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Monkey Fever Karnataka: कर्नाटक में मंकी फीवर या क्यासनूर फॉरेस्ट डीजीज वायरस तेजी से फैल रहा है। इससे संक्रमित 49 लोग मिले हैं। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं। जानिए इससे कैसे बचें। यह बीमारी पहली बार भारत में साल 1957 में सामने आया था।

Monkey Fever Karnataka: देश के दक्षिण राज्य में कर्नाटक में सामने आई एक बीमारी ने स्वास्थ्य महकमे की नींद उड़ा दी है। हाल ही में कर्नाटक के कायसनूर फारेस्ट रीजन में दो लोगों की मंकी फीवर (Monkey Fiver)से मौत हो गई। इस वायरल बीमारी के मामले सामने आने के बाद कर्नाटक स्वास्थ्य विभाग अलर्ट मोड में आ गया है। इसकी रोकथाम के लिए कदम उठाने पर की तैयारियों में जुट गया है। इस पर चर्चा करने के लिए मीटिंग और रिव्यू मीटिंग्स बुलाई जा रही है। 

कर्नाटक में कहां-कहां हुई मंकी फीवर से मौत? 
इस साल मंकी फीवर से मौत का पहला मामला शिवमोग्गा जिले से सामने आया। यहां के होसानगर तालुक में एक 18 साल की लड़की की इस बीमारी की वजह से मौत हो गई। वहीं, दूसरा मामला उडुपी जिले के मणिपाल से सामने आया। चिक्कमंगलुरु के एक 79 साल के बुजुर्ग ने इस बीमारी की वजह से दम तोड़ दिया। अब तक राज्य में मंकी फीवर के 49 पॉजिटिव केस आ चुके हैं। जिनमें 34 मामले उत्तर कन्नड़ जिले, 12 मामले शिवमोग्गा और तीन मामले चिक्कमगलुरु जिले से सामने आए हैं। 

Monkey Fever Karnataka
कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में मंकी फीवर के सबसे ज्यादा 34 मामले सामने आए हैं। 

क्या है क्या क्यासनूर फॉरेस्ट डीजीज वायरस ( What is Kyasanur Forest Disease Virus?)
कर्नाटक के स्वास्थ्य आयुक्त खुद इस वायरल बीमारी की रोकथाम के लिए काम कर रहे हैं। कर्नाटक स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, पूरे राज्य से करीब 2,288 सैंपल जुटाए गए थे। इनमें से 40 नमूनों में संक्रमण पाया गया है। कर्नाटक में पाए गए मंकी फीवर को  केएफडी (KFD) भी यानी कि क्यासनूर फॉरेस्ट डीजीज वायरस (Kyasanur Forest Disease Virus) भी कहा जाता है। यह आम मंकी फीवर से थोड़ा अलग है। यह एक टिक बॉर्न इनसेफ्लाइटिस (TBE) है। 

कैसे फैलती है यह बीमारी 
टीबीई टिक की वृक्ष पर रहने वाले कीटों की कई प्रजातियों से फैलता है। इस बीमारी को फैलाने वाले कीटों की खास प्रजाति को हेमोफैसैलिस स्पिनिजेरा कहते हैं । हेमोफैसैलिस स्पिनिजेरा (Haemophysalis spinigera) प्रजाति के किटाणु  प्रिसिंपल वेक्टर यानी कि मुख्य रूप से इस वायरस को फैलाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। क्यासनूर फॉरेस्ट रेंज में रहने वाले छोटे चूहे,  जंगली बंदर और पक्षियां इस बीमारी को फैलाने में होस्ट की भूमिका निभाते हैं।

जंगली जानवरों से इनसानों में फैलती है यह बीमारी
इसका मतलब यह है कि पहले यह जंगली जानवरों में प्रवेश करते हैं और उसके बाद जब यह जंगली जानवर इंसानों को काटते हैं या फिर इसके किटाणु किसी इंसान के खून तक किसी अन्य कारण से पहुंचता है तो वह इस खतरनाक बीमारी की चपेट में आ जाते हैं। इस बीमारी में सिर दर्द, चक्कर आना, पेट में दर्द और स्कीन पर चकत्ते पड़ने जैसे लक्षण नजर आते हैं। 

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भारत में केएफडी बीमारी से मरने वाले पहला व्यक्ति का नाम हनुमंतप्पा नायक था।

केएफडी का पहला केस कब सामने आया‍?
क्यासानूर वन रोग वायरस (KFDV) एक एरीदिवायरस(Arbovirus) वायरस है। यह बीमारी भारत के Kyasanur Forest Reserve में पाया जाता है, और इसलिए इसे क्यासानूर वन रोग (Kyasanur Forest Disease Virus - KFDV) कहा जाता है। Kyasanur Forest Disease Virus (KFDV) का पहला मामला 1957 में भारत के क्यासानूर जंगलों में सामने आया था। इस मामले में कुल 3 लोगों की मौत हुई थी।

केएफडी से पहली मौत कब हुई थी (First Case Of Death By KFD Disease) 
भारत में इस बीमारी से मरने वाला पहला व्यक्ति हनुमंतप्पा नायक था।वह कर्नाटक राज्य के शिमोगा जिले के क्यासानूर तहसील के हुमचडु गांव के रहने वाले थे। उनका इलाज शिमोगा के म्यूरुवा अस्पताल में हुआ था। बहुत कोशिशों के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका था। यह वायरस फ्लैविविरिडेई (Flaviviridae) और जेनस फ्लैविविरस (genus Flavivirus) फैमिली से ताल्लुक रखता है। 

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केएफडी (Kyasanur Forest Disease) से बचाव के लिए जंगली क्षेत्रों से दूर रहें। 

क्या मंकी वायरस और केएफडी एक हैं? 
मंकी वायरस और केएफडी एक बीमारी नहीं है। हालांकि, इनमें एक समानता यह है कि दोनों ही बीमारी वायरस से फैलने वाली हैं, लेकिन इनमें फर्क है। हालांकि, यह दोनों बीमारियां खतरनाक हैं और इन दोनों बीमारियों के लिए फिलहाल कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। इन दोनों बिमारियों की चपेट में आने से बचने के लिए एहितियात बरतने और सुरक्षा के उपाय करना ही बेहतरीन विकल्प है। 

मंकी फीवर और केएफडी के लक्षणों को जानिए: 

लक्षण Kyasanur Forest Disease Virus (KFDV) Monkeypox Virus
बुखार हो सकता है हो सकता है
चक्कर आना या सिरदर्द हो सकता है हो सकता है
शरीर में दर्द और जोड़ों में दर्द हो सकता है हो सकता है
उलझन हो सकता है बढ़ सकता है
खासी और सांस की समस्याएं हो सकता है हो सकता है
चेहरे पर दाने या चकत्ते हो सकता है हो सकता है
पेट में तकलीफें  हो सकता है हो सकता है
मुंह में चांपे या छाले हो सकता है हो सकता है
डायरिया या उलझनें हो सकता है हो सकता है
 बदलता स्कीन कलर  नहीं      हो सकता है

अब जानिए मंकी वायरस और केएफडी के बीच का अंतर

  1. Kyasanur Forest Disease Virus (KFDV): यह एक एरीदिवायरस (Arbovirus)जनित वायरस है जो मुख्य रूप से जानवरों, पक्षियों के काटने से इंसानों में फैलता है। यह इंडिया में पाया जाता है। 
  2. मंकी वायरस (Monkeypox Virus): यह एक ऑर्थोपोक्सवायरस वायरस है जो जानवरों खास तौर पर बंदरों से मनुष्यों में फैल सकता है। यह अफ्रीका के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। 
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KFDV का पहला मामला भारत में साल 1957 में कर्नाटक में सामने आया था। 

केएफडी बीमारी से बचने के क्या हैं उपाय: (Kyasanur Forest Disease Precautions

  • केएफडी (Kyasanur Forest Disease) से बचाव के लिए जंगली क्षेत्रों से दूर रहें:  केएफडी वायरस जंगली क्षेत्रों में पाए जाते हैं, इसलिए इन क्षेत्रों से दूर रहना बचने में मददगार साबित हो सकते हैं। 
  • ज्यादा बारिश वाले इलाकों में जाने से बचें: जंगली क्षेत्रों में अधिक बारिश के समय केएफडी फैलने  की ज्यादा संभावना होती है, इसलिए बारिश वाले क्षेत्रों से बचना अहम है।
  • सुरक्षित सफारी करें: जब भी जंगल या केएफडी के प्रभावित इलाकों में जाएं सुरक्षित सफारी करने पर ध्यान देना चाहिए, इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई जंगली जानवर ना काटे।
  • केएफडी प्रभावित जंगली क्षेत्र से लौटने पर अपने स्कीन की जांच करें। अगर स्कीन पर रैशेज हो रहें हैं तो हो सकता है कि बीमारी का संक्रमण हो। ऐसा होने पर तुंरत जांच करवाएं। 

 

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