CJI की ED को चेतावनी: बोले- हमारा मुंह मत खुलवाइए ; MUDA केस सुनवाई में बड़ा बयान

Supreme Court
MUDA case: सुप्रीम कोर्ट में सोमवार (21 जुलाई) को मैसूर अर्बन डेवलपमेंट बोर्ड (MUDA) केस की सुनवाई हुई। SC ने सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ED) को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा- राजनीतिक लड़ाई चुनावी मैदान में लड़ी जानी चाहिए न कि जांच एजेंसियों के माध्यम से। कोर्ट ने सवाल उठाया कि इस तरह से ED का इस्तेमाल क्यों हो रहा है?
The Supreme Court has dismissed a plea filed by the Directorate of Enforcement (ED) challenging the Karnataka High Court’s decision to set aside the probe against B.M. Parvathi, the wife of Karnataka CM Siddaramaiah, in connection with the alleged irregularities with regard to…
— ANI (@ANI) July 21, 2025
हमारा मुंह मत खुलवाइए
CJI बीआर गवई और जस्टिस के.विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा कि हमारा मुंह मत खुलवाइए। नहीं तो हम ED के बारे में कठोर टिप्पणियां करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। मेरे पास महाराष्ट्र का कुछ अनुभव है। आप देशभर में इस हिंसा को मत फैलाइए।
क्या है MUDA केस?
मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) कर्नाटक की सरकारी संस्था है। MUDA का काम शहरी क्षेत्रों का विकास करना है। 1992 में MUDA ने आवासीय क्षेत्रों के विकास के लिए किसानों से भूमि अधिग्रहित की थी। इसके बदले MUDA की इंसेंटिव 50:50 स्कीम के तहत जमीन मालिकों को विकसित भूमि में 50% साइट या एक वैकल्पिक साइट दी गई।
कम कीमत पर प्रॉपर्टी देने का आरोप
हाल के वर्षों में MUDA पर आरोप है कि उसने कई लोगों को कम कीमत पर प्रॉपर्टियां दी थीं। इनमें सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को मैसूर में पॉश इलाके में दी गईं। इसमें 14 साइट्स शामिल हैं। ये साइट्स मैसूर के कसाबा होबली स्थित कसारे गांव की 3.16 एकड़ जमीन के बदले दी गई थीं। 14 साइट्स 3 लाख 24 हजार 700 रुपए में आवंटित की गई थीं।
ED ने जारी किया था समन
आरोप है कि सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती का 3.16 एकड़ ज़मीन पर वैध स्वामित्व नहीं था। उन्होंने मुआवज़े के लिए फर्जी दस्तावेज़ों का सहारा लिया। मुआवज़े के रूप में जो प्लॉट मिले, उनकी बाज़ार कीमत काफी अधिक थी, जबकि मूल ज़मीन की कीमत उसके मुकाबले बहुत कम आंकी जा रही है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इसी आधार पर उन्हें समन जारी किया था। हालांकि, कर्नाटक हाईकोर्ट ने मार्च 2024 में यह समन रद्द कर दिया था, जिस पर ED सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। 21 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई की। सुनवाई के दौरान CJI बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने ED को फटकार लगाते हुए कहा-"राजनीतिक लड़ाइयां चुनाव में लड़ी जानी चाहिए, जांच एजेंसियों से नहीं। अंत में कोर्ट ने ED की अपील को खारिज कर दिया।
