एमपी में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जांच में असर - एडिशनल एसपी, इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर की ट्रांसफर के बाद नहीं हुई ईओडब्ल्यू में पोस्टिंग!

एमपी में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जांच में असर - एडिशनल एसपी, इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर की ट्रांसफर के बाद नहीं हुई ईओडब्ल्यू में पोस्टिंग!
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मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने वाली एजेंसी में इन दिनों अफसरों का टोटा बना हुआ है। ईओडब्ल्यू में दर्जन भर से अधिक अधिकारियों के ट्रांसफर करने के बाद पोस्टिंग नहीं हो पाई है। जिसकी वजह से शिकायत की जांच पड़ताल में असर पड़ रहा है। खासबात हैकि गृह विभाग ने अधिकारियों का ट्रांसफर कर दिया लेकिन पोस्टिंग पर पेंच फसा हुआ है। यही वजह है कि ईओडब्ल्यू ने स्पेशल डीजी को हस्तक्षेप करना पड़ा है। उन्होंने जांच एजेंसी में स्टाफ की कमी को लेकर डीजीपी को रिपोर्ट भेजी है।

भोपाल - मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने वाली एजेंसी में इन दिनों अफसरों का टोटा बना हुआ है। ईओडब्ल्यू में दर्जन भर से अधिक अधिकारियों के ट्रांसफर करने के बाद पोस्टिंग नहीं हो पाई है। जिसकी वजह से शिकायत की जांच पड़ताल में असर पड़ रहा है। खासबात हैकि गृह विभाग ने अधिकारियों का ट्रांसफर कर दिया लेकिन पोस्टिंग पर पेंच फसा हुआ है। यही वजह है कि ईओडब्ल्यू ने स्पेशल डीजी को हस्तक्षेप करना पड़ा है। उन्होंने जांच एजेंसी में स्टाफ की कमी को लेकर डीजीपी को रिपोर्ट भेजी है।

गृह विभाग ने बीते महीने सालों से ईओडब्ल्यू में जमे अधिकारियों का ट्रांसफर कर पीएचक्यू में अटैच कर दिया था। 8 एडिशनल एसपी, 6 इंस्पेक्टर सहित 8 सब-इंस्पेक्टर को हटा दिया था। जिसके बाद नई पोस्टिंग नहीं हुई है। मजे की बात है कि पिछले महीने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुलिस अफसरों की हाईलेवल बैठक बुलाई थी। उन्होंने निर्देश दिए थे कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी की जाए। सीएम ने निर्देश के बाद ईओडब्ल्यू का एक्शन देखने के लिए तो नहीं मिला लेकिन गृह विभाग ने अफसरों का ट्रांसफर किया। अब मुसीबत है कि हर महीने मुख्यालय में करीब 600 से अधिक शिकायत पहुंचती है। जिनकी जांच और फिर कार्रवाई करने के लिए अफसरों का टोटा हो गया है। अधिकारियों का कहना है कि ईओडब्ल्यू ने पास खुद का कैडर नहीं है। सभी अधिकारी और कर्मचारी पुलिस विभाग से ईओडब्ल्यू में पदस्थ किए जाते हैं। ईओडब्ल्यू के पास ट्रांसफर व पोस्टिंग का अधिकार भी नहीं है। जिसके चलते प्रशासनिक व्यवस्था बेहतर नहीं है। राज्य सरकार और गृह विभाग को ईओडब्ल्यू में भर्ती व कैडर सिस्टम लागू करने की जरूरत है। यही व्यवस्था लोकायुक्त में भी बनी हुई है। जिसके चलते जांच भी प्रभावित होती है। स्थिति यह है कि शिकायतों का ग्राफ बढ़ रहा है लेकिन जांच की रफ्तार धीमी है। इसी के चलते ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त में पेंडेंसी भी बढ़ रही है।

बड़े मामलों में एजेंसी में जांच प्रभावित

- भ्रष्टाचार की जांच करने वाली एजेंसी से विवेचना के अधिकार प्राप्त डीएसपी व इंस्पेक्टर को बिना विकल्प के ईओडब्ल्यू से स्थानांतरित कर दिया गया। काफी समय तक स्थानांतरित अधिकारियों को ईओडब्ल्यू ने रिलीव नहीं किया क्योंकि उनके स्थान पर दूसरे डीएसपी या इंस्पेक्टर की पदस्थापना नहीं की गई थी। स्थानांतरित अधिकारियों को रिलीव करने के लिए दबाव बनाकर राज्य शासन ने उन्हें रिलीव भी करा लिया। इसके बाद भी उनकी जगह दूसरे अधिकारियों की पदस्थापना नहीं की गई। ईओडब्ल्यू की सागर जैसी इकाई में दो महिला अधिकारी पूरी जिम्मेदारी संभाल रही हैं तो जबलपुर में भी स्थिति चिंताजनक है और ग्वालियर-इंदौर में भी स्थिति ऐसी है।

नाम भेजे, फैसला नहीं हुआ

- ईओडब्ल्यू ने अधिकारियों के तबादले के बाद उनके एवज में डीएसपी-इंस्पेक्टर की पदस्थापना के लिए नाम भेजे थे। इनके रिकॉर्ड के आधार पर राज्य शासन को नाम भेजे गए लेकिन करीब तीन सप्ताह बाद भी कोई फैसला नहीं हो सका है। पदस्थापना के लिए नामों की छंटनी हो चुकी है लेकिन फाइल पीएचक्यू-गृह विभाग के बीच चक्कर काट रही है। इस बारे में ईओडब्ल्यू डीजी अजय शर्मा का कहना है कि जल्द ही पदस्थापना हो जाएगी। वे कहते हैं कि ईओडब्ल्यू में अच्छे रिकॉर्ड के अधिकारियों की पदस्थापना होना है।

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