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Jammu-Kashmir journalist Asif Sultan: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के दखल के बाद जम्मू-कश्मीर के पत्रकार आसिफ सुल्तान को पांच साल बाद रिहाई मिल गई है। सुल्तान को यूपी के अंबेडकर नगर जिला जेल में रखा गया था। जम्मू कश्मीर हाईकाेर्ट ने आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के मामले में बरी कर दिया।

Jammu-Kashmir journalist Asif Sultan: कश्मीर के पत्रकार आसिफ सुल्तान को आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के मामले में पांच साल बाद रिहाई मिल गई है। जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने दो महीने पहले ही सुल्तान की रिहाई के आदेश जारी कर दिए थे। कोर्ट ने पत्रकार की गिरफ्तारी से जुड़े मामले में कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने में चूक होने की बात कहते हुए उनके खिलाफ दर्ज मामले को खारिज कर दिया था। 

 रिहाई के लिए करना पड़ा इंतजार
सुल्तान को उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर जिला जेल में पांच साल काटने पड़े। हालांकि, कोर्ट की ओर से राहत मिलने के बाद भी सुल्तान को कश्मीर गृह विभाग और श्रीनगर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से क्लियरेंस लेटर मिलने में देरी होने की वजह से दो महीने तक और रिहाई के लिए इंतजार करना पड़ा। सुल्तान काे सितंबर 2018 में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) की विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया था। 

आतंकियों की मदद करने का था आरोप
सुल्तान पर प्रतिबंधित आतंकी संगठनों को लॉजिस्टिक सपोर्ट उपलब्ध करवाने यानी कि आने-जाने में मदद करने का आरोप था। गिरफ्तारी के चार साल बाद जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने सुल्तान को जमानत पर रिहा करने का आदेश जारी करने को मंजूरी दे दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि जांच एजेंसियां यह साबित करने में विफल रहीं कि सुल्तान किसी प्रतिबंधित संगठन से जुड़ा हुआ था। हालांकि, इसके महज चार दिन बाद ही श्रीनगर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने लोक सुरक्षा अधिनियम ((PSA) के तहत सुल्तान को हिरासत में लेने का आदेश जारी कर दिया था। जिससे सुल्तान की रिहाई का रास्ता बंद हो गया था।

पीएसए एक्ट के तहत लिया गया था हिरासत में
बीते साल 11 दिसंबर को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने पीएसए के तहत सुल्तान की  गिरफ्तारी को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि इस कानून के तहत कार्रवाई करने में उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया था। बता दें कि पीएसए एक्ट के तहत किसी भी शख्स को राष्ट्रीय सुरक्षा के कारणों से दो साल तक के लिए बिना ट्रायल हिरासत में रखा जा सकता है। साथ ही हिरासत की अवधि पूरा होने पर इसे बढ़ाने का भी प्रावधान होता है। 

सुरक्षा एजेंसियों ने पेश नहीं की एफआईआर की कॉपी
जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि सुल्तान पर मामला आतंक विरोधी कानून के तहत किया गया था, लेकिन गिरफ्तारी पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत हुई थी। इसके साथ ही सुरक्षा एजेंसियां धारा 161 के तहत दर्ज कराए गए बयान आर एफआई की कॉपी भी कोर्ट के सामने नहीं पेश कर पाए थे। इसकी वजह से ही सुल्तान ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

आतंकी बुरहान वानी पर लिखा था आर्टिकल 
जिस समय सुल्तान को गिरफ्तार किया गया था, वह कश्मीर नैरेटर नामक एक मैगजीन के लिए काम कर रहे थे। जुलाई 2018 में सुल्तान ने कश्मीरी आतंकवादी बुरहान वाणी पर एक आर्टिकल लिखा था। बुरहान वाणी को जुलाई 2016 में भारतीय सेना ने एक एनकाउंटर में मार गिराया था। इसके बाद कश्मीर में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया गया था। सुल्तान के भाई मोट्टा सुल्तान ने दावा किया कि सुल्तान को इस आर्टिकल को लिखने के सोर्स के बारे में बताने के लिए दबाव बनाया गया था। 

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