेश दिए हैं। सीएम ने एंजेल के पिता से फोन पर हुई बातचीत में स्पष्ट किया कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।

प्रशासन पर बढ़ते दबाव के बाद अब जांच टीम हॉस्टल के सीसीटीवी फुटेज और अन्य छात्रों के बयानों की दोबारा समीक्षा कर रही है। सरकार की ओर से दी गई 4 लाख रुपये की सहायता को परिवार ने स्वीकार तो किया है, लेकिन उनकी मुख्य मांग 'न्याय' और 'सच्चाई' का सामने आना है।

सहपाठियों के बयान और 'बुलीइंग' के गंभीर आरोप

जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया है कि घटना से कुछ दिन पहले तक एंजेल काफी तनाव में था। कुछ साथी छात्रों ने दबी जुबान में बताया है कि उसे अक्सर बाहरी कहकर चिढ़ाया जाता था।

परिजनों का आरोप है कि कॉलेज प्रशासन ने इन शिकायतों को नजरअंदाज किया। पुलिस अब एंजेल के व्हाट्सएप चैट और कॉल डिटेल्स खंगाल रही है ताकि यह पता चल सके कि क्या उसे किसी ने आत्महत्या के लिए उकसाया था या वह किसी संगठित 'बुलीइंग' का शिकार हो रही थी।

फॉरेंसिक साक्ष्य और पोस्टमार्टम रिपोर्ट का पेच

मामले में सबसे बड़ा मोड़ पोस्टमार्टम रिपोर्ट को लेकर है। परिवार ने आरोप लगाया है कि पहली रिपोर्ट में कई तथ्यों को छिपाने की कोशिश की गई, जिसके बाद दोबारा जांच की मांग उठी।

फॉरेंसिक विशेषज्ञों का मानना है कि गर्दन पर बने निशानों की बनावट यह तय करने में अहम होगी कि यह मौत 'एंटी-मॉर्टम' है या 'पोस्ट-मॉर्टम'।

अगर नाखूनों के नीचे किसी दूसरे व्यक्ति का डीएनए मिलता है, तो यह सीधे तौर पर हत्या का मामला बन जाएगा।

पूर्वोत्तर राज्यों का दबाव और राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने भी इस मुद्दे पर उत्तराखंड सरकार से संपर्क साधा है। पूर्वोत्तर के विभिन्न छात्र संगठनों का कहना है कि अगर दिल्ली और देहरादून जैसे शहरों में उनके बच्चे सुरक्षित नहीं हैं, तो यह देश की एकता पर बड़ा सवाल है।

इस मामले ने केंद्र सरकार को भी रक्षात्मक रुख अपनाने पर मजबूर कर दिया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर जवाब मांगा है कि पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ होने वाले 'हेट क्राइम' को रोकने के लिए अब तक क्या विशेष कदम उठाए गए हैं।


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