International Family Day: संपूर्ण संसार एक परिवार के समान, ना भूलें विश्व परिवार की भावना

International Family Day
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International Family Day: आत्मवत् सर्व भूतानि यः पश्यति सः पंडिताः इस पौराणिक सूत्र में मानव कल्याण की समग्र भावना सन्निहित है। यह सारा विश्व एक सूत्र में बंध सकता है।

International Family Day: प्राकृतिक रचना की दृष्टि से भी देखा जाए तो सभी मनुष्य एक ही परिवार के सदस्य हैं, क्योंकि परिवार उसे माना जाता है जहां रक्त का संबंध स्थापित हो सके और संसार के किसी भी कोने के मानव का रक्त, संसार के किसी भी दूसरे कोने के अन्य मानव को चढ़ाया जा सकता है। और जहां तक रक्त के ग्रुप की बात है वह तो पिता और पुत्र का भी अलग-अलग हो सकता है अन्यथा जाति, कुल आदि के आधार पर रक्त की भिन्नता नहीं है। हम जानते हैं, एक ही केंद्र या स्रोत से निकलने वाले जल की कालांतर में अनेक धाराएं बन जाती हैं।

इसी प्रकार, लंबे समय से यदि दो सगे भाई भी बिछड़ जाएं और अपनी-अपनी पहचान खो दें तो उनमें भी बेगानापन आ जाता है। कुछ ऐसा ही इस विश्व परिवार के साथ भी हुआ है। बीज और तने की सही जानकारी न होने के कारण कालांतर में निकली शाखाएं अपने को ही मूल पेड़ मान बैठी हैं और इस प्रकार शाखाएं, उप-शाखाएं, टहनियां आपस में टकराने लगी हैं। अब, पेड़ तो जड़ होता है और उसका बीज बोल नहीं सकता, नहीं तो वो बताता कि कौन-सी शाखा पहले आई, कौन-सी बाद में अर्थात् पेड़ के क्रमवार विकास की जानकारी वह देता। परंतु, सृष्टि रूपी वृक्ष का बीज परमात्मा तो चेतन है। जब वह देखता है कि वैश्विक भावना को भूलकर उसके बच्चे छोटे-छोटे समूहों में बंट गए हैं और एक-दूसरे से कट गए हैं, उनका प्रेम संकुचित और स्वार्थपरक हो गया है, तब ऐसे माहौल को मिटाने के लिए वह स्वयं इस सृष्टि पर अवतरित होकर हम मनुष्यों को हदों से निकालकर एक विश्व-परिवार की भावना से, एक परिवार में जोड़ने का महान कार्य करते हैं।

हम ना भूलें विश्व परिवार की भावना
आज जबकि भ्रष्टाचार सहित अनेकानेक समस्याओं से देश और विश्व जूझ रहा है, सभी में यदि विश्व परिवार की यह उच्चतम श्रेष्ठ भावना घर कर जाए तो इन सभी समस्याओं को छूमंतर होने में देरी नही लगेगी। स्मरण रहे, मेरे-तेरे की क्षुद्र भावनाएं ही समस्याओं को जन्म देती हैं, आपस में दूरियां बढ़ाती हैं। इसीलिए आज आवश्यक है कि हम संपूर्ण विश्व को अपने परिवार का हिस्सा मानें। किसी के प्रति कोई दुर्भावना ना पालें। जब हम देह भान की हदों को तोड़ आत्मिक नाते से सारे विश्व को परिवार की नजर से देखना और समझना सीख जाते हैं तो कोई वैर नहीं रह जाता है। राजयोग हमें इसी मार्ग का अनुसरण करने को कहता है, ‘हम सभी एक हैं और एक परमात्मा की संतान हैं। इस प्रकार एक परिवार के ही सदस्य हैं। इस सोच से ही हमारा और विश्व का कल्याण संभव है।

आत्मचिंतन
राजयोगी बीके निकुंज जी

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