विज्ञान के क्षेत्र में स्टेम साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स में आर्ट जोड़कर स्टेम करना है जरूरी

भोपाल। आज के समय में शिक्षा को रुचिकर बनाना आवश्यक है, यह जरूरी नहीं की कागज पेन से ही आप साइंस और मैथ्स के सवालों को हल कर सकते हैं, आप अपने आस पास मौजूद चीजों और अपनी अन्य इंद्रियों के प्रयोग करके भी खेल-खेल में सीखने का मजा ले सकते हैं, जैसे छूकर, सूंघकर, देखकर, महसूस करके भी हम कई चीजों को जान और समझ सकते हैं। कुल मिलाकर मैं यह कहना चाहूंगा कि शिक्षा का जो रूप विज्ञान के क्षेत्र में स्टेम ‘रळएट’ साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स, उसे ‘रळएअट’ साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, आर्ट्स और मैथमेटिक्स के रुप में परिवर्तित करना जरुरी हैं, क्योंकि आर्ट किसी भी चीज को क्रिएटिव बना देता है इसलिए हम इस क्रिएटिविटी से ही खेल खेल में विज्ञान की सीख देते है। यह कहना है प्रसिद्ध आईआईिटयन मनीष जैन का, जिनकी खेल खेल में विज्ञान सिखाते वीडियो के मिलियन ऑफ फालोअर्स हैं। मंगलवार को मनीष मैपकास्ट में आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए और हरिभूमि से बातचीत में उन्होंने विज्ञान से जुड़े हुए कई पहलुओं पर चर्चा की।
खेल-खेल में ही कई सवालों के जवाब तलाश लेंगे
मनीष कहते हैं कि आने वाले समय में नई शिक्षा नीति के कारण रटकर पढ़ने का कॉन्सेप्ट चेंज होगा। अब यही शिक्षा बच्चों को इंटरेस्टिंग लगने लगेगी कि वह खेल-खेल में ही कई सवालों के जवाब तलाश लेंगे। कार्यक्रम में प्रेक्टिकल के माध्यम से उन्होंने बताया कि कई बार जवाब सवाल को प्रूफ करने का माध्यम बन सकता है।
प्रेशर की वजह से जबरदस्ती पढ़ते हैं बच्चे
उन्होंने कहा कि पिछले 7 वर्षों से गांधीनगर आईआईटी सेंटर में शिक्षा को बोरिंग और नीरज के कॉन्सेप्ट से हटकर मैंने इसे इंटरेस्टिंग बनाने का कार्य किया और प्रेक्टिकली मैं कई चीजों को हल करके बताता हूं। वहीं पढ़ाई और कॉम्पटीशन की होड़ में अपनी जान गंवाने वाले स्टूडेंट्स के लिए उन्होंने कहा कि बच्चों पर समाज और पेरेंट्स का प्रेशर होता है। इस वजह से वह न चाहते हुए भी जबरदस्ती पढ़ते हैं और फेल के डर से सुसाइड करते हैं।
पढ़ाई पूरी करने के बाद लगा कि शिक्षा काे रुचिकर बनाया जाना चाहिए
मनीष कहते है कि मेरे बड़े भाई भी आईआईटी कानपुर से पासआउट हैं। जब उन्होंने मुझे कॉलेज और होस्टल लाइफ के बारे में बताया तो बड़ा अच्छा लगा और मैंने भी कानपुर में एडमिशन लिया, शिक्षा प्राप्त की, लेकिन बाद में मुझे लगा कि इस शिक्षा को खिलोनों के माध्यम से ओर भी रुचिकर बनाया जा सकता है।
स्कूलों के नाम पर बच्चों को बंद कमरे में बैठा दिया जाता है
मनीष कहते है कि आजकल स्कूलों के नाम पर बच्चों को बंद कमरे में बैठा दिया जाता है और उनके दिमाग को खोलकर ढेरों चीजें उसमें भर दी जाती है और उनके दिमाग बंद कर दिया जाता है। इस तरह की शिक्षा बोर करने के अलावा कुछ नहीं करेगी।
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