जस्टिस सूर्यकांत बने देश के 53वें CJI: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई शपथ, पूर्व CJI गवई से गले मिले; PM मोदी ने दी शुभकामनाएं

जस्टिस सूर्यकांत ने भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।
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जस्टिस सूर्यकांत ने भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।

जस्टिस सूर्यकांत ने भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। अनुच्छेद 370, CAA, चुनावी सुधार, महिला अधिकार और सेना से जुड़े बड़े फैसलों से उनकी पहचान बनी। जानें उनका पूरा सफर और कार्यकाल की अवधि।

जस्टिस सूर्यकांत ने सोमवार को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ग्रहण की। उन्होंने जस्टिस बी.आर. गवई का स्थान लिया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।

समारोह के दौरान एक भावुक पल तब देखने को मिला जब जस्टिस सूर्यकांत ने अपने पूर्ववर्ती CJI जस्टिस बी.आर. गवई को गले लगाया। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की।

30 अक्टूबर, 2025 को इस सर्वोच्च पद पर नियुक्त जस्टिस सूर्यकांत लगभग 15 महीने तक देश की सबसे बड़ी अदालत का नेतृत्व करेंगे और 9 फरवरी, 2027 को 65 वर्ष की आयु पूरी होने पर सेवानिवृत्त होंगे।


PM मोदी ने दी शुभकामनाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यक्रम के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा, "जस्टिस सूर्यकांत के भारत के चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुआ। उनके आगे के कार्यकाल के लिए उन्हें शुभकामनाएं।"


संघर्ष और लगन से न्यायपालिका के शिखर तक

10 फरवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे जस्टिस सूर्यकांत ने अपने संघर्ष और लगन से न्यायपालिका के शिखर तक का सफर तय किया। छोटे शहर से वकालत शुरू करने वाले इस न्यायाधीश ने शैक्षणिक क्षेत्र में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उन्होंने 2011 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से विधि में स्नातकोत्तर (LL.M.) की डिग्री प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान के साथ हासिल की।

सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में कई महत्वपूर्ण फैसले दिए। इसके बाद 5 अक्टूबर, 2018 से वे हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे। 2019 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत होने के बाद उन्होंने संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व के कई ऐतिहासिक फैसलों में निर्णायक भूमिका निभाई।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने, नागरिकता संशोधन कानून (CAA), अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, चुनावी सुधारों जैसे ज्वलंत मुद्दों पर उनके फैसले चर्चा में रहे। वे उस पीठ के सदस्य थे जिसने औपनिवेशिक काल के देशद्रोह कानून (धारा 124A) को फिलहाल निलंबित कर दिया और केंद्र सरकार को समीक्षा लंबित रहने तक इस धारा में नई FIR दर्ज करने से रोकने का निर्देश दिया।

चुनावी पारदर्शिता के क्षेत्र में उन्होंने निर्वाचन आयोग को बिहार में विशेष संशोधन अभियान के दौरान मतदाता सूची से हटाए गए लगभग 65 लाख लोगों की पूरी जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया। लैंगिक न्याय के प्रति उनकी संवेदनशीलता कई फैसलों में दिखी। एक महिला सरपंच को गैर-कानूनी तरीके से हटाए जाने के मामले में उन्होंने तुरंत बहाली का आदेश दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित सभी बार संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का निर्देश दिया।

रक्षा क्षेत्र में उन्होंने वन रैंक-वन पेंशन योजना को वैध ठहराया और महिला सैन्य अधिकारियों को स्थायी कमीशन में पुरुषों के समान अधिकार देने संबंधी याचिकाओं पर सकारात्मक सुनवाई की। पेगासस जासूसी कांड में उन्होंने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर राज्य को “खुला लाइसेंस” नहीं मिल सकता।

2022 में पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा चूक की जांच के लिए जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में गठित समिति में भी उनका योगदान रहा।

हाल ही में सात जजों की संवैधानिक पीठ का हिस्सा रहते हुए उन्होंने 1967 के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मामले को पलटने का रास्ता खोला, जिससे विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे पर नए सिरे से विचार संभव हो सका। राज्यपालों की विधेयक रोकने की शक्ति और राष्ट्रपति संदर्भ जैसे मुद्दों पर भी उनके विचारों का गहरा प्रभाव रहा।

निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के अपने लंबे सफर में जस्टिस सूर्यकांत ने हमेशा संविधान की भावना, लोकतंत्र की जड़ों और आम नागरिक के अधिकारों को मजबूत करने वाले फैसलों से अपनी अलग पहचान बनाई है। अब देश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनकी अगुवाई में भारतीय न्यायपालिका नई ऊंचाइयों को छूने की उम्मीद की जा रही है।

शपथ समारोह में राहुल गांधी की गैरमौजूदगी पर भाजपा का हमला

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत के शपथ ग्रहण समारोह में लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की अनुपस्थिति को लेकर भाजपा ने तीखा हमला बोला है। पार्टी की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर लिखा, “नई नियुक्त हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत के शपथ समारोह में विपक्ष के नेता राहुल गांधी एक बार फिर दिखाई नहीं दिए। किसी को नहीं पता कि वे कहाँ हैं और उन्होंने इतने महत्वपूर्ण संवैधानिक कार्यक्रम में हिस्सा क्यों नहीं लिया।”

कर्नाटक की स्थिति पर निशाना साधते हुए मालवीय ने आगे कहा कि कांग्रेस सरकार गंभीर आंतरिक कलह से जूझ रही है। “सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार गुटों के बीच संघर्ष से कर्नाटक उबाल पर है। हाईकमान कोई स्पष्ट निर्णय नहीं ले पा रहा, क्योंकि हर फैसला राहुल गांधी से ‘सलाह-मशविरा’ पर अटका है, लेकिन राहुल इस संकट को सुलझाने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं।”

मालवीय ने आरोप लगाया कि कांग्रेस के सत्ता में होने के बावजूद जनता सबसे ज़्यादा परेशान है।

गौरतलब है कि इस शपथ समारोह में भूटान, केन्या, मलेशिया, ब्राजील, मॉरिशस, नेपाल और श्रीलंका के मुख्य न्यायाधीशों सहित सुप्रीम कोर्ट के कई जज भी उपस्थित थे।

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