12 साल बाद श्री नंदा राजजात यात्रा फिर हुई शुरू, श्रद्धालु करते है 230 किमी पदयात्रा

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By - haribhoomi.com |26 Aug 2014 6:30 PM
19 पड़ावों वाली 290 किमी लंबी श्री नंदा राजजात का प्रत्येक पड़ाव अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है।
उत्तराखंड की प्रसिद्ध श्री नंदा राजजात यात्रा की शुरूआत हो चुकी है। इस यात्रा में हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। नंदा राजजात यात्रा तीन हफ्ते तक चलने वाली सबसे बड़ी यात्रा है। यह यात्रा 17 अगस्त से 6 सितम्बर तक चलेगी। यात्रा की दूरी 290 किलोमीटर तक है। जिसमें 230 किलोमीटर यात्रा पैदल होती है और 60 किलोमीटर बस से होगी। गढ़वाल और कुमाउं क्षेत्र के लोग मुख्य रूप से इस यात्रा में भाग लेते है। इनके अलावा पूरे भारत और विश्व से भी लोग इस यात्रा में शामिल होते है। पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और चमोली जिले तक नंदा देवी का संबंध है और नंदा देवी के नाम से अभयारण्य है।
यात्रा चमोली के नौटी स्थल से शुरु होकर विभिन्न पड़ावों से होते हुए नौटी में ही आकर समाप्त होती है। श्री नंदा देवी राजजात यात्रा की शुरुआत राजशाही के जमाने से हुई है। राज शाही खत्म हुई लेकिन यात्रा से जुड़ी परंपराओं का असर आज भी जीवित है। राजजात की समृद्ध परंपरा ही अगले महीने राजजात के अगुवा को औपचारिक तौर पर सामने ला देगी। राड परिवार से जुड़े कांसुवा गांव के कुंवर ही आयोजन समिति के अध्यक्ष बनते हैं। 2011 मे यह सीट खाली हो जाने के बाद कार्यकारी व्यवस्था चल रही है। जिसमें विभिन्न सलाणे औपचारिक तौर पर अध्यक्ष को पर चुना जाता है। आयोजन समति के अध्यक्ष और महामंत्री दो पद ऐसे है, जो सालों पुरीनी परंपराओं के मुताबिक खास जाति के पास रखे गए हैं।अध्यक्ष कांसुवा गांव के कुंवर, तो महामंत्री नौटी गांव के नौटियाल। यात्रा के दौरान अध्यक्ष सबसे अहन भूमिका निभाता है।
श्री नंदाराजजात से जुड़ी कुछ बातें
माना जाता है नौंवी शताब्दी में चांदपुर गढ़ के राजा शालीपाल ने श्री नंदा राजजात को शुरू कराया। ये यात्रा अमूमन 12 साल में होती है, लेकिन ये तथ्य भी रहे हैं कि इसका ये समय घटा-बढ़ा है। इस बार की यात्रा भी 2013 में एक साल देरी से कहा हो रही है। वैसे, राजजात समिति के पास 1843 से लेकर 2000 तक की यात्रा से संबंधित अभिलेख ही उपलब्ध हैँ।
कौन है सलाणे
राजाशाही के दौरान राजा विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रतिनिधि नियुक्त करते थे। उन्हें ही सलाणे कहा जाता है। ये लोग थोकदार प्रधान होते थे। टैक्स वसूली और राजा की आज्ञा को संबंधित क्षेत्र मेम पालन कराना इनक् जिम्मे होता था। राजशाही का दौर खत्म होने के बाद भी क्षेत्र में उनकी वो ही पुरानी पहचान कायम है।
ये हैं प्रमुख सलाणे
कुरूड़ गांव के गौड़ , देवराड़ा के हटवाल, मैटा के मेहर रावत, भेंटा के कुलेखी रावत भेंटा के कुलेखी रावत, त्रिकोट के बुटोला रावत, आदरा के भंडारी, पास्तोली के कठैत, माल के खोल्या रावत, देवलकोट के श्रेष्ठ, फल्दिया के पहिहार बिष्ट, कुलसारी के कुलसारा, चैप्ड्यू के बुटोला रावत, गेरूड़ के बुटोला रावत, तेनगढ़ के परिहार।
राजजात यात्रा से जुड़ी ऐतिहासिक बातें -
मां श्री नंदा राजजात में कांसुवा गांव की विशेष भूमिका है। यहां के कुंवर लोग ही श्री नंदा राजजात आयोजन का संकल्प लेते हैं।19 पड़ावों वाली 290 किमी लंबी श्री नंदा राजजात का प्रत्येक पड़ाव अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। मां श्री नंदा राजजात के इन्ही पड़ावों में कांसुवा का भी विशेष स्थान है। यात्रा का तीसरा पड़ाव होने के साथ ही यह स्थान गढ़वाल राजाओं की गाथाओं को अपने समाए है। मान्यताओं के अनुसार 8वीं सदी में हिमालय क्षेत्र के गढ़वाल में परमार(पंवार) राजवंश का उदय हुआ। परमार राजाओं में कनकपाल को संस्थापक राजा माना जाता है, जिसने राजधानी चांदपुर गढ़ी बनाई। चांदपुर गढ़ में लगे शिलालेख में इस वंश का प्रारंभ विक्रम संवत 945(8वीं सदी) माना गया है। लगभग 1514 में पंवार वंश में 37 वीं पीढ़ी में पैदा हुए राजा अजय पाल ने गढ़वाल में समस्त 52 गढ़ो का एकीकरण कर गढ़वाल राज्य की स्थापना की। इसके बाद राजा ने चांदीपुर गढ़ी से राजधानी को देवलगढ़ स्थापित करते हुए अपने कुंवर को चांदपुर गढ़ी की जिम्मेदारी और श्रीनंदा राजजात का प्रभार भी सौंपा।
कांसुवा में होता है राजछात्र का स्वागत
कांसुवा(कणसा अर्थात छोटा)मां श्री नंदा राजजात शुरू होने से दो दिन पूर्व गैरसैंण प्रखंड के छिमटा गांव के राज रूड़िया राजछत्र(रिंगाल की छांतोली) को लेकर कांसुवा पहुंचते हैं। यहां पर कुंवर उनका भव्य स्वागत करते है। अगले दिन कुंवर राजछत्र और चौसींगा मेंढ़ा को लेकर नौटी के लिए रवाना होते हैं। राजजात के दिन संकल्प के साथ ही राजछत्र पर मां श्री नंदा की सोने की प्रतिमा स्थापित कर पूजा एवं अन्य अनुष्ठानों के उपरांत मां श्री नंदा राजजात अपने अगले पड़ाव के लिए प्रस्थान करती है।
श्री नंदाराजजात से जुड़ी कुछ बातें
माना जाता है नौंवी शताब्दी में चांदपुर गढ़ के राजा शालीपाल ने श्री नंदा राजजात को शुरू कराया। ये यात्रा अमूमन 12 साल में होती है, लेकिन ये तथ्य भी रहे हैं कि इसका ये समय घटा-बढ़ा है। इस बार की यात्रा भी 2013 में एक साल देरी से कहा हो रही है। वैसे, राजजात समिति के पास 1843 से लेकर 2000 तक की यात्रा से संबंधित अभिलेख ही उपलब्ध हैँ।
कौन है सलाणे
राजाशाही के दौरान राजा विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रतिनिधि नियुक्त करते थे। उन्हें ही सलाणे कहा जाता है। ये लोग थोकदार प्रधान होते थे। टैक्स वसूली और राजा की आज्ञा को संबंधित क्षेत्र मेम पालन कराना इनक् जिम्मे होता था। राजशाही का दौर खत्म होने के बाद भी क्षेत्र में उनकी वो ही पुरानी पहचान कायम है।
ये हैं प्रमुख सलाणे
कुरूड़ गांव के गौड़ , देवराड़ा के हटवाल, मैटा के मेहर रावत, भेंटा के कुलेखी रावत भेंटा के कुलेखी रावत, त्रिकोट के बुटोला रावत, आदरा के भंडारी, पास्तोली के कठैत, माल के खोल्या रावत, देवलकोट के श्रेष्ठ, फल्दिया के पहिहार बिष्ट, कुलसारी के कुलसारा, चैप्ड्यू के बुटोला रावत, गेरूड़ के बुटोला रावत, तेनगढ़ के परिहार।
राजजात यात्रा से जुड़ी ऐतिहासिक बातें -
मां श्री नंदा राजजात में कांसुवा गांव की विशेष भूमिका है। यहां के कुंवर लोग ही श्री नंदा राजजात आयोजन का संकल्प लेते हैं।19 पड़ावों वाली 290 किमी लंबी श्री नंदा राजजात का प्रत्येक पड़ाव अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। मां श्री नंदा राजजात के इन्ही पड़ावों में कांसुवा का भी विशेष स्थान है। यात्रा का तीसरा पड़ाव होने के साथ ही यह स्थान गढ़वाल राजाओं की गाथाओं को अपने समाए है। मान्यताओं के अनुसार 8वीं सदी में हिमालय क्षेत्र के गढ़वाल में परमार(पंवार) राजवंश का उदय हुआ। परमार राजाओं में कनकपाल को संस्थापक राजा माना जाता है, जिसने राजधानी चांदपुर गढ़ी बनाई। चांदपुर गढ़ में लगे शिलालेख में इस वंश का प्रारंभ विक्रम संवत 945(8वीं सदी) माना गया है। लगभग 1514 में पंवार वंश में 37 वीं पीढ़ी में पैदा हुए राजा अजय पाल ने गढ़वाल में समस्त 52 गढ़ो का एकीकरण कर गढ़वाल राज्य की स्थापना की। इसके बाद राजा ने चांदीपुर गढ़ी से राजधानी को देवलगढ़ स्थापित करते हुए अपने कुंवर को चांदपुर गढ़ी की जिम्मेदारी और श्रीनंदा राजजात का प्रभार भी सौंपा।
कांसुवा में होता है राजछात्र का स्वागत
कांसुवा(कणसा अर्थात छोटा)मां श्री नंदा राजजात शुरू होने से दो दिन पूर्व गैरसैंण प्रखंड के छिमटा गांव के राज रूड़िया राजछत्र(रिंगाल की छांतोली) को लेकर कांसुवा पहुंचते हैं। यहां पर कुंवर उनका भव्य स्वागत करते है। अगले दिन कुंवर राजछत्र और चौसींगा मेंढ़ा को लेकर नौटी के लिए रवाना होते हैं। राजजात के दिन संकल्प के साथ ही राजछत्र पर मां श्री नंदा की सोने की प्रतिमा स्थापित कर पूजा एवं अन्य अनुष्ठानों के उपरांत मां श्री नंदा राजजात अपने अगले पड़ाव के लिए प्रस्थान करती है।
नीचे की स्लाइड्स में देखिए, श्री नंदा राजजात यात्रा का दृश्य
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