सर्दियों में सुलग उठे नैनीताल और बागेश्वर के जंगल: रामगढ़ और गणखेत रेंज में वन संपदा को नुकसान, खतरे में वन्यजीव

रामगढ़ और गणखेत रेंज में वन संपदा को नुकसान, खतरे में वन्यजीव
X

शीतकालीन वनाग्नि से मिट्टी की उर्वरता और जल स्रोतों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

शुष्क मौसम और मानवीय लापरवाही के कारण भड़की यह आग अब रिहायशी इलाकों और वन्यजीवों के लिए बड़ा खतरा बन गई है।

नैनीताल : उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में इन दिनों कुदरत का अजीब विरोधाभास देखने को मिल रहा है। एक तरफ जहां पूरा प्रदेश कड़ाके की ठंड और शीतलहर की चपेट में है, वहीं नैनीताल के रामगढ़ और बागेश्वर के गणखेत रेंज के जंगलों में लगी भीषण आग ने प्रशासन की नींद उड़ा दी है।

दिसंबर के महीने में वनाग्नि की ये घटनाएं न केवल वन संपदा को राख कर रही हैं, बल्कि पारिस्थितिक तंत्र के लिए भी खतरे की घंटी बजा रही हैं।

स्थानीय ग्रामीणों और वन विभाग के बीच समन्वय की कमी के कारण आग विकराल रूप धारण करती जा रही है।

रामगढ़ के जंगलों में बेकाबू लपटें और धुंध का साया

नैनीताल जिले का रामगढ़ ब्लॉक, जो अपनी फल पट्टियों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, इस समय धुएं की चादर में लिपटा हुआ है। मंगलवार से शुरू हुई यह आग चीड़ के सूखे पत्तों के कारण तेजी से फैली है।

स्थानीय प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आग की लपटें रिहायशी इलाकों के बेहद करीब पहुंच चुकी हैं। कड़ाके की ठंड के बावजूद आग की तपिश ने आसपास के गांवों के तापमान में बढ़ोतरी कर दी है।

प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती ऊंचे पहाड़ी ढलानों तक पहुंचना है, जहां दमकल की गाड़ियां नहीं जा सकतीं।

बागेश्वर की गणखेत रेंज में वन संपदा को भारी नुकसान

बागेश्वर जिले के गणखेत और बैजनाथ वन रेंज में वनाग्नि ने तांडव मचा रखा है। सूत्रों के मुताबिक, गणखेत के जंगलों में लगी आग ने कई एकड़ क्षेत्र में फैली बहुमूल्य जड़ी-बूटियों और छोटे पौधों को नष्ट कर दिया है।

इसके साथ ही हुनेरा और तिलसारी माटे के जंगलों में भी आग लगने की पुष्टि हुई है। रात के समय पहाड़ियों पर आग की लंबी लकीरें साफ देखी जा सकती हैं।

वन विभाग की टीमें मौके पर तैनात होने का दावा तो कर रही हैं, लेकिन धरातल पर आग बुझाने के संसाधन अपर्याप्त नजर आ रहे हैं।

सर्दियों में वनाग्नि के कारण और विभाग की विफलता

विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल लंबे समय से बारिश न होने के कारण जंगलों में नमी खत्म हो गई है, जिससे सूखी घास और पिरुल ने ईंधन का काम किया है।

आमतौर पर फायर सीजन 15 फरवरी से शुरू होता है, लेकिन दिसंबर में ही आग लगने की घटनाओं ने वन विभाग की 'फायर मैनेजमेंट' रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

ग्रामीणों का आरोप है कि 'वाच टावरों' और गश्त की कमी के चलते असामाजिक तत्वों या मानवीय लापरवाही से लगी ये आग समय रहते नहीं बुझाई जा सकी।

वन्यजीवों का पलायन और पारिस्थितिक संकट

जंगलों में लगी इस आग ने न केवल पेड़ों को जलाया है, बल्कि वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को भी तबाह कर दिया है। आग के डर से जंगली जानवर अब रिहायशी बस्तियों की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ने की आशंका पैदा हो गई है।

साथ ही, धुएं के कारण वायु गुणवत्ता में गिरावट आई है, जो स्थानीय निवासियों, विशेषकर बुजुर्गों और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रही है। पर्यावरणविदों के अनुसार, शीतकालीन वनाग्नि से मिट्टी की उर्वरता और जल स्रोतों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

Next Story