सियासी फलक पर मजबूत होकर उभरे मोदी

सियासी फलक पर मजबूत होकर उभरे मोदी
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नरेन्द्र मोदी के दामन पर 2002 के दंगों के जो दाग थे वह भाजपा और मोदी के लिए चिंता का सबब थे और विरोधियों के लिए सुकून का सामान।
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नई दिल्ली. सियासत में यूं तो कभी-कभी दाग भी अच्छे होते हैं। किंतु भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के दामन पर वर्ष 2002 के दंगों के जो दाग थे वह भाजपा और मोदी के लिए चिंता का सबब तो, विरोधियों के लिए सुकून और उम्मीद का सामान।

गुरुवार को जब अहमदाबाद की अदालत का फैसला सामने आया तो विरोधियों की उम्मीद का सामान बिखर गया और मोदी कत्लेआम के आरोपों से बेदाग होकर निकले। भले ही राजनीतिक बिरादरी में एक बड़ी जमात मजबूरियों के चलते अब भी उन्हें अछूत कहे पर अदालत के इस फैसले के बूते मोदी की स्वीकार्यता का दायरा निश्चय ही बाहर और भीतर दोनों ओर बढ़ा है। वहीं कल तक रक्षात्मक मुद्रा अख्तियार करने को बेबस भाजपा के लिए यह फैसला 2014 के आम चुनाव में विरोधियों के खिलाफ बड़े हथियार के तौर पर भी काम आता दिखेगा।
राजनैतिक मामलों की विशेषज्ञ मनीषा प्रियम सहाय का कहना है कि, यह पहला मौका नही है जब मोदी को 2002 के दंगों के मामले में क्लीन चिट मिली हो। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी की जांच रिपोर्ट में मोदी को पाकसाफ ठहराने के फैसले को कम वजनदार नही आंका जाना चाहिए। क्योंकि एसआईटी की टीम में नियुक्त अधिकारियों का चयन खुद सुप्रीम कोर्ट की ओर से किया गया था। एसआईटी ने एक दशक में जितने तथ्य थे सबको खंगाला और उसकी धारणा पूरी तरह सबूतों पर मान्य निष्कर्ष है। मनीषा के मुताबिक, मोदी ने अदालती लड़ाई जीत ली है पर राजनैतिक लड़ाई में उन्हे अब भी दंगों के दंश झेलने होंगे। हालांकि, यह साफ हो गया है कि विरोधी पार्टियों की ओर से यह कह पाना आसान न होगा कि गुजरात के दंगे साजिश थे और मोदी मौत के सौदागर। क्योंकि देश की सबसे बड़ी अदालत की ओर से हर तथ्य की छानबीन की जा चुकी है।

बहरहाल, अदालती लड़ाई में इस फैसले से भाजपा के नेताओं के चेहरे खिल उठे हैं और विरोधियों पर हमले के तेवर में भी सख्ती झलक रही है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली का कहना है कि, फर्जी आरोप कभी सबूत नही बन सकते। इस फैसले के बाद मोदी और मजबूत बनकर उभरे हैं।

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