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स्व का ध्यान रखें, स्व की जिम्मेदारी लें, स्व को सशक्त बनाएं, स्व को मान दें एवं स्व को प्रेम करें। ऐसा करने से हम आध्यात्मिक, भावनात्मक, मानसिक, शारीरिक एवं सामाजिक पांचों रूपों में शक्तिशाली बनते जाते हैं।

Motivational: आध्यात्मिक संस्था ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से जुड़ीं राजयोग मेडिटेशन शिक्षिका एवं अतंरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मोटिवेशनल स्पीकर बीके शिवानी दुनिया भर के लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन में सार्थक और सकारात्मक परिवर्तन लाने के प्रेरित करती रहती हैं। नववर्ष के अवसर पर शिवानी बता रही हैं बेहतर, शांतचित्त और खुशहाल जीवन जीने के सूत्र। 

आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता बीके शिवानी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। 2007 में प्रसारित टीवी शो- ‘अवेकनिंग विद ब्रह्मा कुमारीज’ के माध्यम से वह दुनिया भर के लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन में सार्थक एवं सकारात्मक परिवर्तन लाने के निमित्त बनीं। साथ ही जनमानस को मानसिक तनाव, अवसाद आदि से मुक्त होकर अपने आत्म-सम्मान को ऊंचा रखने एवं आपसी संबंधों को प्रगाढ़ बनाने की प्रेरणा दी। 2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित बीके शिवानी विश्व साइकिएट्रिक एसोसिएशन की गुडविल एम्बेसेडर होने के अलावा फॉग्सी (एफओजीएसआई) के अद्भुत मातृत्व कार्यक्रम से भी जुड़ी हैं। 

नव वर्ष के मायने: नए वर्ष का मतलब होता है, पुराने को विदाई और नए को बधाई देना। पुरानी, कड़वी बातों, घटनाओं को भूल कर आगे बढ़ना। लेकिन क्या हम ऐसा कर पाते हैं? जवाब है-नहीं। अधिकतर लोग वर्षों तक इन कटु बातों को याद रखते हैं। मन पर बोझ लिए चलते रहते हैं और दुखी रहते हैं। जरूरी यह है कि हम पुराने साल को विदा करते समय ऐसी तमाम यादों, कमजोरियों को बिसारते जाएं। हरेक के प्रति शुभभावना रखें। लोगों को दुआएं दें, तो स्वयं को भी दुआ देना ना भूलें। नए, शक्तिशाली संकल्प लें और इन्हें दृढ़ता के साथ पूर्ण करें।

स्व-परिवर्तन सिखाता है राजयोग ध्यान: राजयोग ध्यान द्वारा स्व-परिवर्तन की इस अद्भुत यात्रा को मुझे 25 वर्ष से अधिक हो गए हैं। गुजरते समय के साथ अपने भीतर छिपे अहंकार को आत्मिक स्वरूप के अभ्यास से परिवर्तित करने का प्रयास किया है। यह यात्रा अब भी जारी है, क्योंकि आंतरिक शक्ति का विकास एक निरंतर प्रक्रिया है। हमें किसी से कुछ मांगना नहीं, सिर्फ देना होता है। देने से आंतरिक शक्ति स्वयं ही बढ़ती जाती है। जो हम देते हैं, बदले में वही पाते हैं। यह सोच दुनिया की उस मान्यता से ठीक विपरीत है कि हम जो पाते हैं, वही सच है। इससे शांति, स्थिरता एवं स्वीकार्यता तीनों बढ़ती है। इच्छाएं खत्म होती जाती हैं और वर्तमान में रहने की आदत स्वाभाविक बन जाती है। हमारे ब्रह्मा कुमारीज में एक खूबसूरत कहावत है कि जब मैं बदलूंगी तो मेरी दुनिया भी बदलेगी। तमाम आध्यात्मिक सिद्धांत एवं पद्धति भी स्व में सुधार लाने पर ही जोर देते हैं। अर्थात् स्व का ध्यान रखें, स्व की जिम्मेदारी लें, स्व को सशक्त बनाएं, स्व को मान दें एवं स्व को प्रेम करें। ऐसा करने से हम आध्यात्मिक, भावनात्मक, मानसिक, शारीरिक एवं सामाजिक पांचों रूपों में शक्तिशाली बनते जाते हैं। इसलिए किसी व्यक्ति या बाह्य परिस्थिति के बदलने की प्रतीक्षा किए बिना स्वयं पर ध्यान दें।

ऐसे रखें खुद को शांत: अशांत वातावरण में खुद को शांत रखने से पहले हमें समझना होगा कि कोलाहल हमारे आस-पास नहीं, बल्कि हमारे अपने मन के अंदर होता है। अगर सुबह ही हम अपने मन की स्थिति को ठीक कर लेते हैं और पूरा दिन थोड़ा-थोड़ा उसका ध्यान रखते रहते हैं, तो कैसी भी परिस्थिति आने पर हम उसका स्थिर रहकर सामना कर पाते हैं। जैसे किसी फोन को सुबह चार्ज करने के बाद उसके सैकड़ों फीचर्स पूरे दिन कार्य करते रहते हैं। लेकिन बैट्री अगर चार्ज ना हो, तो फिर फोन रखने का कोई उद्देश्य नहीं रह जाता है। उसी प्रकार, हमारी आत्मा भी एक बैट्री की तरह ही है, जिसे हमें हर सुबह मेडिटेशन से चार्ज करना पड़ता है। इसके अलावा, जब हम कर्मयोगी के स्वरूप में स्थित होकर कोई कार्य करते हैं, तो उसकी दिशा सही होती है। कहने का तात्पर्य है कि हर कर्म करते हुए हमें अपने वाइब्रेशंस का ध्यान रखना होता है।

कैसे मिलती है सच्ची खुशी: सच्ची खुशी तब मिलती है, जब हमारा मन हर परिस्थिति में स्थिर रहता है। यानी बाह्य संसार में कुछ भी घटित क्यों ना हो रहा हो, कोई व्यक्ति कुछ भी क्यों ना बोल रहा हो, आलोचना ही क्यों ना कर रहा हो, मन हलचल में नहीं आता है। विचलित नहीं होता है और हम खुश रहते हैं। इसी प्रकार, जब मन में सही विचार उत्पन्न होते हैं, तो हमें खुशी मिलती है। असल में खुशी हमारे भीतर ही छिपी है। वह प्रत्येक मनुष्य आत्मा का मूल एवं आंतरिक गुण है। विडंबना यह है कि आज मानव बाहरी दुनिया में खुशी तलाश रहा है। उसकी खुशी दूसरों पर निर्भर हो गई है। मनोनुकूल परिस्थिति ना होने पर वह दुखी, निराश हो जाता है। ऐसे में हम अगर अपनी स्व स्थिति पर ध्यान दें, तो खुश रहने से कोई रोक नहीं सकता है।   

बच्चों-युवाओं के लिए संदेश: आजकल बच्चे, किशोर और युवा कई तरह की मानसिक समस्याओं का सामना करते दिखते हैं। हमें समझना होगा कि उनकी मानसिक समस्याओं के कई कारण हैं। पहला, वे अपने घरों में बड़ों को गुस्सा, तनाव, बेचैनी, चिंता आदि में घिरा देखते हैं। वही वाइब्रेशन उन्हें खुद भी अनुभव होती हैं। इसके अतिरिक्त, बाहरी जगत का नकारात्मक वातावरण उनके मन-मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसके अलावा, अभिभावकों एवं अन्य लोगों द्वारा बच्चों के अंदर निरंतर यह विचार डाला जाता है कि जैसी परिस्थिति होगी, वैसे ही उनका मन होगा। परिणाम यह होता है कि बच्चों और युवाओं की भावनाएं बाह्य कारकों पर निर्भर करने लगती हैं। किसी को क्रोध आता है, तो वे भी गुस्सा करने लगते हैं। कोई निराश होता है, तो उन्हें भी वही महसूस होता है। इस प्रकार की भावनात्मक निर्भरता से उनका भावनात्मक स्वास्थ्य कमजोर हो जाता है। हालांकि, बच्चे या युवा अपनी दिनचर्या में सुधार लाकर इन तमाम समस्याओं से निजात पा सकते हैं। उनके बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि वे रात को समय से (दस बजे तक) सोएं। सोने से कम से कम एक घंटे पहले गैजेट्स से दूरी बना लें। इसके बदले सकारात्मक चीजें पढ़कर या सुनकर सोएं। तब नींद भी अच्छी आएगी और सुबह जल्दी उठ सकेंगे। इससे वे ऊर्जावान महसूस करेंगे। साथ में उनकी रचनात्मकता, स्पष्टता, निर्णय लेने की क्षमता सब बढ़ जाएगी। याद रखें कि आप जो पढ़ते, सुनते, देखते और बोलते हैं, उससे ही विचार उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा, टीवी या मोबाइल फोन देखकर खाना बंद करें। खाने से पहले मेडिटेशन के जरिए भोजन में सकारात्मक ऊर्जा भरें। हो सके तो घर का बना भोजन करें, जिसमें प्यार के वाइब्रेशन होते हैं और जो शुद्धता से बनाए जाते हैं। इन उपायों से उन्हें अवश्य लाभ होगा।

बातचीत:अंशु सिंह
                                                                                                      बीके शिवानी
                                                                                                  मोटिवेशनल स्पीकर
 

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